बीकानेर: एक महीने तक मलमास के चलते वर्जित हुए शुभ कार्य मकर संक्रांति के साथ ही शुरू हो गए हैं. बीकानेर में भी मकर सक्रांति का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया. इस दिन बीकानेर में दान पुण्य का दौर देखने को मिलता है. इस दौरान मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं ने दान-पुण्य के निमित्त वस्तुएं भेंट की. वहीं बीकानेर में मकर सक्रांति के दिन घर की बेटियों को अलग-अलग वस्तुएं भेंट की जाती है और मिठाई के रूप में घेवर देने की परंपरा है. यहां एक दिन में एक लाख घेवर बिक गए.
पूरे देश में अलग-अलग जगह पर घेवर बनता है, लेकिन बीकानेर में बनने वाले घेवर की मांग सबसे अधिक होती है. यहां से बहुत मात्रा में घेवर बाहर भेजा जाता है. सर्दी का सीजन शुरू होते ही बीकानेर में घेवर की अस्थाई दुकानें शुरू हो जाती है. यहां सर्दी में घेवर खाने का चलन है.
संक्रांति पर सबसे ज्यादा डिमांड: मकर संक्रांति के दिन घेवर की बड़ी मात्रा में बिक्री होती है और उसको लेकर पहले ही तैयारी कर ली जाती है. मकर संक्रांति के दिन चीनी से बनी चाशनी का घोल मिलाकर घेवर की बिक्री होती है. मिठाई कारोबारी नवरत्न कहते हैं कि अकेले एक दिन में बीकानेर में एक लाख घेवर की बिक्री होती है. उन्होंने बताया कि दीपावली के तीन बाद घेवर बनाने का काम शुरू होता है और महाशिवरात्रि तक घेवर बनते हैं. वे कहते है कि हमारा पीढ़ियों से यही काम है और बीकानेर में पूरे सीजन में करोड़ों रुपए का कारोबार घेवर से होता है और मकर सक्रांति के दिन इसकी बड़ी मात्रा में बिक्री होती है.
शादियों में भी घेवर की डिमांड: उन्होंने बताया कि शादियों में भी घेवर मिठाई के रूप में प्रचलन में है. उन्होंने बताया कि इसका करोड़ों का कारोबार है. मकर सक्रांति के दिन बड़ी मात्रा में इसकी बिक्री बहन बेटियों को मिठाई देने की परंपरा से होती है.
400 से ज्यादा दुकान: बीकानेर में घेवर की छोटी-बड़ी 400 दुकान लगती है. जिनमें में 50 से ज्यादा स्थाई दुकानें भी शामिल हैं. बदलते समय के साथ सब अलग-अलग तरह के घेवर बीकानेर में बनाए जाते हैं. जिनमें रबड़ी और पनीर के घेवर भी शामिल हैं. हालांकि, प्रतिस्पर्धा के युग में अब घेवर अलग-अलग भाव में मिलने लग गया है. लेकिन शुद्ध देशी घी और गुणवत्ता युक्त घेवर 400 से 500 किलो की दर से मिलता है.