धमतरी: धमतरी शहर के राखेचा भवन में रोजाना सुबह हजारों की तादाद में रोटी बनते देख लोगों को लगता है कि किसी बड़े कार्यक्रम की तैयारी चल रही है. हालांकि ऐसा नहीं है. यहां रोटियां इंसानों को परोसने के लिए नहीं बल्कि बेजुबान जानवरों की भूख मिटाने के लिए बनाई जाती है. महज एक रुपए में ये रोटी जीवदया ग्रुप की ओर से उपलब्ध कराया जाता है. इस रोटी को खरीदकर लोग बेजुबान जानवरों को खिलाते हैं.
एक रुपए में बुझती है बेजुबानों की भूख: इंसानों को अगर भूख लगे तो वो भोजन की व्यवस्था कर लेता है, लेकिन जानवर अपना दर्द नहीं बता सकता. यही कारण है कि उनके लिए 1 रुपए में रोटी उपलब्ध कराने की पहल जीवदया ग्रुप की ओर से की गई है. गर्मी छुट्टी में बच्चों को अपनी पॉकेट मनी से रोटी खरीदकर जानवरों को खिलाते देखने का नजारा सेवा की खूबसूरत तस्वीर पेश करता है. इस भीषण गर्मी में इंसान घर से नहीं निकलता, लेकिन जानवरों को सड़कों पर ही रहना पड़ता है. ऐसे ही जानवरों के लिए धमतरी की एक संस्था सिर्फ एक रुपए में रोटी बनवा कर बेचती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि रोजाना करीब 5 हजार रोटियां संस्था की ओर से बेची जाती है. इस रोटी से क्षेत्र के बेजुबान जानवरों की भूख मिटती है.सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है, "वसुधैव कुटुम्बकम". जिसमें सभी जीवों के लिए दया का भाव रखने को कहा जाता है.
हम यहां एक रुपए में रोटी खरीदते हैं और जानवरों को खिलाते हैं. अगर कोई खास दिन होता है, तो हम अधिक संख्या में रोटी खरीद कर बेजुबानों को खिलाते हैं.-अंकित बरड़िया, स्थानीय
हर दिन बनती है 5 हजार रोटियां: दरअसल, धमतरी के कुछ युवाओं की ओर से जीवदया नाम की एक संस्था चल रही है. इस संस्था का लक्ष्य सड़कों पर रहने वाले बेजुबान जानवरों को भोजन करवाना है. इसके लिए ये संस्था सिर्फ एक रुपये में रोटी बेचती है. जिसे लोग खरीद कर गाय या कुत्तों को खिलाते हैं. रोजाना यहां सुबह 4 बजे रसोई में काम शुरू हो जाता है. हर दिन करीब 50 से 80 किलो आटे से करीब 5000 रोटियां बनती है. सुबह 10 बजे तक सारी रोटियां बिक जाती है. शहर के लोग ही रोजाना रोटियां खरीद कर जानवरों को खिलाते हैं, जिनकी जन्मदिन या शादी की सालगिरह होती है वो लोग अधिक संख्या में रोटियां खरीद कर गायों को खिलाते हैं.
हमारी संस्था की ओर से हर दिन 50 से 80 किलो आटे की रोटी बनाई जाती है. सुबह 4 बजे से सुबह 10 बजे तक तकरीबन 5000 रोटियां बनकर तैयार हो जाती है. इस रोटी से जानवरों का पेट भरता है. इस काम को करके हमें सुकून मिलता है. -रानू डागा, सदस्य, जीवदया संस्था
आम तौर पर सड़कों पर रहने वाले जानवरों को कूड़े कचरे में पड़ी चीजों को खाकर पेट की आग बुझानी पड़ती है, लेकिन उन्हीं जानवरो को अगर ताजा रोटियां मिल जाए तो बड़ी राहत मिलती होती है. जीवदया संस्था से जुड़े युवाओं का मानना है कि जीव सेवा ही ईश्वर के सेवा है. जानवरों की भूख मिटाकर इनको सुकून मिलता है.कोरोनाकाल से संस्था की ओर से नेक काम किया जा रहा है, जो कि अब तक जारी है.