देहरादून: अनुसूचित जाति जनजाति क्रीमी लेयर के वर्गीकरण मामले पर देशभर में चर्चा चल रही है. राजनीतिक रूप से भी इस मुद्दे को अलग-अलग रूप में देखा जा रहा है और इस पर तमाम बयान भी सामने आ रहे हैं. यह स्थिति तब पैदा हुई है जब सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्य संविधान पीठ ने इस पर अपनी टिप्पणी की. इस मामले में उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्पलाइज एसोसिएशन और अखिल भारतीय समानता मंच ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए इसे उत्तराखंड में जल्द से जल्द लागू करने पर चर्चा की.
कर्मचारी संगठन ने इस मामले पर कानूनी पहलुओं को भी देखा और इसी के लिहाज से विस्तार से अपनी राय भी रखी. रिटायर्ड अपर सचिव सुमन सिंह वल्दिया ने इस मामले पर कानूनी पक्षों को रखा और इसके प्रभावों पर भी अपनी राय रखी. उधर उत्तराखंड जर्नल ओबीसी एम्पलाइज एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक जोशी ने इस मामले पर सरकार से बात करते हुए जल्द से जल्द सुप्रीम के कोर्ट के फैसले को राज्य में भी लागू कराए जाने पर जोर दिया. इस दौरान यह स्पष्ट किया गया कि आने वाले दिनों में राज्य स्तरीय बैठक करते हुए इस पर ठोस रणनीति बनाई जाएगी और इसके लिए तमाम बुद्धिजीवियों को भी एक मंच पर लाया जाएगा.
इससे पहले उत्तराखंड सचिवालय से ही पदोन्नति में आरक्षण को 2012 में समाप्त करने के लिए आंदोलन की शुरुआत की गई थी. जिसे प्रदेश व्यापी बनाया गया था. अनुसूचित जाति जनजाति क्रीमी लेयर के वर्गीकरण का मामला आर्थिक रूप से मजबूत हो चुकी जातियों और जनजातियों से जुड़ा है. इसमें संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा कि ऐसी जातियों और वर्ग को आरक्षण दिया जाना चाहिए, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. यह सब सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को लागू करने के बाद ही होगा, जिसमें एससी-एसटी क्रीमी लेयर के वर्गीकरण की बात कही गई है.
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