सरगुजा : सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण काफी मायने रखता है. सरगुजा लोकसभा में आदिवासी समुदाय एकजुट होकर मतदान करता है.राजनीतिक दलों की बात करें तो सरगुजा में बीजेपी ने हर बार कंवर समाज के प्रत्याशियों को मौका दिया है.वहीं कांग्रेस ने गोंड समाज पर भरोसा जताया.इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होना है.जिसमें कांग्रेस ने गोंड समाज के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.वहीं बीजेपी एक बार फिर कंवर समाज के प्रत्याशी को मौका दिया है.
कौन है आमने सामने ? : छत्तीसगढ़ के सरगुजा में बीजेपी ने चिंतामणि महाराज को टिकट दिया है. चिंतामणि पहले कांग्रेस में थे,लेकिन जब विधानसभा में टिकट कटा तो वो बागी हो गए. बागी होने के बाद चिंतामणि ने बीजेपी ज्वाइन की. विधानसभा चुनाव के जब परिणाम आए तो रिजल्ट चौंकाने वाले थे,क्योंकि कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव समेत पूरे सरगुजा से कांग्रेस का सफाया हो चुका था. पार्टी ने इस जीत के बाद चिंतामणि महाराज पर भरोसा जताते हुए उन्हें लोकसभा चुनाव में मौका दिया.
कांग्रेस ने युवा पर जताया भरोसा : वहीं कांग्रेस की बात करें तो इस बार पार्टी ने गोंड समाज की महिला नेत्री पर भरोसा जताया है. पूर्व मंत्री की बेटी शशि सिंह को कांग्रेस ने मौका दिया है.शशि सिंह के पास ज्यादा अनुभव नहीं है.उनके सामने राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं.फिर भी कम समय में शशि सिंह ने कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाकर शीर्ष नेतृत्व का विश्वास जीता है.
आदिवासी सीट पर पिछड़ा वर्ग की संख्या अधिक : सरगुजा में इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा ये कोई नहीं जानता. राजनीति के जानकार सुधीर पाण्डेय कहते हैं कि सरगुजा संसदीय सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है, लेकिन यहां आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की अधिक मानी जाती है. करीब 38% आदिवासी मतदाता हैं. 42% के करीब अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता है. शेष 7 से 8 % सामान्य वर्ग के मतदाता हैं. आदिवासी वर्ग के मतदाता 3 भाग में बंटे हुए हैं. पहले नंबर पर गोंड समाज आता है.दूसरे पर कंवर और उरांव समाज आते हैं.
विधानसभा वार जातिगत स्थिति : विधानसभा के हिसाब से देखें तो गोंड समाज के मतदाता सबसे अधिक प्रतापपुर, प्रेमनगर, भटगांव, रामानुजगंज क्षेत्रों में हैं. दूसरी ओर कंवर समुदाय के वोटर्स अम्बिकापुर, सामरी, सीतापुर, भटगांव में ज्यादा हैं. तीसरे नंबर पर पड़ोसी राज्य झारखंड से माइग्रेट होकर आए उरांव समाज के लोग हैं. जिनकी संख्या 80 के दशक से बढ़ती गई. मौजूदा समय में उरांव समाज दो धड़ों में बंटा हुआ है. एक तो हिन्दू उरांव और दूसरे हैं मिशनरी समर्थित. सरगुजा के अम्बिकापुर, लुंड्रा, सीतापुर और सामरी इन चार सीटों में उरांव समाज की संख्या काफी अधिक है. हिंदू उरांव जहां बीजेपी और दूसरे दलों के साथ जाते हैं,वहीं दूसरी ओर मिशनरी समर्थित कांग्रेस के समर्थन में वोटिंग करते हैं. वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग में साहू, रजवार, यादव, गुप्ता, जायसवाल वोटर्स हैं. ज्यादातर वोटर्स लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में वोटिंग करते हैं. सामान्य वर्ग की बात करें तो ज्यादातर सामान्य वोट बीजेपी के पक्ष में जाते हैं.
