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देसी गार्बेज एंजाइम बन रहा किसानों के लिए वरदान, ऐसे बनाएंगे खाद तो मुस्कुरा उठेगी फसल - Desi garbage enzyme

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 6 minutes ago

सब्जियों से लेकर अनाज तक सब को उपजाने में आज केमिकल युक्त खाद का इस्तेमाल किया जाता है. बाजार की ताजी सब्जियां घर पहुंचते ही सूखने लगती है. दाल, चावल, गेहूं और दालों की खेती में भी यूरिया खाद का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. केमिकल युक्त खाद से उपजाए गए अनाज का लंबे वक्त तक सेवन करना सेहत के लिए खतरनाक साबित होता है. पर अब इसका एक शानदार विकल्प सामने आ गया है.

DESI GARBAGE ENZYME
किसानों के लिए वरदान बनेगा गार्बेज एंजाइम (ETV Bharat)

कोरबा: फल, अनाज और सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान खेतों में यूरिया खाद का इस्तेमाल करते हैं. इन खादों की मदद से उपज तो जरुर बढ़ जाती है लेकिन इसका दुष्प्रभाव हमारे शरीर पर भी दिखाई देने लगता है. खाद के साइड इफेक्ट से बचने के कई तरीके हैं जिससे हम खाद का विकल्प खोज सकते हैं. कोरबा के नवापारा की महिलाओं ने यूरिया खाद का एक ऐसा ही विकल्प ढूंढ लिया है. देसी जुगाड़ से तैयार ये खाद जिसे गार्बेज एंजाइम करते हैं काफी उपयोगी है. इसके इस्तेमाल से यूरिया पर किसानों की निर्भरता खत्म हो सकती है.

किसानों के लिए वरदान बनेगा गार्बेज एंजाइम: देसी जुगाड़ से नवापारा की महिलाएं ये खाद बना रही हैं. गार्बेज एंजाइम की मदद से बनाई जा रही खाद अनाज, सब्जियों और फलों को पौष्टिक बनाए रखेंगी. गार्बेज एंजाइम से खाद बनाने वाली महिलाएं कहती हैं कि इस देसी जुगाड़ का रिजल्ट बेहतर है. इसके इस्तेमाल से खेतों में लगी फसल हरी भरी हो जाती है और रंग भी चटकदार हो जाता है. गार्बेज एंजाइम के इस्तेमाल से उत्पादन भी बढ़ता है और फसलों में लगने वाले कीट पतंगे भी फसल से दूर रहते हैं.

कहां तैयार हो रहा है देसी खाद: देसी खाद का निर्माण नवापारा के बायो रिसर्च सेंटर में किया जा रहा है. नाबार्ड ने पायलट प्रोजेक्ट जीवा के तहत बायो रिसोर्स सेंटर स्थापित किया है. विकास शिक्षण समिति नाबार्ड से सहायता प्राप्त कर काम को किया जा रहा है. समय समय पर यहां आकर एक्सपर्ट भी किसानों को नई नई तकनीक सिखाते हैं, ट्रेनिंग देते हैं. नवापारा में काजू की भी खेती होती है. आम और जामुन का भी उत्पादन किया जाता है. समिति से जुड़ी महिलाएं यहां गार्बेज एंजाइम बनाने का काम करती हैं.

लिक्विड खाद है गार्बेज एंजाइम: गार्बेज एंजाइम एक लिक्विड खाद है. इस लिक्विड खाद को किसान जब अपने खेतों में फसलों पर छिड़कता है तो उससे उसकी फसल लहलहा उठती है. उत्पादन भी बढ़िया होता है. इसके इस्तेमाल के बाद यूरिया खाद खेतों में डालने की जरुरत नहीं पड़ती. इस खाद के छिड़काव से खेतों में लगी फसलों पर कीट पतंगे भी नहीं लगते हैं. कम लागत में इस खाद का निर्माण आसानी से हो जाता है. गार्बेज एंजाइम खाद तेजी से फसलों पर अपना असर दिखाता है.

खाद को बनाने की विधि: 1, 3 और 10 के अनुपात में फल सब्जी के छिलके का इस्तेमाल इस खाद को बनाए जाने में किया जाता है. गार्बेज एंजाइम तैयार करने वाली महिला समूह की सदस्य दरस कुंवर राठिया बताती हैं कि पूर्व में हमें इसका प्रशिक्षण मिला है. ट्रेनिंग के बाद हमने इसे तैयार करना शुरू कर दिया. एंजाइम बनाने के लिए 1, 3 और 10 के अनुपात का ध्यान रखना होता है. हमारे घर से जो फल और सब्जियों के छिलके निकलते हैं, जिसे हम फेंक देते हैं उसका इस्तेमाल यहां किया जाता है. 3 किलो सब्जी के छिलके के साथ 1 किलो गुड़ को 10 लीटर पानी में भिगोकर 90 दिन रखना होता है. बीच बीच में इसे हिलाते भी रहना है. 90 दिनों के बाद इसे छानकर बोतल में भरा जाता है फिर इसका छिड़काव किया जाता है. हमने इसकी पैकिंग कर अब बिजनेस भी शुरु कर दिया है.

100 रुपए लीटर मिलता है खाद: गार्बेज एंजाइम के एक्सपर्ट और किसानों की समिति से जुड़े डालेश्वर कश्यप कहते हैं कि आसपास के किसान इसका उपयोग कर रहे हैं. महिला समूह की जो महिलाएं हैं, वह भी अपने खेत और बाड़ी में इसे डाल रही हैं. इसका दाम फिलहाल महिलाओं ने ₹100 प्रति लीटर रखा है. जो की काफी किफायती है. बड़ी कंपनियां अन्य राज्यों में जब इसका व्यापार करती हैं तब इसकी कीमत 250 से ₹400 प्रति लीटर तक होता है. इसका रिजल्ट केमिकल तक खाद से भी ज्यादा बेहतर है. फिलहाल हमने लगभग 1000 से 2000 लीटर एंजाइम तैयार किया है. इसका उत्पादन और भी बढ़ाने की योजना है.

