नई दिल्ली: विश्व आर्द्रभूमि दिवस के मौके पर दिल्ली में शुक्रवार को कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें आर्द्रभूमि (वेटलैंड) को लेकर चर्चा की गई. कार्यक्रम में वेटलैंड के जाने-माने विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. आम भाषा में वेटलैंड उन क्षेत्रों को कहा जाता है, जहां पानी पूरे साल या कम से कम 6 महीने तक रहता है. जैसे तालाब, पोखर, नदी, झील इसके अंतर्गत आते हैं.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण ने बताया कि जिस तरीके से जलवायु परिवर्तन की समस्या सामने आ रही है. उसको देखते हुए वेटलैंड को बचाने की अति आवश्यकता है. दिल्ली में अक्सर बात होती है कि नजफगढ़ झील को बचाएंगे, लेकिन कहने से नहीं होगा इस पर काम करने की जरूरत है. दिल्ली के जितने भी झील, तालाब, नदी है उसको बचाने की जरूरत है.
वहीं, डॉ सिद्धार्थ कॉल ने बताया कि वेटलैंड को लेकर जो नियम और कानून बनाए जाते हैं उसका पालन प्रभावी ढंग से होना चाहिए. क्योंकि, खासकर शहरों में देखा जाता है कि वेटलैंड क्षेत्र पर अतिक्रमण होता है और वह प्रभावित लोगों के द्वारा किया जाता है. उन्होंने कहा बीते कुछ वर्षों में दिल्ली के वेटलैंड को लेकर काफी जागरुकता आई है और इस पर काम भी हो रहा है.
प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) के रूप में मनाया जाता है, जिसका मकसद आर्द्रभूमि भूमि को लेकर लोगों को जागरूक करना होता है. क्योंकि आर्द्रभूमि पर्यावरण को बेहतर रखने के लिए अहम योगदान देते हैं. बीते कुछ समय में आधुनिकता के इस दौर में विकास कार्यों की वजह से आर्द्रभूमि क्षेत्र पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा सका है. लेकिन अब बीते कुछ वर्षों से आर्द्रभूमि को संरक्षित करने पर सरकारे जोर दे रही है.
- ये भी पढ़ें: ग्रेटर नोएडा: धनौरी वेटलैंड बनेगा अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल, जल्द मिलेगा रामसर स्थल का दर्जा
बता दें, 2 फरवरी 1971 में सुरक्षित पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण वेटलैंड को संरक्षित करने को लेकर ईरान के रामसर में एक कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसी वजह से 2 फरवरी को विश्व वेटलैंड डे के रूप में मनाया जाता है.