शिवहर: बिहार का शिवहर जिला बागमती नदी किनारे बसा हुआ है. आज हम बात करने जा रहे हैं पिपराही की जहां एक किशोर अपने पिता के व्यवसाय को अपने शिक्षा के साथ चला रहा है. अंकित कुमार जिसकी उम्र महज 12 वर्ष है, जो पिपराही के वार्ड 1 का रहने वाले है, जिसके पिता चंदेश्वर शाह 10 सालों से तरबूज की खेती करते आ रहे हैं. तरबूज की खेती करते है, लेकिन उनका बेटा जो सिर्फ 12 वर्ष का जो अपने पिता के व्यपार के साथ अपनी शिक्षा भी पूरी कर रहा है,वो भी बहुत बेहतरीन पैटर्न के साथ.
बागमती नदी के पास तरबूज बेचता है अंकित: किसान का बेटा अंकित पिपराही के कान्वेंट स्कूल में पढ़ाई करता है. अंकित ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यह निर्णय लिया की वो अपनी पढ़ाई के साथ व्यवसाय को भी आगे बढ़ाएगा. दिलचस्प बात यह है कि अंकित बागमती नदी के पास झोपड़ी के निचे बैठकर तरबूज बेचता है, वो बेचते समय जो यात्री उस रास्ते से गुजरते हैं, उसे तरबूज का स्वाद जरूर चखाता है. वहीं इससे यात्री भी उससे बहुत प्रभावित होते हैं.
तरबूज बेचकर बनाया पक्का मकान: अंकित ने बताया कि पहले झोपड़ी का घर था, अब पक्का मकान हो गया है. उसके परिवार के सदस्य पाई-पाई को मोहताज थे. जिसके बाद उन्होंन तरबूज की खेती शुरू की और अब खुद से बेचते हैं. अंकित ने बताया कि वो विद्यालय भी जाता है और बाकि के समय हप्ते के 3 दिन व्यवसाय में हाथ बटाता है. दिलचस्प बात यह है की अंकित ग्राहकों को काफी सम्मान देता है, उन्हें अपने हाथों से तरबूज का स्वाद भी चखाता है.
"मैं स्कूल के अलावा तरबूज भी बेचता हूं. पहले हमें पैंसे की काफी तंगी थी. पूरा परिवार झोपड़ी में रहता था लेकिन अब तरबूज की खेती करने के बाद से हमारा अपना पक्का मकान गया है. मैं बड़ा होकर कृषि विभाग में जाना चाहता हूं."-अंकित कुमार, छात्र
Conclusion: वहीं अंकित के पिता चंदेश्वर शाह ने बताया कि इन दिनों इन फसलों का दाम भी अच्छा है. खरबूज और तरबूज 40 रुपये किलो के रेट पर बिक रहे हैं. उन्होंने कहा कि "अगर खर्च 40 से 45 हजार प्रति एकड़ में आता है तो वहीं मुनाफा लागत से 3 गुन्ना हो जाती है. एक एकड़ की फसल बेचने पर करीब डेढ़ लाख रुपये प्राप्त होंगे." वहीं मेहनत से पिता और बेटे ने परिवार की जिंदगी को गुलजार बना दी है.
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