क्या है पुराना इतिहास : पुराने रिकॉर्ड को देखें तो 1952 से अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं. इस बार 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं. इनमें सबसे ज्यादा 12 बार बीजेपी ने कंवर समाज के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 6 बार कंवर प्रत्याशी दिया है. कांग्रेस अक्सर गोंड प्रत्याशी के साथ चुनाव मैदान में जाती है.इस बार भी कांग्रेस की प्रत्याशी गोंड हैं. 18 चुनाव में कांग्रेस 9 बार गोंड प्रत्याशी मैदान में उतार चुकी है,वहीं बीजेपी ने सिर्फ तीन बार गोंड प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.
गोंड वर्सेस कंवर का चुनाव : सरगुजा में एक बार फिर गोंड वर्सेस कंवर का चुनाव होगा. विधानसभा चुनाव में जब सीएम चुनने की बात आई तो गोंड समाज के रामविचार नेताम का नाम भी आगे आया था. ऐसा माना जा रहा था कि इस बार रामविचार नेताम जो गोंड समाज से आते हैं,उन्हें नेतृत्व की कमान मिलेगी.लेकिन बीजेपी ने कंवर समाज से विष्णुदेव साय को सीएम बना दिया. इस बार रायगढ़ और सरगुजा दोनों जगहों से ही बीजेपी ने कंवर समाज का प्रत्याशी दिया है. जबकि कांग्रेस ने दोनों जगहों पर गोंड समाज के प्रत्याशी उतारे हैं.इसके पीछे कांग्रेस की मंशा साफ है.लोकसभा की लड़ाई को कांग्रेस गोंड वर्सेस कंवर बनाकर वोटर्स को साधने की तैयारी कर रही है.
कौन बिगाड़ता है कांग्रेस का खेल : वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पाण्डेय की माने तो 2019 के चुनाव में मोदी लहर के कारण हार जीत का अंतर डेढ़ लाख मतों का था. लेकिन आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि कांग्रेस के परंपरागत गोंड वोटर्स को गोंगपा ने अपने पाले में कर लिया था. लोकसभा चुनाव में 24400 वोट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिले थे. इस चुनाव में बीजेपी ने भी गोंड प्रत्याशी मैदान में उतारकर गोंड मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर दिया था.जिससे कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ था.
आंकड़े बताते हैं कि गोंड वर्सेस कंवर की लड़ाई में अक्सर कांग्रेस पीछे रह जाती है. इसकी सबसे बड़ी वजह गोंडवाना गणतंत्र पार्टी रही है.गोंगपा अक्सर गोंड समाज के वोटर्स को अपने पाले में ले आती है.वहीं जो वोट कटने से बच जाते हैं वो अधिकतर बीजेपी के पक्ष में गिरते हैं. इस बार कांग्रेस ध्रुवीकरण करके चुनाव को दिलचस्प बनाने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस को पता है कि मिशनरी वोटर्स के साथ कंवर और उरांव समाज के वोटर्स उनका साथ दे सकते हैं.इसलिए प्रत्याशी भी ऐसा चुना गया है जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की जमीनी पकड़ ज्यादा है.
छत्तीसगढ़ बनने के बाद बीजेपी का गढ़ : 2019 में रेणुका सिंह सांसद चुनी गई. इन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री भी बनाया गया लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में रेणुका सिंह ने एमसीबी जिले की भरतपुर-सोनहत सीट से चुनाव लड़ा. अविभाजित मध्यप्रदेश में यहां 9 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद 2004 से यहां कांग्रेस कभी चुनाव नहीं जीत सकी है. लगातार बीजेपी के प्रत्याशी जीत दर्ज करते आ रहे हैं. 2004 में नंदकुमार साय, 2009 में मुरारीलाल सिंह, 2014 में कमलभान सिंह और 2019 में रेणुका सिंह यहां से सांसद बनीं. राज्य निर्माण के पहले और छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आने के बाद 2004 तक कांग्रेस के खेल साय सिंह यहां से 3 बार सांसद रह चुके हैं.
2024 में लोकसभा क्षेत्र सरगुजा में कुल 1802941 मतदाता हैं. जिसमें 171229 युवा मतदाता हैं. 18 से 19 आयुवर्ग के 20078 और 20 से 29 आयुवर्ग के कुल 151151 मतदाता शामिल इस बार प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे.