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दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना डूब क्षेत्र में बेदखली पर रोक लगाने से किया इनकार

दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना बाढ़ क्षेत्र में बेदखली पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कहा कि प्रदूषण का स्तर उच्चतम स्तर पर है.

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कोर्ट ने राजधानी के प्रदूषण पर जताई चिंता. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 10, 2024, 6:52 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के मामले को ध्यान में रखते हुए एक अनधिकृत कॉलोनी के निवासियों को जारी बेदखली नोटिस पर रोक लगाने से मना कर दिया. मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदूषण के संदर्भ में यमुना नदी में किए गए हालिया अध्ययन और रिपोर्टें चिंताजनक हैं.

अदालत ने तर्क दिया कि दक्षिणी दिल्ली की श्रम विहार की कॉलोनी न केवल बाढ़ क्षेत्र से बाहर है बल्कि यह जोन 'ओ' में आती है. जोन 'ओ' को पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र माना गया है, जहां का मुख्य उपयोग बागवानी और वनस्पतियों तथा जीवों के संरक्षण के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र की परिकल्पना यमुना नदी के कायाकल्प और पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए की गई है."

अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंचा प्रदूषण का स्तर: दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा प्रस्तुत एक हालिया रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि यमुना नदी में प्रदूषण का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच चुका है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सितंबर 2024 में मल का स्तर अनुमेय सीमा से 1,959 गुना और वांछित सीमा से 9,800 गुना अधिक था. यह स्थिति आसपास की अनधिकृत कॉलोनियों से बहते असंवर्द्धित सीवेज के कारण उत्पन्न हुई है.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने इस बात का न्यायिक संज्ञान लिया है कि यमुना में प्रदूषण की मात्रा अब तक के उच्चतम स्तर पर है. उस संदर्भ में श्रम विहार कॉलोनी के निवासियों ने जो अस्थाई रोक की मांग की थी, उसे अस्वीकार कर दिया गया.

यह भी पढ़ें- 'यमुना नदी में छठ पूजा की दी जाए इजाजत', दिल्ली विधानसभा में AAP ने रखा प्रस्ताव

सुनवाई के दौरान निवासियों के वकील ने तर्क रखा कि कॉलोनी यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में नहीं आती और यह निजी भूमि पर स्थित है. लेकिन दूसरे पक्ष के तर्कों ने यह स्पष्ट किया कि श्रम विहार को दिल्ली सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अनधिकृत कॉलोनियों की सूची में शामिल नहीं किया गया था. अदालत ने कहा कि आवेदकों ने कॉलोनी के निजी भूमि पर होने का दावा करते हुए किसी मान्यता प्राप्त योजना या निर्माण पूर्णता प्रमाण पत्र को पेश नहीं किया है.

इस मामले के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को स्पष्ट किया है. साथ ही अनधिकृत निर्माणों को लेकर सरकारी नियामक की भूमिका की भी पुष्टि की है. यह न्यायालय का निर्णय न केवल यमुना नदी के स्वास्थ्य को संरक्षण देने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अन्य अनधिकृत कॉलोनियों पर भी एक मिसाल स्थापित करता है.

(PTI)

यह भी पढ़ें- ऐसे कैसे साफ होगी यमुना, 37 एसटीपी में से 21 फेल, अब DPCC कराएगी शोध

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के मामले को ध्यान में रखते हुए एक अनधिकृत कॉलोनी के निवासियों को जारी बेदखली नोटिस पर रोक लगाने से मना कर दिया. मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदूषण के संदर्भ में यमुना नदी में किए गए हालिया अध्ययन और रिपोर्टें चिंताजनक हैं.

अदालत ने तर्क दिया कि दक्षिणी दिल्ली की श्रम विहार की कॉलोनी न केवल बाढ़ क्षेत्र से बाहर है बल्कि यह जोन 'ओ' में आती है. जोन 'ओ' को पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र माना गया है, जहां का मुख्य उपयोग बागवानी और वनस्पतियों तथा जीवों के संरक्षण के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र की परिकल्पना यमुना नदी के कायाकल्प और पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए की गई है."

अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंचा प्रदूषण का स्तर: दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा प्रस्तुत एक हालिया रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि यमुना नदी में प्रदूषण का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच चुका है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सितंबर 2024 में मल का स्तर अनुमेय सीमा से 1,959 गुना और वांछित सीमा से 9,800 गुना अधिक था. यह स्थिति आसपास की अनधिकृत कॉलोनियों से बहते असंवर्द्धित सीवेज के कारण उत्पन्न हुई है.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने इस बात का न्यायिक संज्ञान लिया है कि यमुना में प्रदूषण की मात्रा अब तक के उच्चतम स्तर पर है. उस संदर्भ में श्रम विहार कॉलोनी के निवासियों ने जो अस्थाई रोक की मांग की थी, उसे अस्वीकार कर दिया गया.

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सुनवाई के दौरान निवासियों के वकील ने तर्क रखा कि कॉलोनी यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में नहीं आती और यह निजी भूमि पर स्थित है. लेकिन दूसरे पक्ष के तर्कों ने यह स्पष्ट किया कि श्रम विहार को दिल्ली सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अनधिकृत कॉलोनियों की सूची में शामिल नहीं किया गया था. अदालत ने कहा कि आवेदकों ने कॉलोनी के निजी भूमि पर होने का दावा करते हुए किसी मान्यता प्राप्त योजना या निर्माण पूर्णता प्रमाण पत्र को पेश नहीं किया है.

इस मामले के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को स्पष्ट किया है. साथ ही अनधिकृत निर्माणों को लेकर सरकारी नियामक की भूमिका की भी पुष्टि की है. यह न्यायालय का निर्णय न केवल यमुना नदी के स्वास्थ्य को संरक्षण देने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अन्य अनधिकृत कॉलोनियों पर भी एक मिसाल स्थापित करता है.

(PTI)

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