धनबाद: समलैंगिकता को लेकर आज भी लोग लोग बोलने से ना सिर्फ कतराते हैं, बल्कि समाज में समलैंगिक वर्ग एक सामाजिक दबाव के बीच जिंदगी जीने को मजबूर हैं. इन सबसे इतर एक युवक शहर के चौक चौराहों पर खुद को गे बताने में कोई शर्मीदगी महसूस नहीं कर रहा है.
अपने साथ I AM GAY का बोर्ड लेकर लोगों के बीच समलैंगिकता को लेकर जागरूक करने का काम कर रहे हैं. हाथों में आई एम गे का बोर्ड लिए इस शख्स का नाम अरशु भट्टी है. यह बैंक मोड़ थाना क्षेत्र के मटकुरिया के रहने वाले हैं. जहां भी ये खड़े होते हैं, लोगों के लिए काफी उत्सुकता का विषय बन जाते हैं. लोग इनसे खुद आकर इसके बारे में जानकारी लेते हैं और यह बिना किसी हिचकिचाहट के लोगों को बताते हैं कि वह गे हैं. भगवान ने उन्हें ऐसा ही बनाया है. वे कहते हैं कि 'मैं लड़का हूं लेकिन लड़कों के साथ ही मेरा आकर्षण है.' इसके साथ ही कई कानूनी जानकारियां भी यह लोगों को देते हैं. इनकी बातों को सुनने वाले लोग भी इनकी बातों पर अपनी सहमति जताते हैं.
अरशु भट्टी ने ईटीवी भारत से हुई बातचीत में बताया कि वे सोशल अवेयरनेस का काम कर रहे हैं. एलजीबीटीक्यूआईए प्लस (LGBTQIA+) कम्युनिटी का अधिकार है, जिसे चाहे हम उससे प्यार कर सकते हैं. लड़का को लड़का से और लड़की को लड़की से प्यार करने का अधिकार है. यह पूरी तरह से नेचुरल है कोई जानबूझकर ऐसा नहीं बनता है. भगवान ने हमें ऐसा ही बनाया है, जिसे समलैंगिकता कहते हैं.
अरशु बताते हैं कि समलैंगिकता के कारण कई लड़के लड़कियां खुद में घुटते रहे हैं और डिप्रेनशन में आकर सुसाइड तक कर चुके हैं. वे वैसे अभिभावकों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं, जिनकी वजह से कई जिंदगी चल जाती है. अरशू कहते हैं कि यह हमारे अंदर भगवान का दिया हुआ है, इसलिए इसे कोई भी रोक नहीं सकता.
LGBTQIA+ समूह से लोगों में को जागरूक होने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि हम भी इंसान हैं और हमारे लिए भी समाज में सहानुभूति की जरूरत है. अरशु भट्टी ने कहा कि लड़कियों पर जब भी रेप की बात आती है तो उसके ऊपर कानूनी कार्रवाई होती है. लेकिन लड़कों के ऊपर रेप के मामले में कानून काफी लचीला है. अरशु भट्टी कहते हैं कि वे गे हैं इसलिए उन्हें दिक्कत नहीं होती है, लेकिन लड़कियों को इस मामले में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
जानिए गे और लेस्बियन किसे कहा जाता है
वैसे युवकों को गे कहा जाता है, जिन्हें अपने ही लिंग के प्रति आकर्षण होता है वह उनसे यौन संबंध स्थापित करने की इच्छा रखते हैं. इन्हें अंग्रेजी में गे कहा जाता है. वहीं दूसरी ओर वैसी युवतियां जिनका युवतियों के प्रति ही आकर्षण रहता है और उनके साथ ही प्रेम संबध बनाना चाहती हैं उन्हे लेस्बियन कहा जाता है.
भारत में क्या है एलजीबीटीक्यू कानून
साल 2018 में एलजीबीटीक्यू के लिए सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने बने पुराने प्रावधानों में कुछ परिवर्तन किए है. जिसके बाद आईपीसी की धारा 377 में परिवर्तन किया गया. संशोधन के तहत एलजीबीटी समुदाय के लोगों को आईपीसी की धारा 377 के तहत किसी प्रकार की सजा नहीं दी जा सकती है. एलजीबीटीक्यू एक समाज में अन्य लिंग की तरह सामान्य रूप से सम्मान और आजादी के साथ रह सकते हैं. वे उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा और नौकरी पाने के सामान्य रूप से हकदार होंगे. वे अपनी मर्जी से अपना साथी चुनने और शांतिपूर्ण वातावरण में रहने के लिए स्वतंत्र हैं.
कानून के हिसाब से ऐसे लोग देश की सेवा करने और विकासशील देशों के लिए मददगार राष्ट्र के प्रति उनके योगदान में भी शामिल हो सकते हैं. एलजीबीटीक्यू समुदाय प्रतिबंध मुक्त जीवन का आनंद ले सकते हैं. यह धारा उनके सपनों और वांछित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ने, ही नहीं. बल्कि सीखने और लागू करने की उनकी क्षमता को प्रोत्साहित करती है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को लेकर शादी के लिए राज्यों की सरकार पर छोड़ दी है. लेकिन सरकार ने कोई भी फैसला इस पर नहीं लिया है.
इस मामले में अरशु कहते हैं कि हमें भी शादी का अधिकार मिलना चाहिए. रिलेशनशिप का अधिकार हमें मिला है, लेकिन कोर्ट मैरिज का अधिकार हमें नहीं मिल सका है. हम अगर शादी करते हैं तो बेबी अडॉप्ट नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम लावारिस बच्चों को गोद तो ले सकते हैं, इसके लिए सरकार को कानून बनाने की जरूरत है.
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