इटावा: चाइनीज झालरों के बढ़ते चलन और मिट्टी सहित दूसरे सामनों की बढ़ी कीमतों के चलते मिट्टी के दियों की डिमांड साल दर साल घटती जा रही है. दीपावली में मिट्टी के दीये बनाने का रोजगार फीका चल रहा है. ग्रामीण इलाकों में यह काम बंद होने की कगार पर है. इसके चलते कुम्हारी कला विलुप्त होती जा रही है. कुम्हारों को उनकी मेहनत के अनुसार उनके बनाये हुए सामानों का सही दाम नहीं मिल रहा है. जिसके चलते आने वाली पीढ़ी इस हुनर से दूर हो रही हैं. जिले में सैकड़ों कुम्हार परिवार मिट्टी के सामान बनाकर अपना व्यवसाय कई पीढ़ी से करते आ रहे हैं.
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भरथना तहसील के गांव के निवासी मंशाराम ने बताया कि, मिट्टी पर महंगाई बड़ने से दिए कम बिक रहे है. हम दिया बनाने का काम 50 साल से कर रहे है. यह काम दीपावली त्यौहार के दौरान ही किया जाता है. दिया, नांदी, ग्वालीन और मिट्टी के अन्य सामान बिक रहे हैं. दुकानदारों ने बताया, कि चाईना और कलकत्ता से आये बर्तन दीया का दाम लोकल से पांच गुना अधिक है. चमक-धमक होने की वजह से उसकी मांग अधिक है. आसपास के कुम्हारो के बनाए हुए सामान की मांग और दाम दोनों कम है.