गिरिडीह: कभी- कभी ठोकरें भी इंसान की जिंदगी को बदल देती है. बगोदर के मनीष कुमार इसका एक उदाहरण है. कुछ साल पहले तक वो बेरोजगार थे. नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते थे. इन्हीं ठोकरों ने ऐसा सबक सिखाया कि आज वो आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ दूसरे लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं.
दरअसल बगोदर के बेको के रहने वाले मनीष कुछ साल पहले भाग कर मुंबई पहुंच गए थे. वहां भी रोजगार के लिए दर- दर की ठोकरें खाई. इस दौरान उनकी एक बड़े किसान से मुलाकात हुई. वहां काम करने के दौरान उन्हें कृषि के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली और फिर घर आने लौटने के कुछ सालों बाद कृषि कार्य की शुरुआत की. इसके बेहतर परिणाम निकले.
मनीष कुमार उर्फ तुलसी बगोदर के बेको के रहने वाले हैं. उनके द्वारा बंजर जमीन का सीना चीरकर सोना उपजाया जा रहा है. उनके द्वारा पिछले चार सालों से 5 एकड़ जमीन पर समेकित और जैविक खेती की जा रही. जिसमें दस मजदूर प्रतिदिन काम करते हैं. कृषि कार्य के लिए इनके पास आधुनिक उपकरण भी है, जिससे वे कृषि कार्य करते हैं.
जिस जगह पर इनके द्वारा खेती की जा रही है वह आबादी से दूर सुनसान और जंगली इलाका है. यह जगह कारीपहरी कहलाता है. फिलवक्त यहां केला, मिर्च, खीरा, कद्दू, भिंडी आदि की फसलें लहलहा रही हैं. मौसम के अनुसार इनके द्वारा अलग- अलग फसलों को लगाया जाता है. पटवन की सुविधा के लिए इस परिसर में डीप बोरिंग एवं सोलर सिस्टम हैं, जो सरकारी स्तर पर सब्सिडी में मिली है. इसके अलावा एक ग्रीन हाउस भी है. हालांकि बिजली नहीं रहने का इन्हें मलाल है. इन्हें इस बात की भी मलाल है कि जनप्रतिनिधियों के द्वारा उन्हें किसी तरह का सहयोग नहीं किया जा रहा है.
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