नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अप्राकृतिक यौन सबंध बनाने के मामले से निपटने के लिए नए आपराधिक कानून में कोई प्रावधान न होने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि वो इस मुद्दे पर निर्देश लेकर अगली सुनवाई पर सूचित करें. इस मामले की अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी.
यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुषों के लिए नए कानून में प्रावधान नहीं: इस मामले में याचिकाकर्त्ता गंतव्य गुलाटी का कहना था कि पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन सबंध बनाने पर सजा का प्रावधान था, लेकिन नए आपराधिक कानून में इस धारा को खत्म कर दिया गया और कोई नई धारा भी नहीं जोड़ी गई है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इसके चलते अभी अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुषों और शादीशुदा संबंध में इस तरह के संबंधों को झेलने वाली महिलाओं के लिए कोई कानूनी राहत का प्रावधान नए कानून में नहीं है.
यौन उत्पीड़न की शिकायत होने पर एफआईआर: उन्होंने कहा कि अगर कोई पुरुष दूसरे पुरुष का यौन उत्पीड़न करता है तो उसकी शिकायत होने पर एफआईआर भी दर्ज नहीं होगी. जब तक नये आपराधिक कानून में अप्राकृतिक यौन शोषण के खिलाफ प्रावधान नहीं किया जाएगा. एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि ये मामला संबंधित मंत्रालय के समक्ष विचाराधीन है.
उन्होंने कहा कि इस याचिका का निस्तारण कर दिया जाए और याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर केंद्र सरकार को विचार करने का आदेश जारी किया जाए, लेकिन हाईकोर्ट ने केंद्र की इस दलील को अस्वीकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि ये मामला एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ हिंसा से भी जुड़ा है. इसलिए आप केंद्र सरकार से निर्देश लेकर आएं.
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