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गुरु पूर्णिमा 2024, किस उम्र लेनी चाहिए गुरु दीक्षा, जानिए क्यों है यह जरूरी - Guru Purnima 2024

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा पर्व का विशेष महत्व है. हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. इस दिन शिष्यों को अपने गुरुजनों की पूजा करने की प्रथा है. सनातन धर्म में बिना गुरु के किसी भी कार्य की सिद्धि संभव नहीं मानी जाती है, इसलिए लोग गुरु दीक्षा लेते हैं. लेकिन गुरु दीक्षा कब लेनी चाहिए, यह क्यों जरूरी है? आइए गुरु दीक्षा के बारे में विस्तार से जानते हैं.

GURU PURNIMA 2024
गुरु पूर्णिमा 2024 (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 21, 2024, 12:15 PM IST

Updated : Jul 21, 2024, 12:41 PM IST

गुरु दीक्षा के बारे में विस्तार से जानिए (ETV Bharat Chhattisgarh)

सरगुजा : गुरु पूर्णिमा पर्व हर गुरु शिष्य के लिए विशेष होती है. इस दिन शिष्य प्रयास करते हैं कि उनको गुरु की सेवा का अवसर और सानिध्य प्राप्त हो सके. लोग अपने गुरु से मिलने सैंकड़ों किलोमीटर दूर जाते हैं. इस दिन गुरु पूजन का भी विशेष महत्त्व है. ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन चारों वेदों का ज्ञान देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. इसी वजह से इसे कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.

गुरु दीक्षा का क्या है महत्व ? : सनातन धर्म में माना जाता है कि बिना गुरु के किसी भी कार्य की सिद्धि संभव नहीं होती. इसलिए लोग शिष्य बनकर अपने गुरु से दीक्षा लेते हैं और अपने पुण्य कर्मों से गुरु का आशीर्वाद पाकर खुद का कल्याण करते हैं. लेकिन गुरु दीक्षा को लेकर समाज में बहुत दुविधा देखने को मिलती है. ज्योतिषाचार्य पं. दीपक शर्मा ने बताया, "हमारी सनातन परम्परा में शुरू से ये रहा है कि विवाह के पहले दीक्षा हो जाती है. जैसे ही किसी बच्चे का स्कूल में दाखिला होता है, वैसे ही 7 साल की उम्र में दीक्षा हो जाती है.

"ब्राम्हणों में देखेंगे की जनेऊ संस्कार में उसे गायत्री की दीक्षा दी जाती है, ताकी वो पूर्ण रूप से ब्राम्हण हो सके. 7 वर्ष में बच्चे मन कोमल होता है. जैसे एक खाली भूमि है, उसमें जैसा बीज बोइएगा, वो वैसा तैयार होगा. इस उम्र में बच्चे का मन निर्विकार होता है. उसमें जैसे संस्कार के बीज लगाएंगे, वैसा वो वृक्ष बनेगा. शंकराचार्य परम्परा में भी बच्चों का दीक्षा संस्कार 7 वर्ष की उम्र में शुरू हो जाता है." - पं. दीपक शर्मा, ज्योतिषाचार्य

गुरुओं को दिया गया है भगवान का दर्जा : गुरु एक ऐसा व्यापक शब्द है, जो अपने आप में सारे अध्यात्म, तंत्र, मंत्र व भौतिकता समाहित किये हुए है. बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं है. भगवान शिव ने भी यह कहा है कि आप लाख या करोड़ों बार जाप कर लो, लेकिन जैसे बिना शिव की इच्छा के आपको लाभ नहीं मिलता है, वैसे ही बिना गुरु के आपको ज्ञान नहीं मिल सकता है. चाहे आप करोड़ बार प्रयत्न कर लें.

"स्कंद पुराण के अनुसार, प्रथम गुरु मां होती है, द्वितीय गुरु पिता होते हैं और तृतीय गुरु वो होते हैं, जो हमें ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देते हैं. अंतिम गुरु एक सन्यासी होते हैं. एक आध्यात्मिक गुरु, जो हमें इस भवसागर से पार लगाते हैं. ये इस श्लोक में भी कहा गया कि "गुरुर ब्रम्हा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरा, गुरुर साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः" ब्रम्हा, विष्णु भी आपको तभी प्राप्त होंगे, जब आपके ऊपर गुरु की कृपा होगी. गुरु का मार्गदर्शन और सनिध्य होगा." - पं. दीपक शर्मा, ज्योतिषाचार्य

गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसे करें गुरु पूजा :

