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DOCTOR'S DAY स्पेशल: बिना आराम लगातार 36 घंटे तक काम करते हैं सरकारी अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर्स, ना वीक ऑफ, ना छुट्टी...जानिए क्या है जमीनी हकीकत? - NATIONAL DOCTOR S DAY 2024 - NATIONAL DOCTOR S DAY 2024

National Doctor's Day: दिल्ली सरकार के अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी की वजह से रेजिडेंट डॉक्टर्स को बिना रुके लगातार काम करना पड़ता है. ये हालात दिल्ली के LNJP, RML अस्पताल समेत कई अस्पतालों में बने हुए हैं.

DOCTOR'S DAY स्पेशल
DOCTOR'S DAY स्पेशल (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 1, 2024, 2:08 PM IST

नई दिल्ली: हर साल एक जुलाई का दिन डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इस दिन डॉक्टरों के लिए बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उनके अधिकारों व चिकित्सा क्षेत्र में सुधार पर भी चर्चा की जाती है. लेकिन डॉक्टरों की किल्लत झेल रहे अस्पतालों और काम के बोझ तले दब रहे चिकित्सकों के बारे में कहीं बात नहीं होती. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.

LNJP अस्पताल में डॉक्टर्स के पद
LNJP अस्पताल में डॉक्टर्स के पद (SOURCE: ETV BHARAT)

दिल्ली के अस्पताल में मरीजों का भारी लोड होने के कारण रेजिडेंट डॉक्टरों को 24-24 घंटे काम करना पड़ता है. यह स्थिति सिर्फ मरीजों के लोड की वजह से नहीं बल्कि अस्पताल में स्टाफ की कमी के कारण भी है. जबकि मानक के अनुसार एक रेजिडेंट डॉक्टर से एक सप्ताह में सिर्फ 48 घंटे काम कराना होता है. मतलब छह दिन में आठ घंटे प्रतिदिन और एक दिन की छुट्टी.

हमेंं नहीं मालूम होता कि ड्यूटी कब खत्म होगी-रेजिडेंट डॉक्टर, LNJP अस्पताल

दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल LNJP में रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ अविरल माथुर ने बताया कि लोकनायक अस्पताल के कई विभागों में तो डॉक्टरों की संख्या पूरी है, जबकि कई विभागों में डॉक्टर के पद खाली हैं. इसकी वजह से भी रेजिडेंट डॉक्टरों के ऊपर काम का अधिक बोझ रहता है. डॉक्टर अविरल ने बताया कि अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर के काम करने की कोई समय सीमा तय नहीं है. एक बार ड्यूटी पर आने के बाद वापस ड्यूटी कब खत्म होगी यह कोई निश्चित नहीं रहता है. कम से कम 24 घंटे और अधिकतम 36 घंटे तक भी काम करना पड़ता है. अस्पताल की ओपीडी में भी प्रतिदिन सात से आठ हजार मरीज आते हैं.

मेडिसिन, गायनी एनेस्थीसिया और सर्जरी जैसे विभागों में मरीजों का काफी बोझ है. सुबह 9:00 से लेकर के तीन बजे तक ओपीडी चलती है. उसके बाद वार्ड में जाकर भी भर्ती मरीजों को देखना पड़ता है. जब ड्यूटी पूरी होने पर दूसरे साथी डॉक्टर आ जाते हैं तो उनको चार्ज देने में और भर्ती मरीजों के बारे में बताने में भी कम से कम 1 घंटे का समय लग जाता है. इस तरह डॉक्टरों के ऊपर काम का काफी दबाव रहता है.

डॉक्टर अविरल माथुर ने बताया कि लोकनायक अस्पताल के एनेस्थीसिया विभाग में डॉक्टरों के 20 पद, गायनी में 15, सर्जरी में 10, न्यूरो सर्जरी में पांच पद खाली हैं. माथुर ने बताया कि यह पद तो पुरानी स्वीकृत क्षमता में से खाली हैं. उसके बाद तो अस्पताल में कई विभाग और बेड की संख्या भी बढ़ी है. उसके हिसाब से स्वीकृत पदों की संख्या नहीं बढ़ाई गई है. अगर इन सभी पदों को भी भर दिया जाए तो भी रेजिडेंट डॉक्टर को अधिक समय काम करना ही होगा क्योंकि मरीजों का लोड बहुत ज्यादा रहता है.

डॉ. अविरल माथुर ने यह भी बताया कि अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर की जो पोस्ट हैं वह अधिकतर एडहॉक बेसिस पर भरने के लिए विज्ञापन निकाले जाते हैं. लेकिन काम के बोझ को देखते हुए बहुत कम डॉक्टर ही इंटरव्यू के लिए आते हैं, क्योंकि एडहॉक पर उन्हें 3 साल के लिए रखा जाता है, जिसमें हर साल उनका रिन्यूअल करना होता है. इसलिए अधिकतर काम पीजी वाले और रेजिडेंट डॉक्टर के भरोसे ही चलता है. उसमें भी इस बार नीट पीजी की परीक्षा स्थगित होने से आने वाले समय में यह स्थिति पैदा हो सकती है कि परीक्षा लेट होने से काउंसलिंग और दाखिला प्रक्रिया में देरी हो जाए और अस्पतालों में पीजी डॉक्टर समय पर ना पहुंच पाए और फिर मरीजों को परेशानी हो.

