नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए अंडरग्रेजुएट (यूजी) एडमिशन पॉलिसी लॉन्च कर दी है. इस साल 71 हजार छात्रों को एडमिशन दिया जाएगा, जिसमें भारत सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार, एससी 15 प्रतिशत, एसटी 7.5 प्रतिशत व ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) और एनसीवेब के लिए भी दाखिला संबंधी सभी जानकारी दी गई, लेकिन पिछले साल की तरह इस साल भी एससी/एसटी व ओबीसी छात्रों के जाति प्रमाण पत्र न होने पर अंडरटेकिंग लेकर प्रोविजनल एडमिशन करने संबंधी जानकारी नहीं दी गई. छात्रों के पास एससी/एसटी व ओबीसी सर्टिफिकेट न होने पर उससे अंडरटेकिंग फॉर्म भरवाने के लिए कितना समय दिया गया, ये भी नहीं बताया गया. जबकि पिछले साल भी आरक्षित श्रेणी के छात्रों की सीटें इसलिए खाली रह गई थीं कि उनका जाति प्रमाण पत्र समय पर नहीं बन पाया था.
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने डीयू कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर एससी/एसटी व ओबीसी छात्रों के जाति प्रमाण पत्र न होने पर उससे अंडरटेकिंग लेकर प्रोविजनल एडमिशन दिए जाने की मांग की है. उन्होंने बताया है कि अन्य विश्वविद्यालयों में अंडरटेकिंग के माध्यम से प्रोविजनल एडमिशन दिया जाता है.
साल न होने दें खराब: फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने डीयू कुलपति से मांग की है कि, जिनके पास ओबीसी (नॉन क्रीमी लेयर) जाति प्रमाण पत्र 31 मार्च, 2024 के बाद का नहीं है उन छात्रों से अंडरटेकिंग लेकर प्रोविजनल एडमिशन दे दिया जाए. उन्होंने बताया कि जिन छात्रों के पास सीयूईटी फॉर्म भरने से पूर्व पुराना जाति प्रमाण पत्र था, अभी उन्होंने अपना जाति प्रमाण पत्र नवीनीकरण कराने के लिए दिया है. अगर सरकारी ऑफिस समय पर जाति प्रमाण पत्र बनाकर नहीं दे पाता है. तो एडमिशन के समय उन छात्रों को जाति प्रमाण पत्र के न होने पर रोका न जाए, बल्कि उन छात्रों से अंडरटेकिंग फॉर्म भरवाकर एडमिशन दे दिया जाए, ताकि उसका साल खराब न होने पाए.
नहीं दी जाती ये जानकारी: पत्र में लिखा है कि, फोरम मांग करता है कि शिक्षा मंत्रालय व यूजीसी समय-समय पर केंद्र सरकार की आरक्षण नीति संबंधी जानकारी सर्कुलर के माध्यम से छात्रों/शिक्षकों/कर्मचारियों के बीच जारी करता रहा है. यह जानकारी विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्थान को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होती है, लेकिन कोई भी कॉलेज एससी/एसटी व ओबीसी छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े और विषयवार बची आरक्षित वर्ग की सीटों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करता है. न ही वे पिछले वर्ष आरक्षित वर्ग की खाली रह गई सीटों का ब्यौरा अपलोड करते हैं. और तो और वे आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के खाली पदों की संख्या, बैकलॉग पदों का ब्यौरा आदि को वेबसाइट पर अपलोड नहीं करते हैं. जबकि यूजीसी हर साल एडमिशन प्रक्रिया शुरू होने से पूर्व व बीच-बीच में आरक्षण संबंधी जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए सर्कुलर व निर्देश जारी करती है.
ओबीसी कोटे की सीट में इजाफा: उन्होंने यह मांग की है कि शिक्षा मंत्रालय व यूजीसी के आरक्षण संबंधी जारी किए गए सर्कुलर को लागू करने का सख्त निर्देश दिया जाए, ताकि संविधान प्रदत्त आरक्षण नियमों का लाभ सभी शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्रों को मिल सकें. आरक्षित श्रेणी के छात्रों की सीटें क्यों खाली रह जाती हैं. डॉ. सुमन ने बताया कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के कारण एससी/एसटी व ओबीसी कोटे की सीटों में इजाफा हुआ है और हर साल आरक्षित वर्ग की सीटों पर ज्यादा छात्र विभिन्न कोर्सेज में प्रवेश के लिए आवेदन करते हैं. एडमिशन के पहले, दूसरे राउंड में आरक्षित वर्ग के बहुत कम छात्र दाखिला ले पाते हैं. यदि कॉलेज और विश्वविद्यालय के विभाग आरक्षित वर्ग की सीटों का कट-ऑफ कम रखें तो आरक्षित वर्ग के छात्र प्रवेश ले पाएंगे.
खाली रह जाती है सीटें: होता यह है कि आरक्षित वर्ग की सीटें खाली पड़ी रहती हैं. जब इन सीटों को भरने के लिए प्रशासन का दबाव आता है, तब जाकर कट-ऑफ कम की जाती है. यह अक्सर सितंबर और अक्टूबर के महीने में होता है, तब तक ये छात्र दूसरे प्राइवेट विश्वविद्यालय और कॉलेजों में प्रवेश ले चुके होते हैं. परिणामस्वरूप कई स्पॉट राउंड निकालने के बाद भी सीटें खाली रह जाती हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय को सुझाव दिया कि जब तक एससी/एसटी व ओबीसी कोटे की सीटें न भरें तब तक विश्वविद्यालय को आरक्षित वर्ग के प्रवेश संबंधी अंकों का प्रतिशत कम रखना चाहिए. यदि विश्वविद्यालय आरक्षित वर्ग के कट ऑफ के अंकों को कम नहीं करेगा तो ये सीटें हमेशा खाली ही रह जाएंगी.
यह भी पढ़ें- प्रोबेशन काल में शिक्षिकाओं को मिलेगा मातृत्व अवकाश, डीयू ने जारी किया सर्कुलर