  1. सुबह जल्दी उठें और माता-पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें, क्योंकि वे जीवन के पहले गुरु हैं.
  2. स्नान करने के बाद भगवान की पूजा करें.
  3. पूजा करते समय गुरु मंत्र का पाठ करें.
  4. आध्यात्मिक गुरु हो तो उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेवें.
  5. गुरु पूर्णिमा के शुभ दिन पर गुरुओं का सम्मान करें. उन्हें कपड़े, फल और दक्षिणा अर्पित करें.
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गुरु दीक्षा के बारे में विस्तार से जानिए (ETV Bharat Chhattisgarh)

सरगुजा : गुरु पूर्णिमा पर्व हर गुरु शिष्य के लिए विशेष होती है. इस दिन शिष्य प्रयास करते हैं कि उनको गुरु की सेवा का अवसर और सानिध्य प्राप्त हो सके. लोग अपने गुरु से मिलने सैंकड़ों किलोमीटर दूर जाते हैं. इस दिन गुरु पूजन का भी विशेष महत्त्व है. ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन चारों वेदों का ज्ञान देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. इसी वजह से इसे कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.

गुरु दीक्षा का क्या है महत्व ? : सनातन धर्म में माना जाता है कि बिना गुरु के किसी भी कार्य की सिद्धि संभव नहीं होती. इसलिए लोग शिष्य बनकर अपने गुरु से दीक्षा लेते हैं और अपने पुण्य कर्मों से गुरु का आशीर्वाद पाकर खुद का कल्याण करते हैं. लेकिन गुरु दीक्षा को लेकर समाज में बहुत दुविधा देखने को मिलती है. ज्योतिषाचार्य पं. दीपक शर्मा ने बताया, "हमारी सनातन परम्परा में शुरू से ये रहा है कि विवाह के पहले दीक्षा हो जाती है. जैसे ही किसी बच्चे का स्कूल में दाखिला होता है, वैसे ही 7 साल की उम्र में दीक्षा हो जाती है.

"ब्राम्हणों में देखेंगे की जनेऊ संस्कार में उसे गायत्री की दीक्षा दी जाती है, ताकी वो पूर्ण रूप से ब्राम्हण हो सके. 7 वर्ष में बच्चे मन कोमल होता है. जैसे एक खाली भूमि है, उसमें जैसा बीज बोइएगा, वो वैसा तैयार होगा. इस उम्र में बच्चे का मन निर्विकार होता है. उसमें जैसे संस्कार के बीज लगाएंगे, वैसा वो वृक्ष बनेगा. शंकराचार्य परम्परा में भी बच्चों का दीक्षा संस्कार 7 वर्ष की उम्र में शुरू हो जाता है." - पं. दीपक शर्मा, ज्योतिषाचार्य

गुरुओं को दिया गया है भगवान का दर्जा : गुरु एक ऐसा व्यापक शब्द है, जो अपने आप में सारे अध्यात्म, तंत्र, मंत्र व भौतिकता समाहित किये हुए है. बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं है. भगवान शिव ने भी यह कहा है कि आप लाख या करोड़ों बार जाप कर लो, लेकिन जैसे बिना शिव की इच्छा के आपको लाभ नहीं मिलता है, वैसे ही बिना गुरु के आपको ज्ञान नहीं मिल सकता है. चाहे आप करोड़ बार प्रयत्न कर लें.

"स्कंद पुराण के अनुसार, प्रथम गुरु मां होती है, द्वितीय गुरु पिता होते हैं और तृतीय गुरु वो होते हैं, जो हमें ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देते हैं. अंतिम गुरु एक सन्यासी होते हैं. एक आध्यात्मिक गुरु, जो हमें इस भवसागर से पार लगाते हैं. ये इस श्लोक में भी कहा गया कि "गुरुर ब्रम्हा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरा, गुरुर साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः" ब्रम्हा, विष्णु भी आपको तभी प्राप्त होंगे, जब आपके ऊपर गुरु की कृपा होगी. गुरु का मार्गदर्शन और सनिध्य होगा." - पं. दीपक शर्मा, ज्योतिषाचार्य

गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसे करें गुरु पूजा :

  1. सुबह जल्दी उठें और माता-पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें, क्योंकि वे जीवन के पहले गुरु हैं.
  2. स्नान करने के बाद भगवान की पूजा करें.
  3. पूजा करते समय गुरु मंत्र का पाठ करें.
  4. आध्यात्मिक गुरु हो तो उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेवें.
  5. गुरु पूर्णिमा के शुभ दिन पर गुरुओं का सम्मान करें. उन्हें कपड़े, फल और दक्षिणा अर्पित करें.
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Last Updated : Jul 21, 2024, 12:41 PM IST
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