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मिट्टी के दीये बनाने वालों की दिवाली भी फीकी,चाइनीज झालरों से घट रही डिमांड - EARTHEN LAMP ON DIWALI

earthen lamps fades: इलेक्ट्रोनिक्स झालरों की चमक-दमक के बीच मिट्टी के दीपक की रोशनी धीमी पड़ रही है. दियों की डिमांड घट रही है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 27, 2024, 1:08 PM IST

इटावा: चाइनीज झालरों के बढ़ते चलन और मिट्टी सहित दूसरे सामनों की बढ़ी कीमतों के चलते मिट्टी के दियों की डिमांड साल दर साल घटती जा रही है. दीपावली में मिट्टी के दीये बनाने का रोजगार फीका चल रहा है. ग्रामीण इलाकों में यह काम बंद होने की कगार पर है. इसके चलते कुम्हारी कला विलुप्त होती जा रही है. कुम्हारों को उनकी मेहनत के अनुसार उनके बनाये हुए सामानों का सही दाम नहीं मिल रहा है. जिसके चलते आने वाली पीढ़ी इस हुनर से दूर हो रही हैं. जिले में सैकड़ों कुम्हार परिवार मिट्टी के सामान बनाकर अपना व्यवसाय कई पीढ़ी से करते आ रहे हैं.

इसे भी पढ़े-चाइनीज झालरों के आगे मिट्टी के दियों की चमक फीकी, डिमांड घटने से कुम्हार के सामने रोजी रोटी का संकट

भरथना तहसील के गांव के निवासी मंशाराम ने बताया कि, मिट्टी पर महंगाई बड़ने से दिए कम बिक रहे है. हम दिया बनाने का काम 50 साल से कर रहे है. यह काम दीपावली त्यौहार के दौरान ही किया जाता है. दिया, नांदी, ग्वालीन और मिट्टी के अन्य सामान बिक रहे हैं. दुकानदारों ने बताया, कि चाईना और कलकत्ता से आये बर्तन दीया का दाम लोकल से पांच गुना अधिक है. चमक-धमक होने की वजह से उसकी मांग अधिक है. आसपास के कुम्हारो के बनाए हुए सामान की मांग और दाम दोनों कम है.

मिट्टी के दीये बनाने का रोजगार फीका, कुम्हार ने दी जानकारी (ETV BHARAT)
कई कुम्हार परिवार आज भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. साथ ही अपने बच्चों को इस हुनर से जोड़ने का प्रयास कर रहे है. बच्चे भी इस हुनर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, सरकार की ओर से उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है. जिसके चलते वह भी निराश है.

यह भी पढ़े-अयोध्या में बनेगा दीपोत्सव का वर्ल्ड रिकार्ड ; सरयू तट पर जगमगाएं 25 लाख दीये, 1100 वेदाचार्य करेंगे आरती

इटावा: चाइनीज झालरों के बढ़ते चलन और मिट्टी सहित दूसरे सामनों की बढ़ी कीमतों के चलते मिट्टी के दियों की डिमांड साल दर साल घटती जा रही है. दीपावली में मिट्टी के दीये बनाने का रोजगार फीका चल रहा है. ग्रामीण इलाकों में यह काम बंद होने की कगार पर है. इसके चलते कुम्हारी कला विलुप्त होती जा रही है. कुम्हारों को उनकी मेहनत के अनुसार उनके बनाये हुए सामानों का सही दाम नहीं मिल रहा है. जिसके चलते आने वाली पीढ़ी इस हुनर से दूर हो रही हैं. जिले में सैकड़ों कुम्हार परिवार मिट्टी के सामान बनाकर अपना व्यवसाय कई पीढ़ी से करते आ रहे हैं.

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भरथना तहसील के गांव के निवासी मंशाराम ने बताया कि, मिट्टी पर महंगाई बड़ने से दिए कम बिक रहे है. हम दिया बनाने का काम 50 साल से कर रहे है. यह काम दीपावली त्यौहार के दौरान ही किया जाता है. दिया, नांदी, ग्वालीन और मिट्टी के अन्य सामान बिक रहे हैं. दुकानदारों ने बताया, कि चाईना और कलकत्ता से आये बर्तन दीया का दाम लोकल से पांच गुना अधिक है. चमक-धमक होने की वजह से उसकी मांग अधिक है. आसपास के कुम्हारो के बनाए हुए सामान की मांग और दाम दोनों कम है.

मिट्टी के दीये बनाने का रोजगार फीका, कुम्हार ने दी जानकारी (ETV BHARAT)
कई कुम्हार परिवार आज भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. साथ ही अपने बच्चों को इस हुनर से जोड़ने का प्रयास कर रहे है. बच्चे भी इस हुनर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, सरकार की ओर से उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है. जिसके चलते वह भी निराश है.

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