प्रयागराज: प्रयागराज धर्म और आस्था की नगरी और संगम नगरी में तो वैसे ही अनेकों रंग है, लेकिन बात करें अगर यहां के ऐतिहासिक मंदिरों की तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. वेदों और पुराणों की रचना स्थली, 33 करोड़ देवी-देवताओं की वासस्थली और 88 हजार ऋषि मुनियों की तपस्थली प्रयागराज तीर्थ को सभी तीर्थों में सबसे पुनीत माना जाता है. इस तीर्थ नगरी में स्थित मां ललिता देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठाें में माना जाता हैं. यह प्रयागराज मीरापुर में स्थित है.
यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन करने आते हैं. इस तीर्थ नगरी की मान्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के कई राज्यों से यहां आकर लोग दर्शन-पूजन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं. विभिन्न पुराणों एवं दूसरे धर्मग्रंथों में इस तीर्थ नगरी का वर्णन है.
पुराणों में है वर्णन: देवी भागवत में ललिता देवी का वर्णन 108 शक्ति पीठों में आता है. देवी भागवत में लिखा है कि दक्ष द्वारा अपने पति के अपमान को न सह सकीं तथा अपने प्राणों की आहुति दे दी. तब शंकर जी ने अपने गणों के द्वारा यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे.
बताया जाता है कि यह देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए. देवी सती के शरीर के अंश जिन-जिन स्थानों पर गिरे वहां पर देवी पीठ बन गया. त्रिपुरसुंदरी, राजराजेश्वरी, श्रीमाता, श्रीमतसिंहासनेश्वरी जैसे अनेक पावन नामों से विख्यात मां ललिता देवी की पूरे भारत में बड़ी महिमा है.
पूरे दिन भक्तों का लगा रहता है तांता: मां ललिता देवी के मंदिर में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर पर पूरे नवरात्र बड़ी संख्या में पुजारी, साधु, संत और श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. नया काम शुरू करने से पूर्व, वाहन खरीदने पर, नौकरी पाने पर सादी विवाह प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग मां का पूजन करने आते हैं. इसके अलावा यहां पर मुंडन, अन्नप्राशन आदि संस्कारों कराने भी लोग आते हैं.
मंदिर की दीवारें इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं: मंदिर के बाहरी और भीतरी दीवारें इसकी प्राचीनता और भव्यता को दर्शाती हैं. इसके गर्भ गृह में पूर्व दिशा में मां की प्रतिमा स्थापित है. देवी कवच में माता ललिता को हृदय की रक्षा करने वाली शक्ति कहा गया है. इनके दर्शन और ध्यान करने से हृदय की पीड़ा शांत होती है. नवरात्र में मंदिर परिसर में सैकड़ों भक्त जन ललिता सहस्रनाम, दुर्गा सप्तशती, देवी कवच का पाठ कर माता की पूजा करते हैं. शारदीय नवरात्र में प्रतिदिन मां ललिता देवी के दरबार को ताजे और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है. नियमित रूप से सुबह और संध्याकालीन आरती की जाती है.
अष्टमी के दिन छप्पन भोग लगने का है बड़ा महत्व: अष्टमी के दिन माता रानी को छप्पन भोग अर्पित किए जाते है. आदि शक्ति पीठ मां ललिता देवी मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि मां ललिता का दर्शन मात्र कर लेने से बड़े से बड़ा संकट कट जाता है और हृदय से कामना करने पर भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है.
भक्तों की होती है सभी मनोकामनाएं पूरी: यहां आए भक्तों का कहना है कि यह सदैव से यहां पर पूजन करते चले आए हैं और माता से जो भी प्रार्थना की है, वह पूरी हुई है और नवरात्र के दिनों में तो जो पूजा अर्चन किया जाता है. उसका करोड़ों गुना फल मिलता है.
यह भी पढ़ें: नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा से मनोकामनाएं होंगी पूरी, जानिए मां दुर्गा के नौ रूपों को