नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) से पूछा है कि वे बताएं कि 2008 में कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित होने के बावजूद करीब सौ ड्राइवरों की नियुक्ति कैसे हुई. जस्टिस चंद्रधारी सिंह की बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 22 मार्च को करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि ये लोगों की सुरक्षा से जुड़ा मसला है. ये काफी दुखद है कि कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा है, जहां याचिकाकर्ता विभाग ने ड्राइवरों की नियक्ति में घोर लापरवाही की.
इसके अलावा दिल्ली परिवहन निगम के चेयरपर्सन को हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर यह भी बताने को कहा है कि जो लोग कलर ब्लाइंडनेस के शिकार थे, उन्हें बस चालक कैसे नियुक्त किया गया. कोर्ट ने कहा कि इन ड्राइवरों की नियुक्ति 2008 में हुई और पांच सालों तक डीटीसी गहरी नींद में सोया रहा.
कोर्ट ने बताया कि 13 अप्रैल, 2013 को डीटीसी ने उन ड्राइवरों की फिटनेस टेस्ट के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया. दरअसल दिल्ली परिवहन निगम ने ड्राइवर चेतराम को 3 जनवरी, 2011 को एक हादसे के बाद बर्खास्त कर दिया था. उस हादसे में चेतराम 30 फीसदी दिव्यांग हो गए थे, जिसके बाद चेतराम ने अपनी बर्खास्तगी को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) चुनौती दी थी. अब दिल्ली उच्च न्यायालय के पक्ष में फैसला सुनाया है.
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