लखनऊ : प्रदेश में फर्जी बोर्ड ने नर्सिंग एवं पैरामेडिकल छात्र-छात्राओं का भविष्य बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस मामले में उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी एसोसिएशन ने कार्रवाई की है. हजारों स्टूडेंट्स का भविष्य अंधकार में डालकर फर्जी बोर्ड ने लाखों रुपये कमाए हैं. बिना शासन की अनुमति के शहर से ही संचालित बोर्ड ऑफ मेडिकल हेल्थ एंड साइंस रिसर्च की ओर से नर्सिंग पैरामेडिकल पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे थे. इस फर्जी बोर्ड की ओर से प्रदेश के कई जिलों में चल रहे संस्थानों को संबद्धता भी दी गई थी. इनमें ज्यादातर संस्थान देवरिया, मऊ, बलिया और कौशांबी के हैं. इस मामले में यूपी स्टेट मेडिकल फैकल्टी की ओर से हुसैनगंज थाने में एफआईआर दर्ज करवाकर बोर्ड पर कार्रवाई की मांग की गई है.
हजारों स्टूडेंट्स का कॅरियर बर्बाद : उत्तर प्रदेश नर्सिंग व मेडिकल फैकल्टी एसोसिएशन के कर्मचारी से मिली जानकारी के मुताबिक इस पूरे मामले में बहुत से कॉलेज शामिल हैं. ऐसे में बहुत से स्टूडेंट्स का कॅरियर बर्बाद हुआ है. बहुत से ऐसे स्टूडेंट्स है, जिन्होंने पहले साल ही दाखिला लिया उसके बाद यह पूरा मामला संज्ञान भी आ गया, लेकिन बहुत से ऐसे स्टूडेंट्स भी हैं जो दूसरे या तीसरे साल की पढ़ाई कर रहे हैं. उनका पूरा तीन साल बर्बाद गया है. जिसमें करीब 500 से अधिक स्टूडेंट्स है.
शासनादेश का उल्लंघन : शिकायत में कहा गया है कि बोर्ड ऑफ मेडिकल हेल्थ साइंस ऐंड रिसर्च का संचालन प्रयागराज समेत लखनऊ में जानकीपुरम, अलीगंज व सीतापुर रोड से किया जा रहा है. निजी क्षेत्रों में पाठ्यक्रम संचालित करने के लिए अनापत्ति पत्र लेना अनिवार्य है. जबकि पाठ्यक्रम नियंत्रण का काम सरकार की ओर से गठित काउंसिलों की ओर से किया जाएगा. पैरामेडिकल की काउंसिल नहीं है. इसलिए उसका नियंत्रण यूपी स्टेट मेडिकल फैकल्टी की ओर से किया जाता है. बोर्ड की ओर से नियम के विरुद्ध बिना शासन के अनापत्ति पत्र के न सिर्फ पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है, बल्कि विभिन्न संस्थाओं को फ्रेंचाइजी भी दी गई. यह बोर्ड स्टेट मेडिकल फैकल्टी की ओर से अधिकृत नहीं है जो पूरी तरह शासनादेश का उल्लंघन है.
मोटी फीस के बाद भी खतरे में भविष्य : संस्था की ओर से प्रदेश के नौ कॉलेजों को संबद्धता दी गई. जिसका उल्लेख बोर्ड की वेबसाइट https://www.bmhsr.in/ पर किया गया है. एफआईआर में बताया गया है कि संस्था की ओर से छात्रों से मोटी फीस वसूली गई, लेकिन इससे पढ़ने वाले छात्र कहीं काम नहीं कर सकते. क्योंकि उनका पंजीकरण स्टेट मेडिकल फैकल्टी में नहीं किया जा सकता है. ऐसे में इन कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य भी दांव पर लग गया है.
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