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चंडीगढ़ PGI के डॉक्टरों का कमाल, सर्वाइकल स्पाइन डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी में रचा इतिहास - PGI CHANDIGARH

19 साल में पहली बार चंडीगढ़ पीजीआई में एक हफ्ते के अंदर 3 सफल सर्वाइकल स्पाइन डिस्क रिप्लेसमेंट की सर्जरी की गई है.

SPINE DISC REPLACEMENT SURGERIES
सफल सर्वाइकल स्पाइन डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Nov 6, 2024, 6:07 PM IST

चंडीगढ़: पीजीआई के ऑर्थोपेडिक्स डिपार्मेंट ने एक सप्ताह में तीन सर्वाइकल स्पाइन डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी सफलतापूर्वक करके हेल्थ रिकॉर्ड बना दिया है. 19 सालों में ये पहली बार हुआ है जहां पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑर्थोपेडिक्स के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. विशाल कुमार ने एक हफ्ते के अंदर तीन सफलतापूर्वक सर्जरी की है. उनकी इस तकनीक से डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी से पीड़ित 3 मरीजों की सफल सर्जरी हुई है. जिसमें एक महिला और 2 पुरुष शामिल है.

क्या है डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी : डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी से पीड़ित मरीज का शरीर धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लग जाता है, जिससे वो चलने फिरने से असमर्थ हो जाते हैं, जबकि इनका पूरा शरीर काम करने लायक नहीं रहता. पीजीआई में इलाज करवाने वाले कई ऐसे मरीज हैं, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. जिन मरीजों की हालत ज्यादा खराब होती है तो उनकी सर्जरी करनी पड़ती है. पिछले लंबे समय से कुछ मरीज लाचारी का जीवन जी रहे थे, जिनके रोजाना के काम के लिए एक और व्यक्ति की जरूरत पड़ रही थी. ऐसे में जिन मरीजों की सर्जरी की गई, सभी मरीजों को 50 से 60 प्रतिशत तक का दर्द कम हुआ है.

चंडीगढ़ PGI के डॉक्टरों का कमाल (ETV Bharat)

3 मरीजों को चुना गया : डॉक्टर विशाल कुमार ने बताया कि इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की गर्दन में दर्द शुरू होता है जो हाथों में फैलते हुए पूरे शरीर तक जा पहुंचता है. यहां तक की अपना निजी काम करने में ये मरीज असमर्थ हो जाते हैं. पकड़ कमजोर हो जाती है. गर्दन का दर्द ऊपरी अंगों तक फैल गया था. ऐसे में 3 मरीजों को इस ऑपरेशन के लिए चुना गया.

गर्दन में डाली जाती है डिस्क : शुरुआत में इस तरह के मरीजों को दवा का कोर्स चलाया जाता है. वहीं दवा का असर न होता देख डॉक्टर सर्जरी के लिए कहते हैं. पीजीआई में जो सर्जरी की गई है, उसमें सर्जरी के दौरान मरीजों की गर्दन में एक डिस्क डाली गई है, जो एक बायोलॉजिकल डिस्क है. ये मानवीय शरीर के लिए अनुकूल है. इससे किसी भी तरह का नुकसान नहीं है. इसकी मदद से जहां स्पाइन को एक सहारा मिलता है, वहीं बीमार व्यक्ति को दर्द से राहत भी देने में मदद मिलती है और वो अपने सामान्य काम करने लगता है. 19 सालों के इतिहास में ये पहला मौका होगा, जब एक हफ्ते में तीन मरीजों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन हुआ है.

सरकारी योजनाओं के अधीन हुआ ऑपरेशन : रीड की हड्डी में सामान्य कामकाज और लचीलेपन को बहाल करने के लिए सर्वाइकल डिस्क को बदलने की प्रक्रिया आयुष्मान भारत जैसी सरकारी स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं के माध्यम से कवर की जा रही है. अगर यही ऑपरेशन पीजीआई से बाहर होता है तो इसका खर्च लाखों में आ सकता है. अकेली डिस्क की ही कीमत 50 हजार से 1 लाख के बीच है.

पेटेंट और राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए फेमस है डॉ. विशाल : रीड की हड्डी की सर्जरी में अपनी विशेषता इन्नोवेटिव अप्रोच के लिए जाने जाने वाले डॉ. विशाल कुमार ने इस सर्जरी को सफल तरीके से करते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रीड की हड्डी की सर्जरी के क्षेत्र में उनके योगदान को कई बार राष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ नवाजा गया है.

