गोरखपुर : पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रामगढ़ ताल में फिलहाल बोट संचालन पर ग्रहण लग गया है. गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने जिस संस्था को यह काम अलॉट किया था, वह काम पर ही नहीं लौट रही. 18 लाख से अधिक प्रति माह जीडीए को देने की बोली लगाकर टेंडर हासिल करने वाली फर्म का पता नहीं है. बुलाने पर भी फर्म नहीं आ रही है. आशंका है कि दोबारा टेंडर निकालने पड़ सकते हैं.
कयास लगाए जा रहे हैं कि फर्म के संचालक रामगढ़ ताल में बोटिंग को घाटे का सौदा मान रहे हैं. रामगढ़ ताल में प्लेटफार्म नंबर 1 से बोट के संचालन के लिए 30 सितंबर को बोली लगी थी. एक फर्म ने गोरखपुर विकास प्राधिकरण को 18 लाख 60 हजार प्रति माह किराया देने की हामी भरकर टेंडर ले लिया था. जीएसटी समेत कुल इस पर 21 लाख रुपये हर महीने खर्च आने का अनुमान था.
गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने फर्म से अनुबंध करने के लिए कई बार प्रयास किया. 26 अक्टूबर की तारीख भी अंतिम रूप तय की गई थी लेकिन फर्म से संपर्क नहीं हो पाया. वहीं ताल में बोटिंग नहीं होने से पर्यटकों में निराशा है. शाम के वक्त आने वाले पर्यटकों के लिए यह सबसे आकर्षण का केंद्र था. पिछले करीब डेढ़ माह से उन्हें यह सुविधा नहीं मिल पा रही है.
पिछले साल जिस फर्म को इस ताल में बोटिंग के संचालन का अधिकार मिला था वह विकास प्राधिकरण को ढाई लाख रुपए महीना किराया दे रही थी. सितंबर माह में इसकी बोली लगाई गई तो एक फर्म ने उच्चतम किराया एक लाख 70 हजार रुपए ही तय किया. जीडीए ने बोली निरस्त कर दिया. इसके बाद फिर से बोली लगाई गई. इसमें 18 लाख 60 हजार रुपए की बोली लगाकर एक फर्म ने टेंडर हासिल कर लिया.
अब अनुबंध पत्र पर जीडीए के साथ हस्ताक्षर करने में फर्म आनाकानी कर रही है. इससे ताल में बोटिंग का संचालन रुक गया है. इस मामले में गोरखपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष आनंद वर्धन सिंह का कहना है कि फर्म से प्राधिकरण संपर्क स्थापित करने के प्रयास में जुटा है. अगर वह अनुबंध से पीछे हटती है तो इसके बाद दूसरे नंबर पर बोली लगानी वाली फर्म को टेंडर दिया जा सकता है. इन सभी बिंदुओं पर प्राधिकरण विचार कर रहा है.
उपाध्यक्ष ने बताया कि दूसरे नंबर पर रही फर्म ने पहली वाली फर्म से मात्र ₹10 हजार कम की ही बोली लगाई थी. यानी की 18 लाख 50 हजार महीने का किराया देने को वह भी तैयार थी. वहीं दूसरी ओर बहुत दिनों तक रामगढ़ ताल में GDA बोट के संचालन को रोकना नहीं चाहेगा. ऐसे में दूसरी नंबर पर रही फर्म को टेंडर मिलने का ही विकल्प बचा है.
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