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कोरबा में एक साल के भीतर मिले 6000 मानसिक रोगी, मनोचिकित्सकों की कमी से जूझ रहा विभाग

बीते एक पखवाड़े में कोरबा में 164 नए मानसिक मरीज मिले हैं. एक्सपर्ट डॉक्टरों की कमी से मरीजों को इलाज में दिक्कत हो रही है.

INCREASING NUMBER OF MENTALLY ILL
स्ट्रेस के चलते ये बीमारी गंभीर रुप ले रही (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 10, 2024, 5:16 PM IST

कोरबा: अकेले मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा में मार्च 2023 से लेकर अप्रैल 2024 तक 6423 ऐसे मरीज सामने आए हैं, जिन्हें किसी न किसी तरह का मानसिक रोग है. वह बेचैनी, घबराहट, डिप्रेशन, अवसाद या फिर किसी बुरी लत के कारण मानसिक रोग की गिरफ्त में हैं. मेडिकल कॉलेज से उन्हें नियमित तौर पर इलाज भी दिया जा रहा है, जिससे वह अपने दिमाग का ख्याल रखें और एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें.

एक साल में 6000 मानसिक रोगी मिले: कोरबा जैसे औद्योगिक जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना होने के बाद मनोचिकित्सा विभाग भी शुरू किया गया है. हालांकि विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी अब भी बनी हुई है. इसके बावजूद भी मनोचिकित्सा विभाग, उपलब्ध संसाधनों में लोगों को सुविधा उपलब्ध करा रहा है.

एक्सपर्ट डॉक्टरों की कमी (ETV Bharat)

एक पखवाड़े में 164 नए मरीज मिले: कोरबा में एक पखवाड़े में 164 नए मरीज सामने आए हैं, जबकि पुराने 340 मरीज ऐसे हैं, जो नियमित अंतरालों पर अस्पताल के टच में हैं और वह अपनी दवाइयां ले रहे हैं. गांजा पीने वाले 70 तो शराब की लत वाले 120 और अन्य तरह का नशा करने वाले 25 लोग मनोचिकित्सा विभाग से अपना इलाज कर रहे हैं ताकि वह नशे की गिरफ्त से बाहर निकल सकें.

मनोरोग अब भी समझा जाता है सामाजिक कलंक की तरह: मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा में मनोचिकित्सा विभाग के नोडल डॉ अशोक शाक्य कहते हैं कि अब भी हमारे समाज में मानसिक रोग को एक सामाजिक कलंक की तरह देखा जाता है. इस सोच को बदलना होगा. यदि कोई अवसाद से ग्रसित है, डिप्रेशन में है तो उसे तत्काल डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

कई बार लोग दवा शुरू तो करते हैं लेकिन इसे बीच में ही छोड़ देते हैं. जबकि मनोरोगों की दवा को असर करने में कम से कम 21 दिन का समय लगता है. इसके बाद आप देखेंगे कि यही किसी जादू की तरह असर करता है. : डॉ अशोक शाक्य, नोडल अधिकारी, मनोचिकित्सा विभाग

एक्सपर्ट डॉक्टर की राय जरुर मानें: डॉ. अशोक शाक्य कहते हैं यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह से हम सामान्य तौर पर बीपी शुगर की दवा लेते हैं, लेकिन लोग संकोचवश सामने नहीं आते. इसलिए यदि इस तरह की कोई भी परेशानी है तो तत्काल मनोचिकित्सा विभाग में संपर्क करना चाहिए. दवाई लेनी चाहिए. इसके लिए विशेष दवाइयां आती हैं. यदि आप यहां आने में संकोच महसूस कर रहे हैं. तो टोल फ्री नंबर भी है. वहां भी फोन करके आप मार्गदर्शन ले सकते हैं. अपने मन की बात बता सकते हैं, लेकिन हर हाल में इस विषय पर बात होनी चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य पर बात करने का समय आ गया है.

बुरी लत और तनाव से बचें: डॉ. अशोक शाक्य कहते हैं कि आमतौर पर जब लोगों को अपने मन मुताबिक लक्ष्य हासिल नहीं होता. तब वह गलत दिशा में भटक जाते हैं. वह बुरी लत में पड़ जाते हैं. मॉडर्नाइजेशन के दौर में कई बार लोग मनमुताबिक रिजल्ट नहीं मिलने पर मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं.

ये हैं बड़ी वजह

⦁ लगातार टारगेट ओरिएंटेड काम

⦁ व्यस्त दिनचर्या

⦁ निजी जीवन में हुआ बदलाव

⦁ सामाजिक दबाव के कारण नहीं कराते इलाज

⦁ लोग नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं.

इन बातों का रखें ख्याल

⦁ अनियमित दिनचर्या से बचना चाहिए.