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कोरबा: फल, अनाज और सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान खेतों में यूरिया खाद का इस्तेमाल करते हैं. इन खादों की मदद से उपज तो जरुर बढ़ जाती है लेकिन इसका दुष्प्रभाव हमारे शरीर पर भी दिखाई देने लगता है. खाद के साइड इफेक्ट से बचने के कई तरीके हैं जिससे हम खाद का विकल्प खोज सकते हैं. कोरबा के नवापारा की महिलाओं ने यूरिया खाद का एक ऐसा ही विकल्प ढूंढ लिया है. देसी जुगाड़ से तैयार ये खाद जिसे गार्बेज एंजाइम करते हैं काफी उपयोगी है. इसके इस्तेमाल से यूरिया पर किसानों की निर्भरता खत्म हो सकती है.

किसानों के लिए वरदान बनेगा गार्बेज एंजाइम: देसी जुगाड़ से नवापारा की महिलाएं ये खाद बना रही हैं. गार्बेज एंजाइम की मदद से बनाई जा रही खाद अनाज, सब्जियों और फलों को पौष्टिक बनाए रखेंगी. गार्बेज एंजाइम से खाद बनाने वाली महिलाएं कहती हैं कि इस देसी जुगाड़ का रिजल्ट बेहतर है. इसके इस्तेमाल से खेतों में लगी फसल हरी भरी हो जाती है और रंग भी चटकदार हो जाता है. गार्बेज एंजाइम के इस्तेमाल से उत्पादन भी बढ़ता है और फसलों में लगने वाले कीट पतंगे भी फसल से दूर रहते हैं.

कहां तैयार हो रहा है देसी खाद: देसी खाद का निर्माण नवापारा के बायो रिसर्च सेंटर में किया जा रहा है. नाबार्ड ने पायलट प्रोजेक्ट जीवा के तहत बायो रिसोर्स सेंटर स्थापित किया है. विकास शिक्षण समिति नाबार्ड से सहायता प्राप्त कर काम को किया जा रहा है. समय समय पर यहां आकर एक्सपर्ट भी किसानों को नई नई तकनीक सिखाते हैं, ट्रेनिंग देते हैं. नवापारा में काजू की भी खेती होती है. आम और जामुन का भी उत्पादन किया जाता है. समिति से जुड़ी महिलाएं यहां गार्बेज एंजाइम बनाने का काम करती हैं.

लिक्विड खाद है गार्बेज एंजाइम: गार्बेज एंजाइम एक लिक्विड खाद है. इस लिक्विड खाद को किसान जब अपने खेतों में फसलों पर छिड़कता है तो उससे उसकी फसल लहलहा उठती है. उत्पादन भी बढ़िया होता है. इसके इस्तेमाल के बाद यूरिया खाद खेतों में डालने की जरुरत नहीं पड़ती. इस खाद के छिड़काव से खेतों में लगी फसलों पर कीट पतंगे भी नहीं लगते हैं. कम लागत में इस खाद का निर्माण आसानी से हो जाता है. गार्बेज एंजाइम खाद तेजी से फसलों पर अपना असर दिखाता है.

खाद को बनाने की विधि: 1, 3 और 10 के अनुपात में फल सब्जी के छिलके का इस्तेमाल इस खाद को बनाए जाने में किया जाता है. गार्बेज एंजाइम तैयार करने वाली महिला समूह की सदस्य दरस कुंवर राठिया बताती हैं कि पूर्व में हमें इसका प्रशिक्षण मिला है. ट्रेनिंग के बाद हमने इसे तैयार करना शुरू कर दिया. एंजाइम बनाने के लिए 1, 3 और 10 के अनुपात का ध्यान रखना होता है. हमारे घर से जो फल और सब्जियों के छिलके निकलते हैं, जिसे हम फेंक देते हैं उसका इस्तेमाल यहां किया जाता है. 3 किलो सब्जी के छिलके के साथ 1 किलो गुड़ को 10 लीटर पानी में भिगोकर 90 दिन रखना होता है. बीच बीच में इसे हिलाते भी रहना है. 90 दिनों के बाद इसे छानकर बोतल में भरा जाता है फिर इसका छिड़काव किया जाता है. हमने इसकी पैकिंग कर अब बिजनेस भी शुरु कर दिया है.

100 रुपए लीटर मिलता है खाद: गार्बेज एंजाइम के एक्सपर्ट और किसानों की समिति से जुड़े डालेश्वर कश्यप कहते हैं कि आसपास के किसान इसका उपयोग कर रहे हैं. महिला समूह की जो महिलाएं हैं, वह भी अपने खेत और बाड़ी में इसे डाल रही हैं. इसका दाम फिलहाल महिलाओं ने ₹100 प्रति लीटर रखा है. जो की काफी किफायती है. बड़ी कंपनियां अन्य राज्यों में जब इसका व्यापार करती हैं तब इसकी कीमत 250 से ₹400 प्रति लीटर तक होता है. इसका रिजल्ट केमिकल तक खाद से भी ज्यादा बेहतर है. फिलहाल हमने लगभग 1000 से 2000 लीटर एंजाइम तैयार किया है. इसका उत्पादन और भी बढ़ाने की योजना है.

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