नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के जेल महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वो कैदियों से मुलाकात करने के लिए वकीलों की सुविधाओं में कमी पर प्रतिवेदन की तरह विचार करें. चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने जेल महानिदेशक को चार हफ्ते में विचार कर फैसला करने का निर्देश दिया है.
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गौर किया कि दिल्ली सरकार इसमें कुछ भी फंड देने को तैयार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सरकार की नीति साफ है कि वे कोई टैक्स नहीं लेते हैं, कोई टैक्स भी खर्च नहीं करते. याचिका श्याम सुंदर अग्रवाल ने दायर किया. याचिका में मांग की गई थी कि जेलों के विचाराधीन कैदियों से मुलाकात करने वाले वकीलों के लिए बेहतर सुविधाएं दी जाएं.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि वे कोई आरामदायक सुविधा नहीं मांग रहे, बल्कि बुनियादी सुविधाएं मांग कर रहे हैं. कोर्ट ने भी इस मांग को जरुरी बताया, लेकिन ये भी नोट किया कि सरकार के पास फंड नहीं है. दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील संतोष त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने जेल का दौरा कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट को देखने के बाद दिल्ली सरकार इस बात पर राजी हुई थी कि जेलों में कैदियों की क्षमता 20 हजार तक की बढ़ाई जाए, लेकिन बाद में उस पर कोई फैसला नहीं किया गया. फिलहाल, जेलों में जो सुविधाएं हैं वो सात से आठ हजार कैदियों के लिए पर्याप्त हैं.
बता दें, याचिकाकर्ता ने तिहाड़ जेल का दौरा करने के बाद विभिन्न मसलों को उठाया था. याचिका में कहा गया था कि वकीलों को कैदियों के मिलने के लिए एक से दो घंटे तक इंतजार करना होता है, भले ही मौसम कितना भी प्रतिकूल क्यों न हो. वकीलों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं होती हैं. यहां तक कि पीने का पानी, टॉयलेट इत्यादि की भी सुविधाएं नहीं हैं. कई एकड़ भूमि खाली होने के बावजूद वकीलों के लिए कोई पार्किंग की सुविधा भी नहीं है. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले दिल्ली बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी प्रतिवेदन दिया था. याचिकाकर्ता ने 5 सितंबर को जेल महानिदेशक को भी प्रतिवेदन दिया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
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