मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के आमाखेरवा में नेत्रहीन विद्यालय संचलित है. यहां मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के तीन दर्जन से अधिक बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं. घर से दूर, माता-पिता से दूर रह कर यहां नेत्रहीन बच्चे पढ़ते हैं. यहां काम करने वाली गीता इन बच्चों को कभी एहसास ही नहीं होने देती की वे अपनी मां से दूर हैं. बीते 15 सालों से नेत्रहीन विद्यालय में गीता काम कर रही हैं. अब तो नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे भी गीता को मां कहते हैं. गीता को भी इन बच्चों की सेवा करना पुण्य जैसा लगता है.
अपने बच्चों की तरह करती हैं नेत्रहीन बच्चों की सेवा: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान गीता ने बताया कि, "मैं इनको नेत्रहीन बच्चों के जैसा समझती ही नहीं हूं. मैं अपने बच्चे जैसा मानकर इन बच्चों की सेवा करती हूं. मेरे खुद के 2 बच्चे हैं. एक बेटी है और एक बेटा है. जैसे मैं अपने बच्चों को पालती हूं. वैसे इन बच्चों को भी पालती हूं. इन बच्चों की देख-रेख कर मुझे जो पैसे नेत्रहीन विद्यालय की ओर से दिए जाते हैं उन पैसे से मैं अपने बच्चों का लालन पालन करती हूं."
गीता रजक पिछले 15-16 सालों से यहां आया का दायित्व निभा रही हैं. विद्यालय के छोटे बच्चों को नहलाने तक का काम यह करती हैं. इसके अलावा नेत्रहीन विद्यालय के छात्रों के कपड़े धोना. खाना बनाकर खिलाना, बर्तन धोना, छात्रों के बेड लगाने के अलावा कई काम करती हैं. विद्यालय में 10 घण्टे काम करने के बाद भी जब कभी गीता की जरूरत होती है तो उनको बुला लिया जाता है. वह यहां का हर एक काम करती हैं. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की जब तबीयत खराब होती है, तो उन्हें अस्पताल ले जाने तक से दवाई लाने और दवाई समय पर खिलाने का काम भी गीता के जिम्मे है.-राकेश गुप्ता, व्यवस्थापक, नेत्रहीन विद्यालय
घर से ज्यादा नेत्रहीन विद्यालय में गुजारती हैं वक्त: बता दें कि नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की देखभाल करने वाली गीता खुद 5वीं पास हैं, लेकिन इन नेत्रहीन बच्चों के अध्ययन कार्य में भी गीता सहयोग करती है. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे जब स्टडी रूम में पढ़ाई करते हैं, तो किताबें निकालने के अलावा, स्टडी रूम के साफ-सफाई को लेकर भी संजीदा रहती हैं. इसके अलावा पढ़ाई के दौरान बच्चों को प्यास लगने पर पानी लाकर देना, चाय बनाना, गीता की दिनचर्या में शामिल है. गीता के तीन बच्चे थे, लेकिन एक बेटे की बीमारी से मौत हो गई. वहीं, पति की भी दस साल पहले मौत हो गई. हालांकि उन्होंने हार नहीं माना और अपने बच्चों की देखभाल वो अपनी कमाई से करती हैं. वो नेत्रहीन विद्यालय में ही आधा से अधिक वक्त गुजारती हैं.