सिरमौर: गिरि पावर प्रोजेक्ट में बिजली उत्पादन घटकर 10 मेगावॉट पर आ सिमटा है. 60 मेगावॉट की इस परियोजना में मौजूदा समय में सिर्फ एक टरबाइन के सहारे बिजली उत्पादन चल रहा है. इसकी बड़ी वजह ये है कि विंटर सीजन में गिरि नदी का जलस्तर काफी घट गया है. इसका असर अब सीधे तौर पर बिजली परियोजनाओं पर भी दिख रहा है.
हालांकि, बिजली बोर्ड का जनरेशन विभाग पावर प्रोजेक्ट में उत्पादन का घटना नुकसान की श्रेणी में नहीं मानता. इतना जरूर है कि सर्दियों के मौसम में बिजली की खपत ज्यादा होने से बोर्ड बाहरी राज्यों से ग्रिड से बिजली ले रहा है. इसके बदले पीक सीजन पर हिमाचल बाहरी राज्यों को बिजली सप्लाई करता है. सूत्रों की मानें तो जिला सिरमौर में 200 मेगावॉट प्रतिदिन बिजली की खपत हो रही है. इसकी पूर्ति उत्तराखंड के खोदरी माजरी और पंजाब जैसे राज्यों से की जा रही है.
क्या होता है लीन सीजन
सर्दियों के मौसम में पानी की कमी होने के कारण बिजली बोर्ड इसे लीन सीजन मानता है. यानी जब पानी की मात्रा ही कम हो गई है तो उत्पादन भी पानी के प्रवाह और स्टॉक के अनुसार ही किया जा रहा है. विभाग बिजली उत्पादन में गिरावट को तब घाटे की श्रेणी में मानता है जब पानी भरपूर हो और जनरेशन नहीं हो पा रही हो.
बरसात के दिनों में होता है 50 मेगावॉट उत्पादन
70 के दशक का ये पावर प्रोजेक्ट की मशीनरी भी अब काफी पुरानी हो चुकी है. इस परियोजना की क्षमता 60 मेगावॉट की है, लेकिन पुराने हो चुके इस प्रोजेक्ट में बरसात के दिनों में 50 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है. हालांकि, इसके जीर्णोद्धार के लिए भी योजना तैयार की गई है. इसके आधुनिकीकरण के लिए डीपीआर सरकार को भेजी गई है. फिलहाल, अभी बजट का प्रावधान नहीं हो पाया.
क्या बोले अधीक्षण अभियंता
उधर अधीक्षण अभियंता जनरेशन ई. आरएस ठाकुर ने बताया कि, 'गिरि नदी में पानी की कमी के चलते पावर हाउस की क्षमता 50 मेगावॉट से घटकर 10 मेगावॉट पर आ गई है. हालांकि, ये पावर हाउस 60 मेगावॉट का है, लेकिन पुरानी पड़ चुकी मशीनरी की वजह से पीक सीजन में इसका उत्पादन 50 मेगावॉट रहता है. मौजूदा समय में एक टरबाइन से बिजली उत्पादन किया जा रहा है. दूसरी टरबाइन मेंटेनेंस पर है. बिजली उत्पादन का गिरना फिलहाल नुकसान की श्रेणी में नहीं आता है.'