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खुशी अपहरण कांड में डेढ़ साल बाद खुली DSP और IO पर कार्रवाई की फाइल, IG ने SSP से मांगी पूरी जानकारी - Khushi kidnapping case

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 9, 2024, 2:01 PM IST

Khushi Kidnapping Case: मुजफ्फरपुर की खुशी अपहरण केस में अब सुपरवीजन करने वाले तत्कालीन डीएसपी व कांड में जांच अधिकारी रहे दारोगा के खिलाफ कार्रवाई की फाइल खोली गई है. कोर्ट के आदेश के बाद यह कार्रवाई की जा रही है.

खुशी अपहरण कांड
खुशी अपहरण कांड (ETV Bharat)

मुजफ्फरपुर: शहर के ब्रह्मपुरा स्थित पमरिया टोला की पांच वर्षीय बच्ची खुशी अपहरण कांड का मामला आज तक सुलझ नहीं सका है. वहीं जांच में देरी को लेकर हाईकोर्ट सख्त है. कोर्ट के आदेश के डेढ़ साल बाद सुपरवीजन करने वाले तत्कालीन डीएसपी व कांड में जांच अधिकारी रहे दारोगा विद्यानंद व इंस्पेक्टर अनिल गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई की फाइल खोली गई है.

जांच अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की खोली गई फाइल: हाइकोर्ट में अवमाननावाद की जानकारी होने पर एसएसपी राकेश कुमार ने मामले की फाइल खंगाली. आईजी शिवदीप वामनराव लांडेय ने भी एसएसपी से पूरे मामले की जानकारी मांगी है. हाइकोर्ट के न्यायधीश राजीव रंजन प्रसाद ने पांच दिसंबर 2022 को ऑर्डर दिया था, जिसमें एसएसपी मुजफ्फरपुर को मामले में केस के
जांच अधिकारी व पर्यवेक्षण अधिकारी की भूमिका की जांच करने के लिए कहा था.

पटना हाईकोर्ट का आदेश: हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मामले की जांच तत्परता व जिम्मेदारी के साथ नहीं की गई है. पर्यवेक्षण में देरी के कारणों की जांच करने का भी हाईकोर्ट ने आदेश दिया था. साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा था कि पर्यवेक्षण के दौरान जारी निर्देशों का अनुपालन उसकी शर्तों के अनुसार क्यों नहीं किया गया. हाईकोर्ट ने मामले की छानबीन में लापरवाही के दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ उचित समय के भीतर प्रशासनिक कार्रवाई का आदेश दिया था.

लापरवाही पर बिंदुवार सवाल: इधर, राजन साह ने बताया कि खुशी के अपहरण का केस दर्ज होने के बाद इस केस के पहले आईओ दारोगा विद्यानंद यादव को बनाया गया था. इसके बाद दूसरे आईओ चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव बनाए गये थे. इसके बाद तीसरे आईओ तत्कालीन थानेदार अनिल कुमार गुप्ता बने थे. तीनों अधिकारी अभी ब्रह्मपुरा थाने में नहीं हैं. पूरे केस का पर्यवेक्षण तत्कालीन डीएसपी रामनरेश पासवान ने किया था. मामले में हाइकोर्ट के आदेश में पुलिस की ओर से बरती गई लापरवाही पर बिंदुवार सवाल उठाए गए थे.

CBI भी नहीं ढूंढ पाई खुशी का सुराग: हाईकोर्ट ने शिथिलता बरतने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश के साथ खुशी की तलाश की जिम्मेवारी सीबीआई को सौंप दी थी. पांच दिसंबर 2022 से सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन, डेढ़ साल बीतने के बाद भी सीबीआई खुशी का सुराग नहीं ढूंढ पाई है, जबकि सीबीआई खुशी के पिता राजन साह का पॅलीग्राफी टेस्ट भी करा चुकी है. इसके अलावा, अन्य कई करीबी रिश्तेदारों को पटना बुलाकर पूछताछ कर चुकी है. राजन साह की मां की भी वैज्ञानिक जांच कराने की सीबीआई की तैयारी है.

मुजफ्फरपुर: शहर के ब्रह्मपुरा स्थित पमरिया टोला की पांच वर्षीय बच्ची खुशी अपहरण कांड का मामला आज तक सुलझ नहीं सका है. वहीं जांच में देरी को लेकर हाईकोर्ट सख्त है. कोर्ट के आदेश के डेढ़ साल बाद सुपरवीजन करने वाले तत्कालीन डीएसपी व कांड में जांच अधिकारी रहे दारोगा विद्यानंद व इंस्पेक्टर अनिल गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई की फाइल खोली गई है.

जांच अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की खोली गई फाइल: हाइकोर्ट में अवमाननावाद की जानकारी होने पर एसएसपी राकेश कुमार ने मामले की फाइल खंगाली. आईजी शिवदीप वामनराव लांडेय ने भी एसएसपी से पूरे मामले की जानकारी मांगी है. हाइकोर्ट के न्यायधीश राजीव रंजन प्रसाद ने पांच दिसंबर 2022 को ऑर्डर दिया था, जिसमें एसएसपी मुजफ्फरपुर को मामले में केस के
जांच अधिकारी व पर्यवेक्षण अधिकारी की भूमिका की जांच करने के लिए कहा था.

पटना हाईकोर्ट का आदेश: हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मामले की जांच तत्परता व जिम्मेदारी के साथ नहीं की गई है. पर्यवेक्षण में देरी के कारणों की जांच करने का भी हाईकोर्ट ने आदेश दिया था. साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा था कि पर्यवेक्षण के दौरान जारी निर्देशों का अनुपालन उसकी शर्तों के अनुसार क्यों नहीं किया गया. हाईकोर्ट ने मामले की छानबीन में लापरवाही के दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ उचित समय के भीतर प्रशासनिक कार्रवाई का आदेश दिया था.

लापरवाही पर बिंदुवार सवाल: इधर, राजन साह ने बताया कि खुशी के अपहरण का केस दर्ज होने के बाद इस केस के पहले आईओ दारोगा विद्यानंद यादव को बनाया गया था. इसके बाद दूसरे आईओ चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव बनाए गये थे. इसके बाद तीसरे आईओ तत्कालीन थानेदार अनिल कुमार गुप्ता बने थे. तीनों अधिकारी अभी ब्रह्मपुरा थाने में नहीं हैं. पूरे केस का पर्यवेक्षण तत्कालीन डीएसपी रामनरेश पासवान ने किया था. मामले में हाइकोर्ट के आदेश में पुलिस की ओर से बरती गई लापरवाही पर बिंदुवार सवाल उठाए गए थे.

CBI भी नहीं ढूंढ पाई खुशी का सुराग: हाईकोर्ट ने शिथिलता बरतने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश के साथ खुशी की तलाश की जिम्मेवारी सीबीआई को सौंप दी थी. पांच दिसंबर 2022 से सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन, डेढ़ साल बीतने के बाद भी सीबीआई खुशी का सुराग नहीं ढूंढ पाई है, जबकि सीबीआई खुशी के पिता राजन साह का पॅलीग्राफी टेस्ट भी करा चुकी है. इसके अलावा, अन्य कई करीबी रिश्तेदारों को पटना बुलाकर पूछताछ कर चुकी है. राजन साह की मां की भी वैज्ञानिक जांच कराने की सीबीआई की तैयारी है.

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