नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पत्नी द्वारा की जा रही मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक दे दिया. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने कहा," पत्नी के पति के सहकर्मियों और दोस्तों के साथ अवैध संबंध के बेबुनियाद आरोप दिमाग पर असर डालते हैं और अगर ऐसा आचरण जारी रहता है, तो यह मानसिक क्रूरता का स्रोत है. इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि अपीलकर्ता (पति) को अपने वैवाहिक जीवन के दौरान क्रूरता का शिकार होना पड़ा है और मृत घोड़े को कोड़े मारने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा. इसलिए, हम विवादित फैसले को रद्द करते हैं और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक देते हैं,''
अदालत द्वारा कहा गया कि शादी के पहले 14 वर्षों तक दोनों पक्षों के बीच कानूनी विवादों का न होना ही एक "सुचारू रिश्ता" नहीं है, बल्कि यह केवल पति के किसी तरह अपने रिश्ते को चलाने के प्रयासों को दर्शाता है. अदालत ने कहा, "यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों ने एक साथ रहने का प्रयास किया गया था, लेकिन 16 वर्षों से अधिक समय तक चली उनकी कोशिशों के बावजूद, उनके रिश्ते में लगातार मनमुटाव बनी रही, जिसने उनके रिश्ते को पनपने नहीं दिया."
पत्नी ने दहेज सहित अन्य गंभीर आरोप लगाए थे: पति ने दावा किया था कि पत्नी ने बिना किसी आधार के ससुर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के गैरजिम्मेदार और गंभीर आरोप लगाए थे. वहीं परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के भी आरोप लगाए थे. जो कोर्ट में किसी भी ठोस सबूत से प्रमाणित नहीं हो पाया. जिसके बाद अदालत ने कहा,"अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगाए गए दहेज उत्पीड़न के आरोप साबित नहीं हो पाए शादी के सोलह साल बाद, बिना किसी आधार के मानसिक क्रूरता के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता है.