इसे भी पढ़ें : हरियाणा में गुलाबी ठंड की दस्तक, बढ़ते प्रदूषण से सांस के मरीजों की बढ़ी संख्या

इसे भी पढ़ें : हरियाणा में डरा रहा डेंगू, हिसार में 24 घंटे में 38 नए मरीज मिलने से मचा हड़कंप, करनाल में भी बढ़े केस

चंडीगढ़: पीजीआई के ऑर्थोपेडिक्स डिपार्मेंट ने एक सप्ताह में तीन सर्वाइकल स्पाइन डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी सफलतापूर्वक करके हेल्थ रिकॉर्ड बना दिया है. 19 सालों में ये पहली बार हुआ है जहां पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑर्थोपेडिक्स के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. विशाल कुमार ने एक हफ्ते के अंदर तीन सफलतापूर्वक सर्जरी की है. उनकी इस तकनीक से डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी से पीड़ित 3 मरीजों की सफल सर्जरी हुई है. जिसमें एक महिला और 2 पुरुष शामिल है.

क्या है डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी : डिजेनरेटिव सर्वाइकल मायलोपैथी से पीड़ित मरीज का शरीर धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लग जाता है, जिससे वो चलने फिरने से असमर्थ हो जाते हैं, जबकि इनका पूरा शरीर काम करने लायक नहीं रहता. पीजीआई में इलाज करवाने वाले कई ऐसे मरीज हैं, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. जिन मरीजों की हालत ज्यादा खराब होती है तो उनकी सर्जरी करनी पड़ती है. पिछले लंबे समय से कुछ मरीज लाचारी का जीवन जी रहे थे, जिनके रोजाना के काम के लिए एक और व्यक्ति की जरूरत पड़ रही थी. ऐसे में जिन मरीजों की सर्जरी की गई, सभी मरीजों को 50 से 60 प्रतिशत तक का दर्द कम हुआ है.

चंडीगढ़ PGI के डॉक्टरों का कमाल (ETV Bharat)

3 मरीजों को चुना गया : डॉक्टर विशाल कुमार ने बताया कि इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की गर्दन में दर्द शुरू होता है जो हाथों में फैलते हुए पूरे शरीर तक जा पहुंचता है. यहां तक की अपना निजी काम करने में ये मरीज असमर्थ हो जाते हैं. पकड़ कमजोर हो जाती है. गर्दन का दर्द ऊपरी अंगों तक फैल गया था. ऐसे में 3 मरीजों को इस ऑपरेशन के लिए चुना गया.

गर्दन में डाली जाती है डिस्क : शुरुआत में इस तरह के मरीजों को दवा का कोर्स चलाया जाता है. वहीं दवा का असर न होता देख डॉक्टर सर्जरी के लिए कहते हैं. पीजीआई में जो सर्जरी की गई है, उसमें सर्जरी के दौरान मरीजों की गर्दन में एक डिस्क डाली गई है, जो एक बायोलॉजिकल डिस्क है. ये मानवीय शरीर के लिए अनुकूल है. इससे किसी भी तरह का नुकसान नहीं है. इसकी मदद से जहां स्पाइन को एक सहारा मिलता है, वहीं बीमार व्यक्ति को दर्द से राहत भी देने में मदद मिलती है और वो अपने सामान्य काम करने लगता है. 19 सालों के इतिहास में ये पहला मौका होगा, जब एक हफ्ते में तीन मरीजों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन हुआ है.

सरकारी योजनाओं के अधीन हुआ ऑपरेशन : रीड की हड्डी में सामान्य कामकाज और लचीलेपन को बहाल करने के लिए सर्वाइकल डिस्क को बदलने की प्रक्रिया आयुष्मान भारत जैसी सरकारी स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं के माध्यम से कवर की जा रही है. अगर यही ऑपरेशन पीजीआई से बाहर होता है तो इसका खर्च लाखों में आ सकता है. अकेली डिस्क की ही कीमत 50 हजार से 1 लाख के बीच है.

पेटेंट और राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए फेमस है डॉ. विशाल : रीड की हड्डी की सर्जरी में अपनी विशेषता इन्नोवेटिव अप्रोच के लिए जाने जाने वाले डॉ. विशाल कुमार ने इस सर्जरी को सफल तरीके से करते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रीड की हड्डी की सर्जरी के क्षेत्र में उनके योगदान को कई बार राष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ नवाजा गया है.

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