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एनकाउंटर में गोली लगने के बाद भी AK-47 से नक्सलियों पर गोलियों की बौछार करते रहे श्रीकांत, कहा-आतंक का करेंगे अंत - Bijapur encounter update story - BIJAPUR ENCOUNTER UPDATE STORY

16 अप्रैल को बीजापुर के छोटेबेठिया के जंगल में जवानों ने 29 नक्सलियों को मार गिराया. मारे गए सालों से बस्तर में आतंक का पर्याय बनकर दहशत फैला रहे थे. बीजापुर मुठभेड़ में घायल जवान ने बताई एनकाउंटर की पूरी कहानी.

BIJAPUR ENCOUNTER UPDATE STORY
श्रीकांत श्रीमाली से सुनिए बीजापुर मुठभेड़ की पूरी कहानी
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 19, 2024, 6:48 PM IST

श्रीकांत श्रीमाली से सुनिए बीजापुर मुठभेड़ की पूरी कहानी

रायपुर: बीजापुर मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को मार गिराने वाले जवानों की तारीफ पूरा देश कर रहा है. खुद केंद्रीय गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुखिया विष्णु देव साय जवानों की तारीफ कर चुके हैं. बीजापुर मुठभेड़ की असल कहानी जितनी आसान लगती है उतनी ही वो मुश्किलों से भरी रही. बीजापुर मुठभेड़ में हमारे तीन जवान बुरी तरह से जख्मी हुए. किसी के हाथ में गोली लगी तो किसी के पैर में जख्म लगा. जख्मी जवानों में से एक डीआरजी के श्रीकांत श्रीमाली भी हैं.

''नक्सलियों पर काल बनकर टूटे थे हम'': बीजापुर मुठभेड़ में शामिल शामिल डीआरजी के जवान श्रीकांत श्रीमाली ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में मुठभेड़ की पूरी कहानी बयां की. श्रीकांत ने बताया कैसे पहले बड़े अफसरों का फोन आया. श्रीमाली ने बताया कि सभी लोग कैंप में थे. अफसरों ने बताया कि उनको बड़े नक्सल ऑपरेशन पर जाना है. सूचना मिली है कि नक्सलियों का एक बड़ा दल जंगल में मौजूद है.

अफसरों के निर्देश मिलते ही हम रात दस बजे के करीब जंगल की ओर कूच गए गए. पूरी रात हम बड़ी ही सावधान और सतर्कता के साथ चलते रहे. करीब 12 घंटे लगातार चलते रहने के बाद हम उस जगह पर पहुंचे जहां नक्सली मौजूद थे. हमने घेराबंदी को नक्सलियों को अपने ट्रैप में कर लिया और गोलियां बरसानी शुरु कर दी. नक्सलियों ने भी अपनी ओर से गोलियों की बौछार कर दी. हमलोग 180 जवान थे. हमने एक साथ नक्सलियों पर करारा वार किया. हमले के दौरान मेरे पैर में नक्सलियों की चलाई एक गोली लग गई. मैं हिम्मत नहीं हारा साथियों के साथ एनकाउंटर में डटा रहा. गोलियों की बौछार के बीच हमने फायरिंग जारी रखी. - श्रीकांत श्रीमाली, बीजापुर एनकाउंटर में जख्मी डीआरजी जवान


सवाल: नक्सली मूवमेंट की सूचना के बाद क्या हुआ ?
जवाब: जंगल में नक्सलियों के होने की जानकारी मिली थी. हमें बताया गया कि वहां पर 35 नक्सली हैं. हम रात में 10:00 बजे ऑपरेशन के लिए निकले थे.पूरी रात हम चलते रहे. सुपह दस बजे हम वहां पर पहुंचे जहां पर नक्सलियों के होने की खबर मिली थी. मौके पर पहुंचते ही हमने घेराबंदी शुरु कर दी. दोनों ओर से फायरिंग होने लगी.


सवाल: इस ऑपरेशन में कितने जवान शामिल थे ?
जवाब: हम 180 जवान के साथ उसे क्षेत्र में नक्सलियों से मोर्चा लेने गए थे.

सवाल: क्या इस तरह की स्थिति निर्मित हो सकती है इसकी जानकारी पहले से थी ?
जवाब: नक्सलियों की वहां पर मौजूदगी की सूचना मिली थी. सूचना मिलते ही हम अपनी यूनिट के साथ वहां के लिए निकल पड़े.


सवाल: क्या इसके पहले भी आप किसी अभियान में शामिल थे ?
जवाब: मैं 2016-17 से लगातार नक्सली अभियानों में डीआरजी टीम का हिस्सा रहा हूं.

