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17 या 18 जुलाई जानें कब है देवशयनी एकादशी, इस दिन जरूर करें ये काम, जल्द पूरी होगी मनोकामना - Devashyani Ekadashi 2024

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Jul 11, 2024, 5:08 PM IST

Devashyani Ekadashi 2024: आषाढ़ महीने के अंतिम एकादशी को दवशयनी एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी तिथि के बाद भगवान विष्णु शयन मुद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का प्रारंभ हो जाता है. जिसके बाद चार महीनों तक सभी शुभ मंगल कार्य करने वर्जित होते हैं. हालांकि धार्मिक कार्यों में कोई पाबंदी नहीं रहती. रिपोर्ट में विस्तार से जानें पूरी जानकारी

Devashyani Ekadashi 2024
Devashyani Ekadashi 2024 (ETV BHARAT)

करनाल: हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार का बहुत महत्व होता है. जिनमें से एकादशी का व्रत भी एक सबसे महत्वपूर्ण और कठिन व्रत माना जाता है. एक साल में 24 एकादशी होती है. सभी का अपने आप में अलग-अलग और विशेष महत्व होता है. वहीं, अगर बात करें आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. जिसका महत्व सभी एकादशी से ज्यादा होता है. क्योंकि माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के लिए निद्रा योग अवस्था में चले जाते हैं और इस दौरान सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं.

चार महीनों के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा योग अवस्था से जागते हैं और तब मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू होते हैं. इसलिए वेद पुराणों में इस एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व बताया गया है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि व्रत रूप से पूजा अर्चना की जाती है और एकादशी का व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि जो भी इंसान एकादशी का व्रत रखता है, उसके जन्मों-जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं और घर में सुख समृद्धि आती है. तो जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व क्या है और इसके व्रत का विधि विधान क्या है.

कब है देवशयनी एकादशी: पंडित कर्मपाल शर्मा ने बताया कि आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. पंडित ने बताया कि देवशयनी एकादशी का आरंभ 16 जुलाई को रात के 8:33 पर होगा. जबकि इसका समापन 17 जुलाई को रात के 9:02 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए एकादशी का व्रत 17 जुलाई के दिन रखा जाएगा. भगवान विष्णु की पूजा करने का शुभ मुहूर्त का समय 17 जुलाई को सुबह 5:34 से शुरू होकर दोपहर तक रहेगा. व्रत का पारण करने का समय 18 जुलाई को सुबह 5:35 से शुरू होकर 8:20 तक रहेगा. बताए गए इस समय के दौरान व्रत का पारण कर सकते हैं.

देवशयनी एकादशी के दिन बन रहे शुभ योग: पंडित ने बताया कि देवशयनी एकादशी इस बार काफी लाभकारी रहने वाली है. क्योंकि इस दिन कई शुभ योग बनते हुए दिखाई दे रहे हैं. पहला शुभ योग शुक्ल योग 17 जुलाई के दिन सुबह 7:05 पर शुरू हो रहा है. जिसका समापन अगले दिन सुबह 6:13 पर होगा. इस दिन दूसरा योग सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. जिसकी शुरुआत सुबह 5:34 पर होगी. जबकि इसका समापन अगले दिन सुबह 3:13 पर होगा. तीसरा अमृत सिद्धि योग इस दिन रहेगा जो सुबह 5:34 से शुरू होकर अगले दिन सुबह 3:13 तक रहेगा. चौथा अनुराधा नक्षत्र योग बन रहा है, जो सुबह प्रातः काल सूर्य उदय के साथ शुरू होगा और इसका समापन अगले दिन सुबह 3:13 पर होगा. इसलिए इस व्रत का काफी महत्व है.

देवशयनी एकादशी का महत्व: पंडित ने बताया कि वेद पुराणों में एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत होता है. क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है. लेकिन देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु इस एकादशी के दिन चार माह के लिए निद्रा योग अवस्था में चले जाते हैं. इस दौरान विवाह, मंगनी,नए वाहन खरीदना, नई प्रॉपर्टी खरीदना, गृह प्रवेश इत्यादि सभी काम बंद हो जाते हैं. अगर कोई इंसान इन दिनों के दौरान मांगलिक कार्य करता है, तो उसके काम में कोई विघ्न पैदा हो जाती है या उसका नुकसान हो जाता है. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद इंसान के परिवार पर बना रहता है और घर में सुख समृद्धि आती है.

एकादशी व्रत का विधि विधान: पंडित ने बताया कि एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें. उसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें और उनके आगे देसी घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के आगे पीले रंग के फल, फूल,वस्त्र, मिठाई अर्पित करें और उनकी आरती करें. उसके उपरांत जो भी इंसान एकादशी का व्रत करना चाहता है, वह व्रत रखने का प्रण लें. एकादशी का व्रत निर्जला व्रत भी रखा जाता है और फलाहार भी ले सकते हैं. लेकिन अन्न का सेवन करना वर्जित होता है.

दिन में भगवान विष्णु पुराण पढ़े और घर में कीर्तन करें. एकादशी की कथा भी अपने घर पर करें. शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करने उपरांत उनको प्रसाद का भोग लगे. उसके बाद गरीबों, जरूरतमंदों, ब्राह्मण और गाय को भी भोजन कराएं. हो सके तो ब्राह्मण व जरूरतमंद लोगों को अपनी इच्छा अनुसार दक्षिणा भी दें. अगले दिन पारण के समय अपने व्रत का पारण कर ले.

एकादशी के दिन वर्जित है ये काम: शास्त्र में बताया गया है की एकादशी के दिन घर के किसी भी सदस्य को तेल, साबुन, सर्फ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और ना ही घर में किसी भी इंसान को बाल, दाढ़ी या नाखून भी नहीं काटने चाहिए. एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगना चाहिए. एकादशी के दिन भूल कर भी तुलसी के पत्ते ना तोड़े. एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन मांस- मदिरा और अंडे का सेवन न करें. एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें.

