ETV Bharat / state

ऑनलाइन गेमिंग बर्बाद कर रहा युवाओं का भविष्य, हिमाचल का हर चौथा आदमी मानसिक विकार से ग्रस्त...पढ़िए डिटेल रिपोर्ट - Himachal mental disorder - HIMACHAL MENTAL DISORDER

Himachal Online Gaming Updates: डिजिटल युग हमारे जीवन को जितना आसान बना रहा है उतनी ही नई परेशानियों को भी साथ में खड़ा कर रहा है. आज के समय में युवा ऑनलाइन गेमिंग की लत से कई तरह की बीमारियों को जन्म दें रहे हैं. पढ़िए पूरी खबर...

Himachal mental disorder
ऑनलाइन गेमिंग बर्बाद कर रहा युवाओं का भविष्य
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Apr 15, 2024, 10:39 AM IST

Updated : Apr 15, 2024, 4:10 PM IST

शिमला: वर्तमान समय मोबाइल युग है. ऐसे में आज बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक सबके पास मोबाइल है. ऐसे में ये अब खतरनाक भी बनता जा रहा है. इसमें ऑनलाइन गेमिंग युवाओं का भविष्य बर्बाद करते जा रहे हैं. हिमाचल का हर चौथा व्यक्ति मानसिक विकार से ग्रस्त है. IGMCS की बात की जाए तो मनोचिकित्सा वार्ड में रोजाना 100 से अधिक मरीज मानसिक तनाव का इलाज करवाने पहुंच रहे हैं.

मानसिक तनाव वर्तमान में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इसका शिकार है. ICMR (इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च) की इस साल की जारी की गई रिपोर्ट के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. अन्य राज्यों के साथ हिमाचल में भी 23.9 व्यक्ति मेंटल हैल्थ से जूझ रहे हैं. खासकर युवा और बुजुर्ग इस कारण बेहद परेशान हैं. वो मनोवैज्ञानिक का काउंसिलिंग का सहारा ले हैं. विशेषज्ञों की मानें तो इसके लिए उम्र के हर पड़ाव में स्ट्रैस भी अलग स्तर का है. अधिकतर ये देखने में आता था कि युवाओं की मानसिक परेशानी का एक कारण केवल बढ़ता पढ़ाई का बोझ है. साइकेट्रिस्ट ये बताते हैं कि वर्ततान समय में सबसे ज्यादा चिंता का विषय है कि युवा ऑनलाइन गेमिंग का शिकार होते जा रहे हैं. कम उम्र में बड़ा मुकाम हासिल करने की जिद युवाओं को इस तनाव की ओर खींच रहे हैं. यही कारण है कि आज का युवा अस्पतालों के चक्कर काटता नजर आ रहा है. वहीं बुजुगों की बात की जाए तो उनमें सबसे ज्यादा मानसिक तनाव का कारण अकेलापन है.

आइजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर देवेश शर्मा का कहना है कि "आज के समय में मेंटल हेल्थ का सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन और सोशल मीडिया से कनेक्टिविटी है. उनका कहना है कि सबसे ज्यादा युवा इस वजह से मेंटल हेल्थ का शिकार हो रहे हैं क्योंकि उन्हें सोसाइटी सही तरीके से गाइड नहीं करती."

शहरीकरण के चलते अधिकतर लोग शहर से गांव का रुख कर चुके हैं और इस कारण उम्रदराज लोग गांव में अकेलेपन के चलते मानसिक तनाव में घिरते जा रहे हैं. आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल में हांलाकि अन्य राज्यों के मुकाबले ये आंकड़ें कम है लेकिन आने वाले समय में मानसिक तनाव से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या में और इजाफा होगा.

सबसे ज्यादा उत्तराखंड राज्य में 38.6 फीसदी लोग इस तनाव का शिकार है. सिक्किम में 31.9 लोग इस बीमारी से ग्रसित है. हिमाचल में हालांकि इसके लिए हेल्थ सर्विस सेंटर चल रहे हैं. इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों में जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी समय रहते इन मामलों पर रोक लगाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

कई बार कुछ घटनाएं या बीमारी लोगों की जिंदगी पर ऐसा असर डालती हैं कि वो तनाव का शिकार हो जाते हैं. इसके अलावा अकेलापन भी कई बार डिप्रेशन की वजह बनता है. जिसका असर मेंटल हेल्थ पर पड़ना लाजमी है. ऐसे में इस तरह के मरीजों को भी बहुत ही देखभाल और गाइडेंस की जरूरत होती है. जिसका इको सिस्टम हमारे देश में ना के बराबर है क्योंकि आम परिवारों में डिप्रेशन या तनाव को बीमारी की तरह नहीं देखा जाता. मेंटल हेल्थ, डिप्रेशन जैसी चीजों को लेकर जानकारी के साथ-साथ जागरुकता का भी अभाव है. सबसे ज्यादा युवा इसका शिकार हो रहे हैं.

डॉ. देवेश शर्मा कहते हैं कि युवाओं की मेंटल हेल्थ बिगड़ने की वजह डिप्रेशन और नशा भी है. इसका असर बॉडी लैंग्वेज और फेस एक्सप्रेशन पर भी पड़ता है. इसके लिए यह जरूरी है कि सोशल मीडिया से कनेक्ट होने के बजाय आपस में लोग एक दूसरे से कनेक्ट हों. डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ जैसे मुद्दों पर बात करें और एक्सपर्ट की सलाह हैं. इसके साथ ही यह सबसे जरूरी है कि काउंसिलिंग और ट्रीटमेंट के बाद उसका फॉलोअप लिया जाए जो कि ज्यादातर लोग नहीं करते."