सवाल: अब तक कितने नक्सलियों को आपने मार गिराया है ?
जवाब: इस बार मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए. इसके पहले भी जो मुठभेड़ हुई उसमे भी कई नक्सलियों को हमने ढेर किया है.

सवाल: जिस क्षेत्र में ऑपरेशन किया गया उस इलाके में घना जंगल है. वहां पर कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विभाग से कैसा सहयोग मिलता है.

जवाब: प्रभारी को पूरी जानकारी मिलती है, उसके हिसाब से हम आगे बढ़ते हैं. नक्सल एरिया में तैनाती होने के चलते हम हमेशा रेडी रहते हैं.जैसे ही ऑपरेशन की सूचना मिलती है हम वहां के लिए रवाना हो जाते हैं.


सवाल: आपको कहां पर चोट लगी है ?
जवाब: मेरे दाहिने पैर में गोली लगकर आर पार हो गई थी.

सवाल: आज आप घायल हैं जब यहां से ठीक होकर जाएंगे तो क्या फिर से उस क्षेत्र में ड्यूटी पर निकलेंगे या फिर अपना ट्रांसफर कराने की सोचेंगे ?

जवाब: ठीक होने के बाद क्षेत्र में मैं वापस जाऊंगा और अपना काम करूंगा.

सवाल: उस क्षेत्र में काम करने के लिए जो शासन प्रशासन से सुविधा मिलनी चाहिए क्या वह पर्याप्त है या उसमें कुछ कमी है ?
जवाब: पूरी सुविधाएं मिल रही हैं. उस क्षेत्र में सुविधा की कोई कमी नहीं है.



घायल जवान श्रीकांत श्रीमाली की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है. पहले से वो काफी बेहतर हैं. इनकी थाई में गोली लगी थी. हमने सर्जरी के जरिए गोली निकाल दी. घाव भरने में सामान्य रुप से जितना वक्त लगता है उतना वक्त ठीक होने में लगेगा. मैं समझता हूं कि हफ्ते दस दिनों में ये पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे. - श्रीकांत श्रीमाली का इलाज करने वाले डॉक्टर

बस्तर में नक्सलियों के लिए काल हैं डीआरजी के जवान: डीआरजी के जवानों को जिला रिजर्व गार्ड के नाम से जाना जाता है. डीआरजी के जवान छत्तीसगढ़ पुलिस बल का विशेष दस्ता है. इसमें बड़ी संख्या में स्थानीय आदिवासियों को शामिल किया गया है. स्थानीय भाषा के जानकार होने का फायदा भी सरकार को मिलता है. माओवादियों से लड़ने के लिए इनको खास ट्रेनिंग दी जाती है. बस्तर में हुए कई बड़े नक्सली अभियान के दौरान डीआरजी के जवानों ने बड़ी भूमिका अदा की है.

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रायपुर: बीजापुर मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को मार गिराने वाले जवानों की तारीफ पूरा देश कर रहा है. खुद केंद्रीय गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुखिया विष्णु देव साय जवानों की तारीफ कर चुके हैं. बीजापुर मुठभेड़ की असल कहानी जितनी आसान लगती है उतनी ही वो मुश्किलों से भरी रही. बीजापुर मुठभेड़ में हमारे तीन जवान बुरी तरह से जख्मी हुए. किसी के हाथ में गोली लगी तो किसी के पैर में जख्म लगा. जख्मी जवानों में से एक डीआरजी के श्रीकांत श्रीमाली भी हैं.

''नक्सलियों पर काल बनकर टूटे थे हम'': बीजापुर मुठभेड़ में शामिल शामिल डीआरजी के जवान श्रीकांत श्रीमाली ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में मुठभेड़ की पूरी कहानी बयां की. श्रीकांत ने बताया कैसे पहले बड़े अफसरों का फोन आया. श्रीमाली ने बताया कि सभी लोग कैंप में थे. अफसरों ने बताया कि उनको बड़े नक्सल ऑपरेशन पर जाना है. सूचना मिली है कि नक्सलियों का एक बड़ा दल जंगल में मौजूद है.

अफसरों के निर्देश मिलते ही हम रात दस बजे के करीब जंगल की ओर कूच गए गए. पूरी रात हम बड़ी ही सावधान और सतर्कता के साथ चलते रहे. करीब 12 घंटे लगातार चलते रहने के बाद हम उस जगह पर पहुंचे जहां नक्सली मौजूद थे. हमने घेराबंदी को नक्सलियों को अपने ट्रैप में कर लिया और गोलियां बरसानी शुरु कर दी. नक्सलियों ने भी अपनी ओर से गोलियों की बौछार कर दी. हमलोग 180 जवान थे. हमने एक साथ नक्सलियों पर करारा वार किया. हमले के दौरान मेरे पैर में नक्सलियों की चलाई एक गोली लग गई. मैं हिम्मत नहीं हारा साथियों के साथ एनकाउंटर में डटा रहा. गोलियों की बौछार के बीच हमने फायरिंग जारी रखी. - श्रीकांत श्रीमाली, बीजापुर एनकाउंटर में जख्मी डीआरजी जवान