ये भी पढ़ें: जानें कब शुरू होगा चातुर्मास, पहले ही निपटा लें शुभ कार्य, वरना करना पड़ेगा 4 माह का इंतजार - Chaturmas 2024

ये भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2023 : व्रत के पारण का ये है सबसे उत्तम समय, इन 4 बातों का रखिएगा ध्यान

करनाल: हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार का बहुत महत्व होता है. जिनमें से एकादशी का व्रत भी एक सबसे महत्वपूर्ण और कठिन व्रत माना जाता है. एक साल में 24 एकादशी होती है. सभी का अपने आप में अलग-अलग और विशेष महत्व होता है. वहीं, अगर बात करें आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. जिसका महत्व सभी एकादशी से ज्यादा होता है. क्योंकि माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने के लिए निद्रा योग अवस्था में चले जाते हैं और इस दौरान सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं.

चार महीनों के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा योग अवस्था से जागते हैं और तब मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू होते हैं. इसलिए वेद पुराणों में इस एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व बताया गया है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि व्रत रूप से पूजा अर्चना की जाती है और एकादशी का व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि जो भी इंसान एकादशी का व्रत रखता है, उसके जन्मों-जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं और घर में सुख समृद्धि आती है. तो जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व क्या है और इसके व्रत का विधि विधान क्या है.

कब है देवशयनी एकादशी: पंडित कर्मपाल शर्मा ने बताया कि आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. पंडित ने बताया कि देवशयनी एकादशी का आरंभ 16 जुलाई को रात के 8:33 पर होगा. जबकि इसका समापन 17 जुलाई को रात के 9:02 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए एकादशी का व्रत 17 जुलाई के दिन रखा जाएगा. भगवान विष्णु की पूजा करने का शुभ मुहूर्त का समय 17 जुलाई को सुबह 5:34 से शुरू होकर दोपहर तक रहेगा. व्रत का पारण करने का समय 18 जुलाई को सुबह 5:35 से शुरू होकर 8:20 तक रहेगा. बताए गए इस समय के दौरान व्रत का पारण कर सकते हैं.

देवशयनी एकादशी के दिन बन रहे शुभ योग: पंडित ने बताया कि देवशयनी एकादशी इस बार काफी लाभकारी रहने वाली है. क्योंकि इस दिन कई शुभ योग बनते हुए दिखाई दे रहे हैं. पहला शुभ योग शुक्ल योग 17 जुलाई के दिन सुबह 7:05 पर शुरू हो रहा है. जिसका समापन अगले दिन सुबह 6:13 पर होगा. इस दिन दूसरा योग सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. जिसकी शुरुआत सुबह 5:34 पर होगी. जबकि इसका समापन अगले दिन सुबह 3:13 पर होगा. तीसरा अमृत सिद्धि योग इस दिन रहेगा जो सुबह 5:34 से शुरू होकर अगले दिन सुबह 3:13 तक रहेगा. चौथा अनुराधा नक्षत्र योग बन रहा है, जो सुबह प्रातः काल सूर्य उदय के साथ शुरू होगा और इसका समापन अगले दिन सुबह 3:13 पर होगा. इसलिए इस व्रत का काफी महत्व है.

देवशयनी एकादशी का महत्व: पंडित ने बताया कि वेद पुराणों में एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत होता है. क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है. लेकिन देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु इस एकादशी के दिन चार माह के लिए निद्रा योग अवस्था में चले जाते हैं. इस दौरान विवाह, मंगनी,नए वाहन खरीदना, नई प्रॉपर्टी खरीदना, गृह प्रवेश इत्यादि सभी काम बंद हो जाते हैं. अगर कोई इंसान इन दिनों के दौरान मांगलिक कार्य करता है, तो उसके काम में कोई विघ्न पैदा हो जाती है या उसका नुकसान हो जाता है. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद इंसान के परिवार पर बना रहता है और घर में सुख समृद्धि आती है.

एकादशी व्रत का विधि विधान: पंडित ने बताया कि एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें. उसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें और उनके आगे देसी घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के आगे पीले रंग के फल, फूल,वस्त्र, मिठाई अर्पित करें और उनकी आरती करें. उसके उपरांत जो भी इंसान एकादशी का व्रत करना चाहता है, वह व्रत रखने का प्रण लें. एकादशी का व्रत निर्जला व्रत भी रखा जाता है और फलाहार भी ले सकते हैं. लेकिन अन्न का सेवन करना वर्जित होता है.

दिन में भगवान विष्णु पुराण पढ़े और घर में कीर्तन करें. एकादशी की कथा भी अपने घर पर करें. शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करने उपरांत उनको प्रसाद का भोग लगे. उसके बाद गरीबों, जरूरतमंदों, ब्राह्मण और गाय को भी भोजन कराएं. हो सके तो ब्राह्मण व जरूरतमंद लोगों को अपनी इच्छा अनुसार दक्षिणा भी दें. अगले दिन पारण के समय अपने व्रत का पारण कर ले.

एकादशी के दिन वर्जित है ये काम: शास्त्र में बताया गया है की एकादशी के दिन घर के किसी भी सदस्य को तेल, साबुन, सर्फ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और ना ही घर में किसी भी इंसान को बाल, दाढ़ी या नाखून भी नहीं काटने चाहिए. एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगना चाहिए. एकादशी के दिन भूल कर भी तुलसी के पत्ते ना तोड़े. एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन मांस- मदिरा और अंडे का सेवन न करें. एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें.

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