नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश अमित शर्मा ने मंगलवार को दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया में भड़की हिंसा से संबंधित याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. इस तरह के मामलों से निपटने वाले न्यायाधीशों के रोस्टर में बदलाव के बाद मामले को न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था. अगली सुनवाई 8 अगस्त को होगी. जिसके सदस्य न्यायमूर्ति अमित शर्मा नहीं होंगे.
हिंसा के बाद हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें चिकित्सा उपचार, मुआवज़ा देने और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने के लिए एक विशेष जांच दल, जांच आयोग या तथ्य-खोज समिति गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई. अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता वकील, जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) के छात्र, दक्षिण दिल्ली के ओखला के निवासी, जहां विश्वविद्यालय स्थित है और संसद के सामने जामा मस्जिद के इमाम हैं.
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि पुलिस बल द्वारा छात्रों पर की गई कथित क्रूरता की जांच के लिए पुलिस और केंद्र सरकार से स्वतंत्र एक एसआईटी के गठन की आवश्यकता थी. उन्होंने कहा है कि इस तरह के कदम से "जनता को आश्वस्त" किया जा सकेगा और लोगों का सिस्टम में विश्वास बहाल होगा. अपने जवाब में पुलिस ने याचिकाओं का विरोध किया है और कहा है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती, क्योंकि हिंसा के मामलों के संबंध में आरोप पत्र दायर किए जा चुके हैं और उन्हें संबंधित अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष जो भी राहत चाहिए थी, उसे मांगना चाहिए था.
उन्होंने दावा किया है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय समर्थन वाले कुछ लोगों ने जानबूझकर इलाके में हिंसा फैलाने का एक सुनियोजित प्रयास किया था. बाद में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने कई एफआईआर में व्यापक जांच की थी. पुलिस ने कहा है कि याचिकाकर्ता "अंतरराष्ट्रीय" हैं और इलाके के स्थानीय राजनेताओं ने पुलिस पर हमला करने और हिंसा भड़काने के लिए जेएमआई में विरोध प्रदर्शन को "मुखौटा" के रूप में इस्तेमाल किया.
पुलिस ने कथित पुलिस अत्याचारों की जांच के लिए एसआईटी गठित करने और छात्रों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने का विरोध किया है और तर्क दिया है कि कोई "अजनबी" व्यक्ति न्यायिक जांच या किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी द्वारा जांच की मांग नहीं कर सकता. पुलिस ने कहा है कि जनहित याचिका दायर करने वालों को किसी कथित अपराध की जांच और मुकदमा चलाने के लिए एसआईटी के सदस्यों को चुनने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
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