चंडीगढ़: हरियाणा में चुनाव के नतीजे आए हुए तीन सप्ताह बीत चुके हैं. बीजेपी ने दो घंटे में अपना मुख्यमंत्री तय कर दिया. सरकार को शपथ लिए हुए भी करीब दो हफ्ते गुजर चुके हैं. मंत्रिमंडल के विभाग बंट चुके हैं. विधायकों की शपथ भी हो चुकी है. लेकिन कांग्रेस में विधायक दल के नेता का फैसला नहीं हो सका है. कांग्रेस पार्टी के आब्जर्वर विधायकों से मिलकर फीसबैक भी ले चुके हैं लेकिन आलाकमान कोई फैसला नहीं कर पा रहा. चर्चा है कि नेता विपक्ष को लेकर कांग्रेस के अंदर फिर से गुटबाजी चल रही है.
दीपावली के बाद शीतकालीन सत्र- दीपावली के बाद हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र होने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन कांग्रेस में अभी तक नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं हो सका. कांग्रेस के ऑब्जर्वर अपनी रिपोर्ट आलाकमान को भी दे चुके हैं. विधायक दल के नेता को चुनने के लिए चार ऑब्जर्वर चंडीगढ़ भेजे गये थे. इनमें अशोक गहलोत और अजय माकन भी शामिल थे. अजय माकन ने कहा था कि हम अपनी रिपोर्ट आलाकमान को देंगे वही फैसला करेगा. लेकिन अभी तक सस्पेंस बरकरार है.
गुटबाजी की वजह से लटका नेता विपक्ष का फैसला- इधर लगातार चर्चा यह है कि विधायक दल के नेता को लेकर भी पार्टी की गुटबाजी की वजह से भी अभी तक किसी के नाम का ऐलान नहीं कर पाया है. पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के फिर से विधायक दल का नेता बनने की उम्मीद है, क्योंकि उनके गुट के विधायक उनके समर्थन में खड़े हैं. लेकिन हरियाणा में हार के बाद पार्टी में बदलाव की उम्मीद की जा रही है.
सैलजा गुट भी कर रहा दावा- वहीं कुमारी सैलजा का गुट विधायक दल का नया नेता चाह रहा है. ऐसे में कुमारी सैलजा गुट ने पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन बिश्नोई के नाम को आगे किया है. अगर पार्टी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आगे नहीं किया तो फिर उनके गुट से अशोक अरोड़ा विधायक दल के नेता हो सकते हैं. इसके बीच हरियाणा के विधानसभा का अभी सत्रावसान नहीं हुआ है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि नवम्बर के दूसरे सप्ताह में हरियाणा का शीतकालीन सत्र हो सकता है.
क्या कहते है राजनीतिक विश्लेषक- कांग्रेस के विधायक दल के नेता का नाम अभी तक घोषित ना करने के सवालों पर राजनीतिक मामलों के जानकर धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि कांग्रेस के विधायक दल का नेता पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा होंगे या कोई और इसको लेकर फिफ्टी फिफ्टी वाली स्थिति है. पार्टी के अंदर पॉपुलर डिमांड बदलाव की है. राज्य के जो बड़े नेता चुनाव को लीड कर रहे थे, उनको नैतिक तौर पर जिम्मेदारी लेनी होगी.
विधानसभा चुनाव के बाद फैसला- धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि अगर 15 नवंबर से पहले विधानसभा का सत्र होता है तो हो सकता है पार्टी विधायक दल के नेता का नाम घोषित कर दे. अगर सत्र नहीं होता है तो इसका फैसला महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के बाद भी हो सकता है. चुनाव में हार की जिम्मेदारी चुनाव को लीड कर रहे नेताओं की बनती है. ऐसे में किसी नए चेहरे के विधायक दल का नेता चुने जाने की संभावना ज्यादा है. अगर पार्टी हाईकमान को लगेगा कि इस पर जल्द फैसला लेने से पार्टी में टकराव हो सकता है तो ऐसे में पहले बड़े चैलेंज यानी दो राज्यों के चुनाव से निपटना चाहेगा, उसके बाद इस पर फैसला हो सकता है.
चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए टकराव- हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरा भरोसा था कि उसकी सरकार आ रही है. कांग्रेस में कई नेता खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहे थे. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला और सिरसा सांसद कुमारी सैलजा शामिल हैं. कुमारी सैलजा तो खुले तौर कह चुकीं थी कि सीएम का सपना देखने में बुराई क्या है. कुमारी सैलजा सीधे तौर पर हुड्डा के फैसले को नकार रहीं थी और कहती थीं कि आलाकमान तय करेगा. हलांकि जब चुनाव के नतीजे आये तो कांग्रेस बीजेपी से पिछड़ गई. बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकारी बनाई.
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