ग्वालियर। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका वीरांगना लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल को वीरांगना लोक के रूप में परिवर्तित करने की मांग उठने लगी है. हिंदू महासभा सहित बड़ी गंगादास की शाला के महंत पंडित राम सेवक दास ने इस मांग को उठाया है. इनका कहना है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के गदर में वीरांगना लक्ष्मीबाई के साथ ही सैकड़ों साधु-संतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इसलिए वीरांगना लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल और बड़ी गंगा दास की शाला को मिलाकर एक लोक बनाया जाए.
वीरांगना लोक बनने से विदेशियों को इतिहास पता चलेगा
वीरांगना लोक बनने से देश-विदेश के पर्यटकों को रानी लक्ष्मीबाई की शहादत के अलावा बड़ी गंगा दास के शाला के साधु-संतों की शहादत को भी जानने समझने का मौका मिलेगा. हिंदू महासभा के जयवीर भारद्वाज ने कहा "उन्होंने 30 अक्टूबर को ही यह मांग संघ प्रमुख डॉ.मोहन भागवत और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से की है. उम्मीद है कि दोनों प्रबुद्धजन इस मांग पर गंभीरता से विचार करेंगे." आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत द्वारा समाधि स्थल पर पहुंचने पर गंगादास की बड़ी शाला के महंत रामसेवक दास महाराज ने खुशी जाहिर की है. उनका कहना है "मोहन भागवत ने देश के लिए अपना जीवन समर्पित किया है. ऐसे में वे जब ग्वालियर आए तो उन्होंने समाधि स्थल पर वीरांगना को नमन किया."
उमाभारती ने किया था वीरांगना लोक का भूमिपूजन
महंत रामसेवक दास महाराज ने वीरांगना लोक बनाए जाने की मांग की जानकारी मिलने पर समाधि स्थल का अवलोकन भी किया. उन्होंने दर्द जाहिर किया और कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती द्वारा वीरांगना लोक को लेकर भूमि पूजन भी किया गया था, उसके बाद स्थानीय सांसद, मंत्री, महापौर द्वारा भी लगातार आश्वासन मिले, लेकिन वीरांगना लोक तैयार नहीं किया गया. ऐसे में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई और उनके साथ उनकी सुरक्षा करने के दौरान साधु संतो के प्राणों का बलिदान आज भी वीरांगना लोक बनाये जाने की आस लगाए बैठा है.
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गंगादास जी की बड़ी शाला का गौरवशाली इतिहास
गौरतलब है कि गंगादास जी की बड़ी शाला वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई बाई की शहादत के लिए जानी जाती है. यह साधु संतों का अति प्राचीन अखाड़ा है, जहां 1857 की क्रांति की नायिका रानी लक्ष्मीबाई और उनके साथ भाग लेने वाले साधु-संतों की समाधि के साथ ही अस्त्र-शस्त्र रखे हैं. इसके जरिये वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के प्राणों को बचाने संतों ने अंग्रेजों से मुकाबला किया था. करीब 745 साधु संतों ने अपना बलिदान दिया था. यहीं पर रानी लक्ष्मीबाई की शहादत हुई थी. आज इस जगह रानी लक्ष्मीबाई की समाधि बनी है.