सवाल: नक्सली मूवमेंट की सूचना के बाद क्या हुआ ?
जवाब: जंगल में नक्सलियों के होने की जानकारी मिली थी. हमें बताया गया कि वहां पर 35 नक्सली हैं. हम रात में 10:00 बजे ऑपरेशन के लिए निकले थे.पूरी रात हम चलते रहे. सुपह दस बजे हम वहां पर पहुंचे जहां पर नक्सलियों के होने की खबर मिली थी. मौके पर पहुंचते ही हमने घेराबंदी शुरु कर दी. दोनों ओर से फायरिंग होने लगी.


सवाल: इस ऑपरेशन में कितने जवान शामिल थे ?
जवाब: हम 180 जवान के साथ उसे क्षेत्र में नक्सलियों से मोर्चा लेने गए थे.

सवाल: क्या इस तरह की स्थिति निर्मित हो सकती है इसकी जानकारी पहले से थी ?
जवाब: नक्सलियों की वहां पर मौजूदगी की सूचना मिली थी. सूचना मिलते ही हम अपनी यूनिट के साथ वहां के लिए निकल पड़े.


सवाल: क्या इसके पहले भी आप किसी अभियान में शामिल थे ?
जवाब: मैं 2016-17 से लगातार नक्सली अभियानों में डीआरजी टीम का हिस्सा रहा हूं.

सवाल: अब तक कितने नक्सलियों को आपने मार गिराया है ?
जवाब: इस बार मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए. इसके पहले भी जो मुठभेड़ हुई उसमे भी कई नक्सलियों को हमने ढेर किया है.

सवाल: जिस क्षेत्र में ऑपरेशन किया गया उस इलाके में घना जंगल है. वहां पर कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विभाग से कैसा सहयोग मिलता है.

जवाब: प्रभारी को पूरी जानकारी मिलती है, उसके हिसाब से हम आगे बढ़ते हैं. नक्सल एरिया में तैनाती होने के चलते हम हमेशा रेडी रहते हैं.जैसे ही ऑपरेशन की सूचना मिलती है हम वहां के लिए रवाना हो जाते हैं.


सवाल: आपको कहां पर चोट लगी है ?
जवाब: मेरे दाहिने पैर में गोली लगकर आर पार हो गई थी.

सवाल: आज आप घायल हैं जब यहां से ठीक होकर जाएंगे तो क्या फिर से उस क्षेत्र में ड्यूटी पर निकलेंगे या फिर अपना ट्रांसफर कराने की सोचेंगे ?

जवाब: ठीक होने के बाद क्षेत्र में मैं वापस जाऊंगा और अपना काम करूंगा.

सवाल: उस क्षेत्र में काम करने के लिए जो शासन प्रशासन से सुविधा मिलनी चाहिए क्या वह पर्याप्त है या उसमें कुछ कमी है ?
जवाब: पूरी सुविधाएं मिल रही हैं. उस क्षेत्र में सुविधा की कोई कमी नहीं है.



घायल जवान श्रीकांत श्रीमाली की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है. पहले से वो काफी बेहतर हैं. इनकी थाई में गोली लगी थी. हमने सर्जरी के जरिए गोली निकाल दी. घाव भरने में सामान्य रुप से जितना वक्त लगता है उतना वक्त ठीक होने में लगेगा. मैं समझता हूं कि हफ्ते दस दिनों में ये पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे. - श्रीकांत श्रीमाली का इलाज करने वाले डॉक्टर

बस्तर में नक्सलियों के लिए काल हैं डीआरजी के जवान: डीआरजी के जवानों को जिला रिजर्व गार्ड के नाम से जाना जाता है. डीआरजी के जवान छत्तीसगढ़ पुलिस बल का विशेष दस्ता है. इसमें बड़ी संख्या में स्थानीय आदिवासियों को शामिल किया गया है. स्थानीय भाषा के जानकार होने का फायदा भी सरकार को मिलता है. माओवादियों से लड़ने के लिए इनको खास ट्रेनिंग दी जाती है. बस्तर में हुए कई बड़े नक्सली अभियान के दौरान डीआरजी के जवानों ने बड़ी भूमिका अदा की है.

कांकेर एनकाउंटर में जख्मी बीएसएफ जवान ने दिया मूंछों पर ताव, कहा आ रहा हूं मैं - KANKER ENCOUNTER
बीजापुर में दहशत के ढाई दिन जानिए कैसे बीते - Bijapur Naxal encounter
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