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रमेन डेका के राज्यपाल बनते ही कांग्रेस ने गर्माया आरक्षण का लंबित मुद्दा, बिल पर दस्तखत करने की मांग - pending reservation bill

नए राज्यपाल की नियुक्ति होते ही कांग्रेस ने एक बार फिर से छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा गर्मा दिया है. कांग्रेस ने कहा है कि सरकार को चाहिए की वो जल्द से जल्द आरक्षण बिल पर राज्यपाल के दस्तखत कराए. कांग्रेस ने राज्यपाल से भी लंबित आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर किए जाने की मांग की है.

Congress raised issue of reservation bill
बिल पर दस्तखत करने की मांग (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 28, 2024, 6:59 PM IST

रायपुर: नए राज्यपाल की नियुक्ति के साथ ही आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर कांग्रेस ने उठा दिया है. कांग्रेस ने राज्यपाल से मांग की है कि वो लंबित आरक्षण के मुद्दे पर जल्द फैसला लें. कांग्रेस ने कहा कि नए राज्यपाल सबसे पहले आरक्षण बिल पर दस्तखत करें. लंबे वक्त से आरक्षण बिल राजभवन में लंबित पड़ा है. कांग्रेस का कहना है कि राज्यपाल अगर जल्द इसपर दस्तखत कर देते हैं तो सर्व समाज को उतनी ही जल्दी उसका अधिकार मिल पाएगा.

बिल पर दस्तखत करने की मांग (ETV Bharat)

जल्द आरक्षण बिल पर दस्तखत करने की मांग: कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने रमेन डेका को नए राज्यपाल बनाए जाने का का स्वागत किया.कांग्रेस ने कहा कि ''राज्यपाल छत्तीसगढ़ के लोगों के अधिकार और सर्वसमाज के आरक्षण के लिए संशोधन विधेयक पर जल्द दस्तखत करें. पूर्ववर्ती सरकार ने इसे पारित कराकर राज भवन भेजा था. राज्यपाल को चाहिए कि वो पहले इस बिल पर दस्तखत कर सर्व समाज को उसका अधिकार दें.''
व्हाइट सुशील आनंद शुक्ला प्रदेश अध्यक्ष मीडिया विभाग कांग्रेस

''राजभवन केंद्रीय गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार के निर्देशों पर काम करता है. यह संवैधानिक प्रावधान है. यदि राज भवन में कोई विधेयक लंबित है तो उसपर जल्द से जल्द न्याय सम्मत फैसला लेकर उसपर दस्तखत करना चाहिए, खासकर तब जब विधेयक विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित होकर राजभवन पहुंचा है. केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि उस पर हस्ताक्षर हो. प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है. श्रेय लेने वाली बात भी नहीं है, यदि वास्तव में आप चाहते हैं कि आदिवासियों को उनका हक मिले तो राजभवन इस पर फैसला ले.'' - सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश अध्यक्ष, मीडिया विभाग, कांग्रेस


''जितने भी राज्यपाल अब तक छत्तीसगढ़ को मिले हैं सभी ने छत्तीसगढ़ के विकास की चिंता की है. सभी राज्यपालों ने कदम से कदम मिलाकर छत्तीसगढ़ के उत्थान के लिए जनजाति वर्ग, ओबीसी वर्ग, सामान्य वर्ग, उद्योगों के लिए, व्यापारियों के लिए चिंता की है. छत्तीसगढ़ का विकास और कैसे तेज हो इसके लिए काम करने की जरुरत है.'' - केदार गुप्ता, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा

आरक्षण पर बीजेपी की सफाई: केदार गुप्ता ने कहा कि ''रमन सरकार में 56% आरक्षण मिला था. इस पर भूपेश सरकार ने अपने ही कार्यकर्ताओं से याचिका दायर करवाई थी और आरक्षण को रुकवाया था. उनकी नीयत ठीक नहीं थी.'' क्वांटिफाइबल डाटा का जिक्र करते हुए केदार गुप्ता ने कहा कि ''आरक्षण का बेस होता है, उसे विधानसभा पटल में नहीं रखा, और राज्यपाल को दोषी ठहरा रहे हैं। उनकी नीयत ठीक नहीं है, और आप दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं.''

क्या है आरक्षण के पीछे विवाद की वजह: जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब प्रदेश में अनुसूचित जनजाति को 20%, अनुसूचित जाति को 16 % और पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण दिया गया था, इस तरह से कुल आरक्षण 50% था, और संविधान में भी 50% आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. बाद में रमन सरकार ने 2012 में 58 फीसदी आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की.