⦁ अच्छा हेल्दी भोजन लेना चाहिए.

⦁ अपनी रूटीन में मेडिटेशन और कसरत को शामिल करें.

⦁ मनवांछित लक्ष्य नहीं मिलता है, तब भी अपनी सीमाओं को समझें और सच को स्वीकार करें.

⦁ मानसिक स्वास्थ्य के विषय में खुलकर चर्चा करें.

⦁ सही समय पर सही इलाज कराएं.

⦁ दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए जागरूक रहें.

⦁ मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरुरी और आसान भी.

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एक साल में 6000 मानसिक रोगी मिले: कोरबा जैसे औद्योगिक जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना होने के बाद मनोचिकित्सा विभाग भी शुरू किया गया है. हालांकि विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी अब भी बनी हुई है. इसके बावजूद भी मनोचिकित्सा विभाग, उपलब्ध संसाधनों में लोगों को सुविधा उपलब्ध करा रहा है.

एक्सपर्ट डॉक्टरों की कमी (ETV Bharat)

एक पखवाड़े में 164 नए मरीज मिले: कोरबा में एक पखवाड़े में 164 नए मरीज सामने आए हैं, जबकि पुराने 340 मरीज ऐसे हैं, जो नियमित अंतरालों पर अस्पताल के टच में हैं और वह अपनी दवाइयां ले रहे हैं. गांजा पीने वाले 70 तो शराब की लत वाले 120 और अन्य तरह का नशा करने वाले 25 लोग मनोचिकित्सा विभाग से अपना इलाज कर रहे हैं ताकि वह नशे की गिरफ्त से बाहर निकल सकें.

मनोरोग अब भी समझा जाता है सामाजिक कलंक की तरह: मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा में मनोचिकित्सा विभाग के नोडल डॉ अशोक शाक्य कहते हैं कि अब भी हमारे समाज में मानसिक रोग को एक सामाजिक कलंक की तरह देखा जाता है. इस सोच को बदलना होगा. यदि कोई अवसाद से ग्रसित है, डिप्रेशन में है तो उसे तत्काल डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

कई बार लोग दवा शुरू तो करते हैं लेकिन इसे बीच में ही छोड़ देते हैं. जबकि मनोरोगों की दवा को असर करने में कम से कम 21 दिन का समय लगता है. इसके बाद आप देखेंगे कि यही किसी जादू की तरह असर करता है. : डॉ अशोक शाक्य, नोडल अधिकारी, मनोचिकित्सा विभाग

एक्सपर्ट डॉक्टर की राय जरुर मानें: डॉ. अशोक शाक्य कहते हैं यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह से हम सामान्य तौर पर बीपी शुगर की दवा लेते हैं, लेकिन लोग संकोचवश सामने नहीं आते. इसलिए यदि इस तरह की कोई भी परेशानी है तो तत्काल मनोचिकित्सा विभाग में संपर्क करना चाहिए. दवाई लेनी चाहिए. इसके लिए विशेष दवाइयां आती हैं. यदि आप यहां आने में संकोच महसूस कर रहे हैं. तो टोल फ्री नंबर भी है. वहां भी फोन करके आप मार्गदर्शन ले सकते हैं. अपने मन की बात बता सकते हैं, लेकिन हर हाल में इस विषय पर बात होनी चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य पर बात करने का समय आ गया है.

बुरी लत और तनाव से बचें: डॉ. अशोक शाक्य कहते हैं कि आमतौर पर जब लोगों को अपने मन मुताबिक लक्ष्य हासिल नहीं होता. तब वह गलत दिशा में भटक जाते हैं. वह बुरी लत में पड़ जाते हैं. मॉडर्नाइजेशन के दौर में कई बार लोग मनमुताबिक रिजल्ट नहीं मिलने पर मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं.

ये हैं बड़ी वजह

⦁ लगातार टारगेट ओरिएंटेड काम

⦁ व्यस्त दिनचर्या

⦁ निजी जीवन में हुआ बदलाव

⦁ सामाजिक दबाव के कारण नहीं कराते इलाज

⦁ लोग नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं.

इन बातों का रखें ख्याल

⦁ अनियमित दिनचर्या से बचना चाहिए.

⦁ अच्छा हेल्दी भोजन लेना चाहिए.

⦁ अपनी रूटीन में मेडिटेशन और कसरत को शामिल करें.

⦁ मनवांछित लक्ष्य नहीं मिलता है, तब भी अपनी सीमाओं को समझें और सच को स्वीकार करें.

⦁ मानसिक स्वास्थ्य के विषय में खुलकर चर्चा करें.

⦁ सही समय पर सही इलाज कराएं.

⦁ दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए जागरूक रहें.

⦁ मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरुरी और आसान भी.

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