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दिवाली 2024: फरीदाबाद में पीढ़ियों से दीये बना रहा ये मुस्लिम परिवार, हिंदुओं के घरों में फैला रहा रौशनी

फरीदाबाद का एक मुस्लिम परिवार कई पीढ़ियों से दिवाली पर दीये बनाने का व्यवसाय करता आ रहा है. पेश है खास रिपोर्ट...

MUSLIM FAMILY MAKING LAMPS
दिवाली पर मुस्लिम परिवार का कारोबार (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 24, 2024, 8:41 PM IST

फरीदाबाद: देशभर में दिवाली पर्व की धूम है. बाजार सज चुके हैं. नए वाहनों और नई वस्तुओं की खरीददारी भी बढ़-चढ़कर होने लगी है. मिट्टी के दीयों का कारोबार भी फल-फूल रहा है. मार्केट में मिट्टी के दीयों की खरीददारी जारी है. इस बीच फरीदाबाद की एक ऐसी मुस्लिम फैमिली है, जो पीढ़ियों से मिट्टी के दीये बनाने का काम करती आ रही है.

"त्योहार पूरे समाज की खुशियों का हिस्सा होता है" : ओल्ड फरीदाबाद के तालाब रोड पर रहने वाले असलम और उनका परिवार दीये बनाने का काम कई दशकों से कर रहा है. उनके पूर्वजों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी और आज भी उनके परिवार के सदस्य इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. असलम का कहना है कि त्यौहार किसी एक धर्म का नहीं होता, ये पूरे समाज की खुशियों का हिस्सा होता है. हमें गर्व है कि हम हिंदू भाईयों की दिवाली की रौनक बढ़ाने में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे हैं.

दीये बनाता मुस्लिम परिवार (ETV Bharat)

आधुनिक मशीनों ने ले ली चाक की जगह : असलम और उनका परिवार कई प्रकार के दीये बनाते हैं. इसकी कीमत बाजार में 2 रुपए से लेकर 50 रुपए तक है. असलम ने बताया कि इन दीयों को बनाने के लिए दो महीनों पहले ही तैयारी शुरू करनी होती है. पहले और इस समय में अब काफी अंतर हो गया है. नए साधन आने से अब काम में कम समय लगता है. पहले चाक से दीए बनाए जाते थे, लेकिन अब मोटर वाले चाक काम को आसान कर देते हैं. असलम ने कहा कि पहले चाक चलाने में शारीरिक मेहनत लगती थी, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद थी, लेकिन अब मोटर वाले चाक सेहत को बिगाड़ रहे हैं.

विलुप्ति की कगार पर ये कला: असलम ने कहा कि ये कला अब धीरे-धीरे सरकार के ध्यान नहीं देने के कारण विलुप्ति की कगार पर है. इसका एक कारण ये भी है कि जब इन दीये या मिट्टी से बनी चीजों को आग में पकाया जाता है तो इससे उठने वाले धुएं से चाक व्यवसायी को परेशानी होती है, जिससे वो चाक छोड़कर मोटर से दीये बनाने लगे हैं.

असलम की कारीगरी में अनूठी छाप : असलम के बनाए दीये आसपास के गांवों और शहरों में काफी प्रसिद्ध हैं. उनके हाथों से बने मिट्टी के दीये न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि उनमें स्थानीय कारीगरी की अनूठी छाप होती है. दीयों के साथ-साथ वे रंग बिरंगे सजावटी सामान भी बनाते हैं, जो दिवाली के दौरान घरों की शोभा बढ़ाते हैं.

असलम का कारोबार सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक : असलम का ये कारोबार समाज में सौहार्द और एकता की एक बड़ी मिशाल पेश करता है. उनके जैसे कई मुस्लिम परिवार देश के विभिन्न हिस्सों में अपने हुनर के जरिए हिंदू त्योहारों की रौनक बढ़ा रहे हैं. ये सिर्फ एक रोजगार का साधन नहीं बल्कि सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक है.

इसे भी पढ़ें : दिवाली के दिन जरूर खाएं सूरन, घर में बनी रहेगी सुख समृद्धि

इसे भी पढ़ें : दिवाली 2024 : चाइनीज आइटम और महंगी मिट्टी के बीच रोशनी का इंतजार, चौपट हो रहा कुम्हारों का कारोबार

फरीदाबाद: देशभर में दिवाली पर्व की धूम है. बाजार सज चुके हैं. नए वाहनों और नई वस्तुओं की खरीददारी भी बढ़-चढ़कर होने लगी है. मिट्टी के दीयों का कारोबार भी फल-फूल रहा है. मार्केट में मिट्टी के दीयों की खरीददारी जारी है. इस बीच फरीदाबाद की एक ऐसी मुस्लिम फैमिली है, जो पीढ़ियों से मिट्टी के दीये बनाने का काम करती आ रही है.

"त्योहार पूरे समाज की खुशियों का हिस्सा होता है" : ओल्ड फरीदाबाद के तालाब रोड पर रहने वाले असलम और उनका परिवार दीये बनाने का काम कई दशकों से कर रहा है. उनके पूर्वजों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी और आज भी उनके परिवार के सदस्य इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. असलम का कहना है कि त्यौहार किसी एक धर्म का नहीं होता, ये पूरे समाज की खुशियों का हिस्सा होता है. हमें गर्व है कि हम हिंदू भाईयों की दिवाली की रौनक बढ़ाने में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे हैं.

दीये बनाता मुस्लिम परिवार (ETV Bharat)

आधुनिक मशीनों ने ले ली चाक की जगह : असलम और उनका परिवार कई प्रकार के दीये बनाते हैं. इसकी कीमत बाजार में 2 रुपए से लेकर 50 रुपए तक है. असलम ने बताया कि इन दीयों को बनाने के लिए दो महीनों पहले ही तैयारी शुरू करनी होती है. पहले और इस समय में अब काफी अंतर हो गया है. नए साधन आने से अब काम में कम समय लगता है. पहले चाक से दीए बनाए जाते थे, लेकिन अब मोटर वाले चाक काम को आसान कर देते हैं. असलम ने कहा कि पहले चाक चलाने में शारीरिक मेहनत लगती थी, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद थी, लेकिन अब मोटर वाले चाक सेहत को बिगाड़ रहे हैं.

विलुप्ति की कगार पर ये कला: असलम ने कहा कि ये कला अब धीरे-धीरे सरकार के ध्यान नहीं देने के कारण विलुप्ति की कगार पर है. इसका एक कारण ये भी है कि जब इन दीये या मिट्टी से बनी चीजों को आग में पकाया जाता है तो इससे उठने वाले धुएं से चाक व्यवसायी को परेशानी होती है, जिससे वो चाक छोड़कर मोटर से दीये बनाने लगे हैं.

असलम की कारीगरी में अनूठी छाप : असलम के बनाए दीये आसपास के गांवों और शहरों में काफी प्रसिद्ध हैं. उनके हाथों से बने मिट्टी के दीये न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि उनमें स्थानीय कारीगरी की अनूठी छाप होती है. दीयों के साथ-साथ वे रंग बिरंगे सजावटी सामान भी बनाते हैं, जो दिवाली के दौरान घरों की शोभा बढ़ाते हैं.

असलम का कारोबार सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक : असलम का ये कारोबार समाज में सौहार्द और एकता की एक बड़ी मिशाल पेश करता है. उनके जैसे कई मुस्लिम परिवार देश के विभिन्न हिस्सों में अपने हुनर के जरिए हिंदू त्योहारों की रौनक बढ़ा रहे हैं. ये सिर्फ एक रोजगार का साधन नहीं बल्कि सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक है.

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