RML में हर दिन OPD में आते हैं 8 से 10 हजार मरीज

वहीं, राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर गौतम कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, जिसकी वजह से 24 से 36 घंटे हर रेजिडेंट डॉक्टर को काम करना पड़ता है. आठ से 10 हजार मरीज प्रतिदिन ओपीडी में आते हैं. सुबह 9:00 से 4:00 बजे तक ओपीडी चलती है. सुबह 7:30 से 8:30 बजे तक मरीजों का पंजीकरण होता है. ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए जो जांच बताई जाती हैं. उन जांचों के लिए सैंपल लेने का काम भी 5:00 बजे तक होता है. अस्पताल का 70 से 80 परसेंट काम रेजिडेंट डॉक्टरों पर ही निर्भर है. उन्होंने बताया कि दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों का लगभग यही हाल है. रेजिडेंट डॉक्टर से असिस्टेंट प्रोफेसर बनने तक रेजिडेंट डॉक्टरों पर काम का बोझ बराबर रहता है. एसोसिएट प्रोफेसर के स्तर पर पहुंचने के बाद फिर काम का बोझ कम होता जाता है और वह काम फिर और आने वाले रेजिडेंट डॉक्टर देखने लगते हैं. उन्होंने बताया कि अस्पताल के कई विभागों में कुछ पद खाली भी हैं इससे भी काम का बहुत ज्यादा बोझ है.

दिल्ली में डॉक्टर मरीज अनुपात की स्थिति ठीक
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ कैंसर सर्जन डॉक्टर अंशुमान कुमार ने बताया कि अगर राजधानी दिल्ली में डॉक्टर और मरीज अनुपात की बात करें तो स्थित काफी ठीक है. डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 1000 मरीज पर एक डॉक्टर होना चाहिए. जबकि दिल्ली में 1000 मरीजों पर तीन डॉक्टर का अनुपात है. लेकिन, दिल्ली में देश भर के राज्यों से मरीज बड़ी संख्या में इलाज के लिए आते हैं. इसलिए सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों का बोझ ज्यादा रहता है. इसलिए दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं कम पड़ जाती हैं और डाक्टरों को अधिक समय तक काम करना पड़ता है. इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब दूसरे राज्यों में भी स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारा जाए और मरीजों को अपने गृह जनपद में ही इलाज मिले. जिससे उन्हें दिल्ली या दूसरे राज्यों में इलाज के लिए जाने की जरूरत न पड़े.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में डेंगू फैलने का खतरा! भारी बारिश के बाद दिल्ली में जगह-जगह पानी जमा, इस साल अभी तक आए 235 मामले

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नई दिल्ली: हर साल एक जुलाई का दिन डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इस दिन डॉक्टरों के लिए बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उनके अधिकारों व चिकित्सा क्षेत्र में सुधार पर भी चर्चा की जाती है. लेकिन डॉक्टरों की किल्लत झेल रहे अस्पतालों और काम के बोझ तले दब रहे चिकित्सकों के बारे में कहीं बात नहीं होती. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.

LNJP अस्पताल में डॉक्टर्स के पद
LNJP अस्पताल में डॉक्टर्स के पद (SOURCE: ETV BHARAT)

दिल्ली के अस्पताल में मरीजों का भारी लोड होने के कारण रेजिडेंट डॉक्टरों को 24-24 घंटे काम करना पड़ता है. यह स्थिति सिर्फ मरीजों के लोड की वजह से नहीं बल्कि अस्पताल में स्टाफ की कमी के कारण भी है. जबकि मानक के अनुसार एक रेजिडेंट डॉक्टर से एक सप्ताह में सिर्फ 48 घंटे काम कराना होता है. मतलब छह दिन में आठ घंटे प्रतिदिन और एक दिन की छुट्टी.

हमेंं नहीं मालूम होता कि ड्यूटी कब खत्म होगी-रेजिडेंट डॉक्टर, LNJP अस्पताल

दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल LNJP में रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ अविरल माथुर ने बताया कि लोकनायक अस्पताल के कई विभागों में तो डॉक्टरों की संख्या पूरी है, जबकि कई विभागों में डॉक्टर के पद खाली हैं. इसकी वजह से भी रेजिडेंट डॉक्टरों के ऊपर काम का अधिक बोझ रहता है. डॉक्टर अविरल ने बताया कि अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर के काम करने की कोई समय सीमा तय नहीं है. एक बार ड्यूटी पर आने के बाद वापस ड्यूटी कब खत्म होगी यह कोई निश्चित नहीं रहता है. कम से कम 24 घंटे और अधिकतम 36 घंटे तक भी काम करना पड़ता है. अस्पताल की ओपीडी में भी प्रतिदिन सात से आठ हजार मरीज आते हैं.

