कोरबा : एक कलाकार की नजर कबाड़ और कचरे को भी आकर्षण का केंद्र बना सकती है. कुछ ऐसा ही नजारा कोरबा जिले के बालको के सेक्टर 3 में देखा जा सकता है.जहां 1940 के दशक में भुखमरी और अकाल के दौर को दुर्गा पंडाल में दर्शाया गया है. पूरा देश नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना में लीन है. दुर्गा पंडाल समितियां अपने-अपने स्तर पर दुर्गा पंडाल का निर्माण करके मां दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं. इस साल कोरबा के बालको में 40 के दशक के अकाल को दुर्गा पंडाल का थीम बनाया गया है. जिसके माध्यम से ये बताने का प्रयास है किया गया है कि उस समय विपरीत हालात में कैसे दुर्गा पूजा का आयोजन होता था और जूट के बोरे(बारदाना) का अपना महत्व हुआ करता था.
भुखमरी और अकाल की थीम पर बना पंडाल : बालको नगर के सेक्टर तीन दुर्गा समिति के सदस्य सुवेन्दू घोष कहते हैं कि 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बंगाल और पूरे देश में भयंकर अकाल पड़ा था. भुखमरी जैसे हालात थे, उस समय खाने के लिए अनाज नहीं था. पहनने के लिए कपड़ा नहीं था. उस समय बोरा से पंडाल बनाए गए थे.बांस काटकर पंडाल बनाए गए थे.हमने इस बार उसी तरह का एक रूप देने का कोशिश की है.
![Bengali artisans worked hard](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10-10-2024/cg-krb-02-uniquedurgapandalinkrba-avb-spl-7208587_10102024153220_1010f_1728554540_702.jpg)
आप जगह-जगह पंडाल के अंदर देखेंगे जहां चित्रण किया गया है. बैलगाड़ी और लोग कुछ सामान यहां से वहां शिफ्ट कर रहे हैं. गांव के गांव पलायन कर रहे हैं.इस तरह का चित्रण करने का हमने कोशिश किया है. बंगाल की एक गांव की तस्वीर हमने ली है- सुवेंदु घोष, बालको दुर्गा पूजा समिति के सदस्य
पश्चिम बंगाल के कलाकारों का वर्चस्व : इस दुर्गा उत्सव समिति का संचालन बंगाली समाज करता है. पंडाल को तैयार करने के लिए कारीगर भी बंगाल से ही बुलाए गए हैं. समिति के सदस्यों ने बताया कि बंगाल के कलाकार पूरे भारतवर्ष में फैले हुए हैं. यही लोग हर साल नई-नई थीम लाते हैं.यह थीम उन्होंने हमें सुझाया था और हमें पसंद भी आया. इसी थीम पर पंडाल बनाया गया.जिसे लोग पसंद कर रहे हैं.