नई दिल्लीः दिल्ली के डॉक्टर्स के पास एक मुश्किल केस आया. तत्परता दिखाते हुए एक दो साल के बच्चे की जान बचाने में सफलता हासिल की. दरअसल, मामला कुछ अलग है. बच्चे ने थर्मामीटर का पारा निगल लिया. कोई लक्षण न दिखने की वजह से डॉक्टर्स को यह पता लगाने में मुश्किल हुई कि पारा में पेट में जाकर कहां फंसा है. तमाम तरह के उपायों के बाद डॉक्टर्स ने बच्चे को मुश्किल से निकाला.
दिल्ली के एक अस्पताल में जटिल जांच प्रक्रिया के तहत दो साल के बच्चे को बचाया गया, बच्चे ने थर्मामीटर टूटने के बाद पारा निगल लिया था.
ऐसे पता चला
बच्चे के मुंह में खेल-खेल में थर्मामीटर टूट गया. जब तक किसी को ये पता चलता दो साल के मासूम ने थर्मामीटर से निकले पारे को निगल लिया. आनन-फानन में घर के लोग बच्चे को अस्पताल लेकर पहुंचे. शुरुआत में पेट में दर्द या उल्टी के कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे, जिससे यह लग सकता कि पारा आखिरी पेट के किस हिस्से में है.
शुरू में बच्चे के पाचन सिस्टम पर कड़ी निगरानी रखी गई. सभी तरह के परीक्षण किए गए लेकिन जब डॉक्टर इस बात से आश्वस्त हो गए कि पारा अभी पेट में ही है तो उन्होंने डायग्नोसिस करना शुरू किया.
एक्स-रे से पता चला
बच्चे में जब काफी समय तक लक्षण नहीं आए तो एक्स-रे करने का तरीका ही अपनाया गया. पेट के एक्स-रे से पता चला कि पारा पूरी आंत में काफी मात्रा में फैल गया है, जिससे हेल्थ इश्यू बढ़ गए हैं. 48 घंटों के बाद भी पारा क्लीयरेंस में कोई सुधार नहीं होने पर, बाल चिकित्सा गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी के प्रमुख डॉ. सुफला सक्सेना और उनकी टीम ने तत्काल कोलोनोस्कोपी शुरू की.
प्रक्रिया के दौरान, पारा बड़ी आंत में और अपेंडिक्स की नोंक पर स्थित था. आंत को साफ करके पारा को बाहर निकाला गया. अगले ही दिन बच्चे को छुट्टी दे दी गई. पारा पूरी तरह से साफ हो गया है, जिससे केलेशन थेरेपी की आवश्यकता समाप्त हो गई है.
एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल, दिल्ली में बाल चिकित्सा गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी के प्रमुख डॉ. सुफला सक्सेना ने कहा, "तीव्र या दीर्घकालिक पारा के संपर्क में आने से विकास की किसी भी अवधि के दौरान प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. पारा एक अत्यधिक जहरीला तत्व है और महत्वपूर्ण अंगों पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकता है, जैसे हृदय, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और गुर्दे पर असर. शीघ्र निदान और सही समय पर सही जांच प्रक्रिया अपनाई गई. हम पारा के खतरनाक प्रभावों को रोकने और जटिलताओं के बिना बच्चे की रिकवरी सुनिश्चित करने में सक्षम थे.
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