मेडिसिन, गायनी एनेस्थीसिया और सर्जरी जैसे विभागों में मरीजों का काफी बोझ है. सुबह 9:00 से लेकर के तीन बजे तक ओपीडी चलती है. उसके बाद वार्ड में जाकर भी भर्ती मरीजों को देखना पड़ता है. जब ड्यूटी पूरी होने पर दूसरे साथी डॉक्टर आ जाते हैं तो उनको चार्ज देने में और भर्ती मरीजों के बारे में बताने में भी कम से कम 1 घंटे का समय लग जाता है. इस तरह डॉक्टरों के ऊपर काम का काफी दबाव रहता है.

डॉक्टर अविरल माथुर ने बताया कि लोकनायक अस्पताल के एनेस्थीसिया विभाग में डॉक्टरों के 20 पद, गायनी में 15, सर्जरी में 10, न्यूरो सर्जरी में पांच पद खाली हैं. माथुर ने बताया कि यह पद तो पुरानी स्वीकृत क्षमता में से खाली हैं. उसके बाद तो अस्पताल में कई विभाग और बेड की संख्या भी बढ़ी है. उसके हिसाब से स्वीकृत पदों की संख्या नहीं बढ़ाई गई है. अगर इन सभी पदों को भी भर दिया जाए तो भी रेजिडेंट डॉक्टर को अधिक समय काम करना ही होगा क्योंकि मरीजों का लोड बहुत ज्यादा रहता है.

डॉ. अविरल माथुर ने यह भी बताया कि अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर की जो पोस्ट हैं वह अधिकतर एडहॉक बेसिस पर भरने के लिए विज्ञापन निकाले जाते हैं. लेकिन काम के बोझ को देखते हुए बहुत कम डॉक्टर ही इंटरव्यू के लिए आते हैं, क्योंकि एडहॉक पर उन्हें 3 साल के लिए रखा जाता है, जिसमें हर साल उनका रिन्यूअल करना होता है. इसलिए अधिकतर काम पीजी वाले और रेजिडेंट डॉक्टर के भरोसे ही चलता है. उसमें भी इस बार नीट पीजी की परीक्षा स्थगित होने से आने वाले समय में यह स्थिति पैदा हो सकती है कि परीक्षा लेट होने से काउंसलिंग और दाखिला प्रक्रिया में देरी हो जाए और अस्पतालों में पीजी डॉक्टर समय पर ना पहुंच पाए और फिर मरीजों को परेशानी हो.

RML में हर दिन OPD में आते हैं 8 से 10 हजार मरीज

वहीं, राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर गौतम कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, जिसकी वजह से 24 से 36 घंटे हर रेजिडेंट डॉक्टर को काम करना पड़ता है. आठ से 10 हजार मरीज प्रतिदिन ओपीडी में आते हैं. सुबह 9:00 से 4:00 बजे तक ओपीडी चलती है. सुबह 7:30 से 8:30 बजे तक मरीजों का पंजीकरण होता है. ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए जो जांच बताई जाती हैं. उन जांचों के लिए सैंपल लेने का काम भी 5:00 बजे तक होता है. अस्पताल का 70 से 80 परसेंट काम रेजिडेंट डॉक्टरों पर ही निर्भर है. उन्होंने बताया कि दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों का लगभग यही हाल है. रेजिडेंट डॉक्टर से असिस्टेंट प्रोफेसर बनने तक रेजिडेंट डॉक्टरों पर काम का बोझ बराबर रहता है. एसोसिएट प्रोफेसर के स्तर पर पहुंचने के बाद फिर काम का बोझ कम होता जाता है और वह काम फिर और आने वाले रेजिडेंट डॉक्टर देखने लगते हैं. उन्होंने बताया कि अस्पताल के कई विभागों में कुछ पद खाली भी हैं इससे भी काम का बहुत ज्यादा बोझ है.

दिल्ली में डॉक्टर मरीज अनुपात की स्थिति ठीक
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ कैंसर सर्जन डॉक्टर अंशुमान कुमार ने बताया कि अगर राजधानी दिल्ली में डॉक्टर और मरीज अनुपात की बात करें तो स्थित काफी ठीक है. डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 1000 मरीज पर एक डॉक्टर होना चाहिए. जबकि दिल्ली में 1000 मरीजों पर तीन डॉक्टर का अनुपात है. लेकिन, दिल्ली में देश भर के राज्यों से मरीज बड़ी संख्या में इलाज के लिए आते हैं. इसलिए सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों का बोझ ज्यादा रहता है. इसलिए दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं कम पड़ जाती हैं और डाक्टरों को अधिक समय तक काम करना पड़ता है. इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब दूसरे राज्यों में भी स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारा जाए और मरीजों को अपने गृह जनपद में ही इलाज मिले. जिससे उन्हें दिल्ली या दूसरे राज्यों में इलाज के लिए जाने की जरूरत न पड़े.

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