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देवउठनी एकादशी का ये है शुभ मुहुर्त, जानें इस दिन क्यों किया जाता है तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी कब है और इसकी पूजा करने का शुभ मुहुर्त क्या है. क्यों मनाई जाती है देउठनी एकादाशी?

Dev Uthani Ekadashi 2024
देवउठनी एकादशी कब है (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 7:22 PM IST

Updated : Nov 5, 2024, 9:43 PM IST

Dev Uthani Ekadashi 2024 : देवउठनी एकादशी त्योहार की तैयारियां शुरू हो गई हैं. दीपावली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व होता है. देवउठनी एकादशी के बाद से ही सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन 4 महीने की योग निद्रा के बाद उठते हैं. आइये जानते हैं इस साल देवउठनी एकादशी कब है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है. साथ ही ये भी जानेंगे की देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है.

देवउठनी एकादशी कब है?

ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि, देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है, जो इस बार 12 नवंबर को पड़ रही है. देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं, इसलिए भी ये दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. इस साल देवउठनी एकादशी की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 06 बजकर 46 मिनट से होगी जो 12 नवंबर शाम 04 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि 12 तारीख को सुबह पड़ रही है, इसलिए देवउठनी एकादशी का व्रत मंगलवार 12 नवंबर को ही रखने का विधान है.

योग निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु

देवउठनी एकादशी को लेकर एक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से जागते हैं. पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री ने बताया, भगवान विष्णु अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को योग निद्रा के लिए चले जाते हैं. इस दौरान सारा दायित्व भगवान शिव को सौंप दिया जाता है. विष्णु के निद्रा में चले जाने के बाद से सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं. इसलिए इसे चातुर्मास भी कहा जाता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं. इस प्रकार इस दिन ने सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.

इसे भी पढे़ं:

शुक्र का धनु राशि में गोचर, 7 राशियों के शुरु हुए सुखभरे दिन, 4 से 10 नवंबर साप्ताहिक राशिफल

क्यों खास है देवउठनी एकादशी?

आचार्य सुशील शुक्ला शास्त्री के अनुसार, देवउठनी एकादशी का बहुत महत्व होता है. इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह किये जाने की परंपरा है. इसके लिए गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है. जहां पर विधिवत ढंग से विवाह की प्रक्रिया संपन्न की जाती है. तुलसी विवाह के बाद से सभी शुभ कार्यक्रमों की शुरूआत हो जाती है. इस दिन विष्णु जी को जगाने के लिए जो व्रत रखता हैं और विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसके घर में सब मंगल होता है. माता लक्ष्मी उसको धन-धान्य से भर देती हैं.

Dev Uthani Ekadashi 2024 : देवउठनी एकादशी त्योहार की तैयारियां शुरू हो गई हैं. दीपावली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व होता है. देवउठनी एकादशी के बाद से ही सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन 4 महीने की योग निद्रा के बाद उठते हैं. आइये जानते हैं इस साल देवउठनी एकादशी कब है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है. साथ ही ये भी जानेंगे की देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है.

देवउठनी एकादशी कब है?

ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि, देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है, जो इस बार 12 नवंबर को पड़ रही है. देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं, इसलिए भी ये दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. इस साल देवउठनी एकादशी की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 06 बजकर 46 मिनट से होगी जो 12 नवंबर शाम 04 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि 12 तारीख को सुबह पड़ रही है, इसलिए देवउठनी एकादशी का व्रत मंगलवार 12 नवंबर को ही रखने का विधान है.

योग निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु

देवउठनी एकादशी को लेकर एक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से जागते हैं. पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री ने बताया, भगवान विष्णु अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को योग निद्रा के लिए चले जाते हैं. इस दौरान सारा दायित्व भगवान शिव को सौंप दिया जाता है. विष्णु के निद्रा में चले जाने के बाद से सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं. इसलिए इसे चातुर्मास भी कहा जाता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं. इस प्रकार इस दिन ने सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.

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क्यों खास है देवउठनी एकादशी?

आचार्य सुशील शुक्ला शास्त्री के अनुसार, देवउठनी एकादशी का बहुत महत्व होता है. इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह किये जाने की परंपरा है. इसके लिए गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है. जहां पर विधिवत ढंग से विवाह की प्रक्रिया संपन्न की जाती है. तुलसी विवाह के बाद से सभी शुभ कार्यक्रमों की शुरूआत हो जाती है. इस दिन विष्णु जी को जगाने के लिए जो व्रत रखता हैं और विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसके घर में सब मंगल होता है. माता लक्ष्मी उसको धन-धान्य से भर देती हैं.

Last Updated : Nov 5, 2024, 9:43 PM IST
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