गया: बिहार के गया पितृ पक्ष मेले में देशभर से लाखों-लाख की संख्या में तीर्थ यात्री गया धाम पहुंचकर अपने पितरों के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड कर रहे हैं. पितृ पक्ष मेले के 15वें दिन यानी इस तिथि को पड़ने वाली आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को वैतरणी सरोवर में तर्पण और गोदान का विधान है. ऐसी मान्यता है कि वैतरणी वेदी पर तर्पण और गोदान से यमपुरी के रास्ते पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति हो जाती है. वहीं इस दिन का इतना माहत्मय है कि 21 कुलों का उद्धार हो जाता है. सबसे पहले यहां स्नान कर तर्पण किया जाता है और फिर गोदान करने का विधान है.
21 कुलों का होता है उद्धार: वैतरणी सरोवर पर गोदान से पितर सीधे यमपुरी पहुंंचते हैं और वहां के रास्ते स्वर्ग लोक को प्राप्त हो जाते हैं. मान्यता है कि यमपुरी पहुंचने के पहले वैतरणी पार करना होता है. वैतरणी पर गोदान से पितर पहुंचते हैं, फिर स्वर्ग लोक को प्राप्त हो जाते हैं. वहीं, वैतरणी स्नान, तर्पण और गोदान से 21 कुलों का उद्धार हो जाता है.
यमपुरी के रास्ते पितरों को मिलता है स्वर्ग: मान्यता है कि गोदान के साथ-साथ ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान भी देना चाहिए. इस तरह आश्विन कृष्ण चतुर्दशी की इस तिथि का बड़ा ही महत्व है. गो दान करने से न सिर्फ पितर वैतरणी के रास्ते स्वर्ग लोक को चले जाते हैं, बल्कि वंशजों के घरों में सुख शांति आती है, दरिद्रता दूर हो जाती है.
त्रैलोक्य में विश्रुुत वैतरणी नदी यहां अवतीर्ण हुई: पुराण शास्त्रों में वैतरणी सरोवर के माहत्मय की कथा है. सनत जी नारद जी से कहते हैं कि मैं बार-बार सत्य कहता हूं कि वैतरणी में तर्पण, गोदान करने से उनके 21 कुल तर जाते हैं और उनका उद्धार हो जाता है. इसमें जरा भी संशय नहीं है. यमराज के द्वार जो वैतरणी नदी है, उस वैतरणी को पार करने की इच्छा गोदान से करता हूं. अशक्त हो या शक्त, कोई भी हो, गोदान अवश्य करना चाहिए. संत जी नारद जी से कहते हैं कि त्रैलोक्य में जो विश्रुत नदी है, वह यहां अवतीर्ण हुई है.
विधि-विधान से करना चाहिए पिंडदान: पितृ पक्ष मेले में 15वें दिन वैतरणी में तर्पण गोदान का विधान है. इस दिन तीर्थयात्री को पूरे विधि विधान के साथ कर्मकांड करने चाहिए, तभी गया तीर्थ का फल पितर को मिलेगा. इससे वंशज भी सुखी संपन्न हो जाते हैं और उनके घर से दरिद्रता चली जाती है, दुखों का नाश हो जाता है. नियमों का पालन कर पिंडदान करने से ही पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. पितर प्रसन्न हो जाते हैं, तो उनके वंशज के घरों में हर तरह की सुख समृद्धि आ जाती है.
2 अक्टूबर को पितृपक्ष मेले का समापन: पितृपक्ष मेला इस बार 17 सितंबर से शुरू हुआ और 2 अक्टूबर को समापन हो जाएगा. इस बार पितृपक्ष मेला 17 दिनों का नहीं, बल्कि 16 दिनों का है. आखिरी दो दिनों यानी की 15वें दिन और 16वें दिन काफी संख्या में तीर्थयात्री के आने की संभावना है, क्योंकि अंतिम दिनों में पिंडदानी एक दिनों के पिंडदान अपने पितरों की निमित्त करने गया जी धाम जरूर आते हैं. ऐसे में मंगलवार और बुधवार को काफी संख्या में पिंडदानियों के आने की संभावना है.
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