बालोद : बालोद शहर और ग्राम हीरापुर के शिव मछुआ समिति के 35 सदस्य पिछले 15 दिनों से तांदुला नदी की सफाई में जुटे हैं. मछुआरे नदी को साफ करके एक बार फिर इसे जीवन देना चाहते हैं. मछुआरों का कहना है कि हम चाहते हैं कि नदी स्वच्छ रहे और लोगों को यहां निस्तार की सुविधा मिले. आपको बता दें कि मछुआ समिति डेढ़ महीने तक नदी की सफाई करने जा रही है. उन्हें किसी से किसी भी तरह का कोई सहयोग नहीं मिलता. सफाई के दौरान निकलने वाली कुछ मछलियों को बेचकर उनका जीवन यापन हो जाता है.
मछुआरों की मेहनत ला रही है रंग : 15 दिनों में तांदुला नदी की सूरत अब बदलने लगी है. जो जगह पूरी तरह जलकुंभियों से पटा रहता था, अब वो साफ नजर आने लगी है. मछुआरा समिति के अध्यक्ष मंगलू राम निषाद ने बताया कि नदी की साफ सफाई करने के लिए काफी मेहनत लगती है. जलकुंभी की जड़ें गहरी होती है,जिसे निकालने में मेहनत लगती है.
''अभी हम यह गेट को खोलकर जलकुंभियों को पानी के बहाव में बाहर निकाल रहे हैं. दूसरी तरफ से भी जाल फंसाकर जलकुंभियों को साफ किया जा रहा है.नदी की सफाई करने में काफी मेहनत लग रही है.'' मंगलू राम निषाद, अध्यक्ष मछुआ समिति
नदी को नया जीवन देने में जुटे मछुआरे : मछुआ समिति के सदस्य श्रवण कुमार ने बताया कि नदी की साफ सफाई करने के दौरान काफी रिस्क उठना पड़ता है.कीड़े मकोड़ों का डर सताते रहता है.वहीं नदी के तल में कांच और लोहे जैसी खतरनाक चीजें होती हैं, जो हमें नुकसान पहुंचा सकती है. हमें काफी अच्छा लगता है जब हम साफ-सफाई करते हैं. डेढ़ महीने अपनी घर परिवार और रोजी-रोटी को छोड़कर हम इस नदी की सफाई में स्वयं ही जुटे हुए हैं.
कई बार साफ करने की हुई कोशिश : आपको बता दें कि नदी सफाई करने का प्रयास कई बार हुआ है. लेकिन गंदगी से पूरी निजात नहीं मिली. नदी की सतह पूरी तरह जलकुंभियों से पटी हुई है. इस कारण पानी से बदबू जैसी शिकायतें आती हैं. लोगों को यहां पर नहाने के लिए भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.आसपास के गांव सिंचाई सहित अन्य चीजों के लिए इसी पानी पर निर्भर रहते हैं. शहर की नालियों का पानी भी इसी नदी में छोड़ा जाता है.जिसके कारण नदी दूषित हुई है. लेकिन अब मछुआरे खुद ही नदी साफ करके इसे नया जीवन देने में जुटे हैं.