ये भी पढ़ें: हिमाचल में कमजोर हो रहा लोगों का दिल, अचानक हो रही है मौत, डॉक्टर ने दी ये सलाह

ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश में क्यों बढ़ रहे HIV पॉजिटिव मामले, वजह होश उड़ाने वाली है

शिमला: वर्तमान समय मोबाइल युग है. ऐसे में आज बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक सबके पास मोबाइल है. ऐसे में ये अब खतरनाक भी बनता जा रहा है. इसमें ऑनलाइन गेमिंग युवाओं का भविष्य बर्बाद करते जा रहे हैं. हिमाचल का हर चौथा व्यक्ति मानसिक विकार से ग्रस्त है. IGMCS की बात की जाए तो मनोचिकित्सा वार्ड में रोजाना 100 से अधिक मरीज मानसिक तनाव का इलाज करवाने पहुंच रहे हैं.

मानसिक तनाव वर्तमान में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इसका शिकार है. ICMR (इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च) की इस साल की जारी की गई रिपोर्ट के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. अन्य राज्यों के साथ हिमाचल में भी 23.9 व्यक्ति मेंटल हैल्थ से जूझ रहे हैं. खासकर युवा और बुजुर्ग इस कारण बेहद परेशान हैं. वो मनोवैज्ञानिक का काउंसिलिंग का सहारा ले हैं. विशेषज्ञों की मानें तो इसके लिए उम्र के हर पड़ाव में स्ट्रैस भी अलग स्तर का है. अधिकतर ये देखने में आता था कि युवाओं की मानसिक परेशानी का एक कारण केवल बढ़ता पढ़ाई का बोझ है. साइकेट्रिस्ट ये बताते हैं कि वर्ततान समय में सबसे ज्यादा चिंता का विषय है कि युवा ऑनलाइन गेमिंग का शिकार होते जा रहे हैं. कम उम्र में बड़ा मुकाम हासिल करने की जिद युवाओं को इस तनाव की ओर खींच रहे हैं. यही कारण है कि आज का युवा अस्पतालों के चक्कर काटता नजर आ रहा है. वहीं बुजुगों की बात की जाए तो उनमें सबसे ज्यादा मानसिक तनाव का कारण अकेलापन है.

आइजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर देवेश शर्मा का कहना है कि "आज के समय में मेंटल हेल्थ का सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन और सोशल मीडिया से कनेक्टिविटी है. उनका कहना है कि सबसे ज्यादा युवा इस वजह से मेंटल हेल्थ का शिकार हो रहे हैं क्योंकि उन्हें सोसाइटी सही तरीके से गाइड नहीं करती."

शहरीकरण के चलते अधिकतर लोग शहर से गांव का रुख कर चुके हैं और इस कारण उम्रदराज लोग गांव में अकेलेपन के चलते मानसिक तनाव में घिरते जा रहे हैं. आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल में हांलाकि अन्य राज्यों के मुकाबले ये आंकड़ें कम है लेकिन आने वाले समय में मानसिक तनाव से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या में और इजाफा होगा.

सबसे ज्यादा उत्तराखंड राज्य में 38.6 फीसदी लोग इस तनाव का शिकार है. सिक्किम में 31.9 लोग इस बीमारी से ग्रसित है. हिमाचल में हालांकि इसके लिए हेल्थ सर्विस सेंटर चल रहे हैं. इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों में जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी समय रहते इन मामलों पर रोक लगाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

कई बार कुछ घटनाएं या बीमारी लोगों की जिंदगी पर ऐसा असर डालती हैं कि वो तनाव का शिकार हो जाते हैं. इसके अलावा अकेलापन भी कई बार डिप्रेशन की वजह बनता है. जिसका असर मेंटल हेल्थ पर पड़ना लाजमी है. ऐसे में इस तरह के मरीजों को भी बहुत ही देखभाल और गाइडेंस की जरूरत होती है. जिसका इको सिस्टम हमारे देश में ना के बराबर है क्योंकि आम परिवारों में डिप्रेशन या तनाव को बीमारी की तरह नहीं देखा जाता. मेंटल हेल्थ, डिप्रेशन जैसी चीजों को लेकर जानकारी के साथ-साथ जागरुकता का भी अभाव है. सबसे ज्यादा युवा इसका शिकार हो रहे हैं.

डॉ. देवेश शर्मा कहते हैं कि युवाओं की मेंटल हेल्थ बिगड़ने की वजह डिप्रेशन और नशा भी है. इसका असर बॉडी लैंग्वेज और फेस एक्सप्रेशन पर भी पड़ता है. इसके लिए यह जरूरी है कि सोशल मीडिया से कनेक्ट होने के बजाय आपस में लोग एक दूसरे से कनेक्ट हों. डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ जैसे मुद्दों पर बात करें और एक्सपर्ट की सलाह हैं. इसके साथ ही यह सबसे जरूरी है कि काउंसिलिंग और ट्रीटमेंट के बाद उसका फॉलोअप लिया जाए जो कि ज्यादातर लोग नहीं करते."

ये भी पढ़ें: हिमाचल में कमजोर हो रहा लोगों का दिल, अचानक हो रही है मौत, डॉक्टर ने दी ये सलाह

ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश में क्यों बढ़ रहे HIV पॉजिटिव मामले, वजह होश उड़ाने वाली है

Last Updated : Apr 15, 2024, 4:10 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.