गोरखपुर: भारत को स्वतंत्रता दिलाने के चल रहे आंदोलन और अभियान के दौरान गोरखपुर का बाले मियां मैदान, 8 फरवरी 1921 को आजादी के एक बड़े हुंकार का केन्द्र बना था. इस हुंकार को कोई और नहीं बल्कि महत्मा गांधी ने अपनी मौजूदगी से बल दिया था, जो पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले बाबा राघव दास और उनकी टीम के विशेष बुलावे पर यहां पहुंचे थे. शहर के बाले मियां के मैदान पर वह लोगों को संबोधित करने पहली और आखिरी बार आए थे. गोरखपुर आने के दौरान जिस- जिस स्टेशन पर उनकी ट्रेन रुकती थी, वहां भारत मां के जयकारे गूंज उठते थे. हजारों की भीड़ उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ती थी. बताया जाता है, कि गोरखपुर की उस समय आबादी 16 लाख थी. उन्हे सुनने करीब 2 लाख लोग पहुंचे थे. उनके भाषण का असर यह था कि कथाकार मुंशी प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी जैसे शायर अपनी नौकरी छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े.
महात्मा गांधी की एक झलख पाने के लिए लाखों लोगों की उमड़ी थी भीड़: गोरखपुर जिले के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मुमताज खान और पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर, भारतीय इतिहास संकलन परिषद नई दिल्ली के सदस्य, डॉ हिमांशु चतुर्वेदी ने महात्मा गांधी के बाले मियां के मैदान की जनसभा का जिक्र करते हुए बताया, कि चंपारण के आंदोलन के बाद से गोरखपुर समेत पूरे पूर्वांचल में महात्मा गांधी को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता थी.
गोरखपुर के स्थानीय प्रमुख अखबार स्वदेश ने भी उनकी जनसभा को बड़े ही बृहद रूप में प्रकाशित किया था. प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी कहते हैं, कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ और आजादी पाने के लिए गांधी जी ने जिन वस्तुओं का तिरस्कार करने का आह्वान किया था, उसको लोगों ने गम्भीरता से स्वीकार किया. मांस, मदिरा, शराब जहां भी बिक्री होती थी, लोग उसके खिलाफ आंदोलन धरना प्रदर्शन पर उतर आते थे. उन्होंने कहा, कि यहां तक की जो 4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा की घटना हुई, वह भी कहीं न कहीं, 8 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी के द्वारा गोरखपुर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत को तेज करने के अभियान का एक बड़ा परिणाम था.
पूर्वांचल के गांधी बाबा राघव दास का भी था साथ: लेकिन, बाले मियां के मैदान पर गांधी जी इस जनसभा के असली सूत्रधार पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले बाबा राघव दास थे. जिनकी अगुवाई में महात्मा गांधी को 17 अक्टूबर 1920 को मौलवी मकसूद अहमद फैजाबादी और गौरीशंकर मिश्रा की अध्यक्षता में हुई सार्वजनिक सभा में, महात्मा गांधी को गोरखपुर आमंत्रित करने का निर्णय हुआ था. आईने गोरखपुर पुस्तक में इसका जिक्र मिलता है. जिसमें महात्मा गांधी को टेलीग्राम के जरिए बुलावा भेजा गया था. लेकिन, इस बीच बाबा राघव दास की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल भी नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पहुंचा और महात्मा गांधी से गोरखपुर आने का अनुरोध किया. जिस पर गांधी जी ने जनवरी के अंतिम सप्ताह में या फरवरी का उन्हें समय देते हुए आमंत्रण कबूल किया था. इसके बाद तो उनके आने की पूरी खबर जिले में तत्कालीन राष्ट्र प्रेमियों, आंदोलनकारी ने फैलानी शुरू की. और जब गांधी जी आए तो उनके स्वागत में जो जन सैलाब उमड़ा. वह अपने आप में आज भी एक इतिहास को बनाता हुआ दिखाई देता है.
प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी कहते हैं, कि तत्कालीन स्वदेश अखबार की खबरों को आधार माने तो जब गांधी जी रेलवे स्टेशन से बाहर निकले तो, एक उंचे स्थान पर खड़ा होकर उन्होंने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया. दुबले- पतले धोती पहने बापू अपने समर्थकों से पूरी तरह घिरे हुए थे. उनके सामने एक चादर भी बिछी थी जिस पर पैसों की बारिश हो रही थी. यह दौर खिलाफत आंदोलन का था. फिर भी उन्होंने सभा में हिंदू- मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के अलावा, अवध के किसानों को हिंसक आंदोलन नहीं करने की सलाह भी दी थी. गांधी जी उसी दिन रात 8:30 बजे की ट्रेन से बनारस के लिए रवाना हो गए थे. और जब वह वहां से वापस लौट रहे थे, तो रेलवे स्टेशन और पटरियों के किनारे महात्मा गांधी के दर्शन के लिए लोग कतारबद्ध होकर भारत माता की जय घोष से उनका समर्थन करते नजर आ रहे थे.
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