खूंटीः आदिवासी के लिए सुरक्षित खूंटी लोकसभा सीट पर भी चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है. बीजेपी की ओर से सांसद अर्जुन मुंडा पर पार्टी ने एक फिर से भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है. लेकिन उनकी राह आसान नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में सांसद और विधायक के समर्थक में गुटबाजी की स्थिति देखी जा रही है.
स्थानीय भाजपा नेता कार्यकर्ता अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए एकजुटता के साथ काम में जुट जाएं. ऐसी पहल प्रदेश भाजपा के नेताओं द्वारा अब तक नहीं की गई है. यही कारण है कि गत लोकसभा चुनाव के बाद स्थानीय विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा और सांसद अर्जुन मुंडा के समर्थकों के बीच व्याप्त गुटबाजी को पाटने का प्रयास अभी तक नहीं किया गया है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि खूंटी लोकसभा सीट से अर्जुन मुंडा को पार्टी प्रत्याशी घोषित करने के बाद बुधवार को वो पहली बार संसदीय क्षेत्र के मुख्यालय खूंटी पहुंचे. उनकी अगुवाई और स्वागत के लिए परिसदन में भाजपा जिला कमेटी की ओर से सिर्फ जिला अध्यक्ष चंद्रशेखर गुप्ता और वैसे भाजपाई ही नजर आए जो अमूमन अर्जुन मुंडा के हर कार्यक्रम में यहां शामिल होते रहे हैं. प्रत्याशी घोषित होने के बाद खूंटी पहुंचने पर अर्जुन मुंडा की अगवानी के लिए विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा के समर्थक भाजपा संगठन से जुड़े कोई भी नेता कार्यकर्ता परिसदन में नजर नहीं आए.
इस चुनावी बेला में भी खूंटी भाजपा में गुटबाजी सतह पर साफ नजर आई. इस गुटबाजी के बारे में भाजपा समर्थकों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर उत्पन्न इस गुटबाजी का मतदाताओं में कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. क्योंकि भाजपा समर्थक यहां के मतदाता हमेशा से केंद्रीय नेताओं के प्रभाव में अपने मत का प्रयोग करते रहे हैं. फिर भी इस गुटबाजी का कहीं ना कहीं थोड़ा बहुत असर पड़ने की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. ऐसे में गुटबाजी को पाटने के लिए भाजपा नेताओं के उदासीन रवैये पर भी सवाल उठने लगे हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में खूंटी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा ने कड़े मुकाबले में महज 1445 वोट से जीत हासिल की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में देशव्यापी लहर के बावजूद विगत तीन दशकों से भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित खूंटी से भाजपा प्रत्याशी को हारते-हारते मिली जीत के बाद स्थानीय विधायक और राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे. क्योंकि उस चुनाव में खूंटी से झामुमो समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा के सहोदर बड़े भाई थे. चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा की भूमिका पर उठे सवाल को बल इसलिए भी मिला था कि उस चुनाव में खूंटी लोकसभा अंतर्गत खूंटी विधानसभा से भी भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा से 21 हजार 402 मतों के भारी अंतर से पिछड़ गए थे. जबकि पूर्व के कई लोकसभा चुनावों में खूंटी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा अच्छी खासी मतों से बढ़त बनाती रही है.
यह तो भाजपा प्रत्याशी की किस्मत अच्छी रही कि पूर्व चुनावों की भांति भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को खरसावां और तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी से अच्छी खासी बढ़त मिल गई और वे किसी प्रकार चुनाव जीत गए. इसके साथ छह में से चार विधानसभा क्षेत्रों सिमडेगा, कोलेबिरा, तोरपा और खूंटी में तो कांग्रेस प्रत्याशी ने भाजपा प्रत्याशी से अच्छी खासी बढ़त हासिल कर जीत की दहलीज पर पहुंच गए थे. हालांकि विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा ने अपने ऊपर उठे सवाल का हर मंच पर पूरजोर खंडन किया था. इसके बावजूद उनके ऊपर लगा यह दाग अभी भी पूरी तरह से धूल नहीं सका है. पांच साल बाद भी लोग चुनाव में विधायक की भूमिका पर सवाल खड़े करते रहे हैं.
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