बढ़ता गया विवाद: इसमें प्रदेश की आबादी के हिसाब से सरकार ने आरक्षण का रोस्टर जारी किया. इसके तहत अनुसूचित जनजाति को 20 की जगह 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 16 की जगह 12 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. इससे आरक्षण का दायरा संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा हो गया. भूपेश सरकार के द्वारा लाये नए आरक्षण बिल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. इस तरह से कुल मिलाकर 76% आरक्षण हो गया जो कि आज भी राजभवन में राज्यपाल का हस्ताक्षर के लंबित है.

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बिल पर दस्तखत करने की मांग (ETV Bharat)

जल्द आरक्षण बिल पर दस्तखत करने की मांग: कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने रमेन डेका को नए राज्यपाल बनाए जाने का का स्वागत किया.कांग्रेस ने कहा कि ''राज्यपाल छत्तीसगढ़ के लोगों के अधिकार और सर्वसमाज के आरक्षण के लिए संशोधन विधेयक पर जल्द दस्तखत करें. पूर्ववर्ती सरकार ने इसे पारित कराकर राज भवन भेजा था. राज्यपाल को चाहिए कि वो पहले इस बिल पर दस्तखत कर सर्व समाज को उसका अधिकार दें.''
व्हाइट सुशील आनंद शुक्ला प्रदेश अध्यक्ष मीडिया विभाग कांग्रेस

''राजभवन केंद्रीय गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार के निर्देशों पर काम करता है. यह संवैधानिक प्रावधान है. यदि राज भवन में कोई विधेयक लंबित है तो उसपर जल्द से जल्द न्याय सम्मत फैसला लेकर उसपर दस्तखत करना चाहिए, खासकर तब जब विधेयक विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित होकर राजभवन पहुंचा है. केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि उस पर हस्ताक्षर हो. प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है. श्रेय लेने वाली बात भी नहीं है, यदि वास्तव में आप चाहते हैं कि आदिवासियों को उनका हक मिले तो राजभवन इस पर फैसला ले.'' - सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश अध्यक्ष, मीडिया विभाग, कांग्रेस


''जितने भी राज्यपाल अब तक छत्तीसगढ़ को मिले हैं सभी ने छत्तीसगढ़ के विकास की चिंता की है. सभी राज्यपालों ने कदम से कदम मिलाकर छत्तीसगढ़ के उत्थान के लिए जनजाति वर्ग, ओबीसी वर्ग, सामान्य वर्ग, उद्योगों के लिए, व्यापारियों के लिए चिंता की है. छत्तीसगढ़ का विकास और कैसे तेज हो इसके लिए काम करने की जरुरत है.'' - केदार गुप्ता, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा

आरक्षण पर बीजेपी की सफाई: केदार गुप्ता ने कहा कि ''रमन सरकार में 56% आरक्षण मिला था. इस पर भूपेश सरकार ने अपने ही कार्यकर्ताओं से याचिका दायर करवाई थी और आरक्षण को रुकवाया था. उनकी नीयत ठीक नहीं थी.'' क्वांटिफाइबल डाटा का जिक्र करते हुए केदार गुप्ता ने कहा कि ''आरक्षण का बेस होता है, उसे विधानसभा पटल में नहीं रखा, और राज्यपाल को दोषी ठहरा रहे हैं। उनकी नीयत ठीक नहीं है, और आप दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं.''

क्या है आरक्षण के पीछे विवाद की वजह: जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब प्रदेश में अनुसूचित जनजाति को 20%, अनुसूचित जाति को 16 % और पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण दिया गया था, इस तरह से कुल आरक्षण 50% था, और संविधान में भी 50% आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. बाद में रमन सरकार ने 2012 में 58 फीसदी आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की.

बढ़ता गया विवाद: इसमें प्रदेश की आबादी के हिसाब से सरकार ने आरक्षण का रोस्टर जारी किया. इसके तहत अनुसूचित जनजाति को 20 की जगह 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 16 की जगह 12 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. इससे आरक्षण का दायरा संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा हो गया. भूपेश सरकार के द्वारा लाये नए आरक्षण बिल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. इस तरह से कुल मिलाकर 76% आरक्षण हो गया जो कि आज भी राजभवन में राज्यपाल का हस्ताक्षर के लंबित है.

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