प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद में आगे की सुनवाई के लिए 30 अप्रैल तय की है. मुकदमे की स्थिरता के संबंध में सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत अर्जी पर न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन के समक्ष मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए तर्कों के जवाब में हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि मुकदमा चलने योग्य है. पोषणीयता के संबंध में दलील का फैसला प्रमुख सबूतों के बाद ही किया जा सकता है. कहा गया कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे, क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है. विचाराधीन संपत्ति एक मंदिर था और उस पर जबरन कब्जा करने के बाद वहां नमाज अदा करना शुरू कर दिया गया. यह भी कहा गया कि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है. इसलिए इस न्यायालय को मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है. पूजा स्थल अधिनियम के साथ वक्फ अधिनियम के संबंध में याचिका केवल मुकदमे में पक्षकारों के साक्ष्य द्वारा निर्धारित की जा सकती है और सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत किसी अर्जी पर सुनवाई करते समय यह तय नहीं किया जा सकता है.
इससे पहले हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि सिर्फ यह कह देने से कि अब वहां मस्जिद है, वक्फ कानून लागू नहीं होगा. केवल उसे ध्वस्त कर देने से संपत्ति का धार्मिक चरित्र नहीं बदला जा सकता. उन्होंने कहा कि यह देखना और तय करना होगा कि कथित वक्फ डीड वैध है या नहीं. यदि संपत्ति वक्फ की वैध संपत्ति नहीं है तो वह वैध वक्फ नहीं होगी. इन सभी बातों को मुकदमे में देखा जाना चाहिए और इस प्रकार यह मुकदमा चलने योग्य है. लिमिटेशन के मुद्दे पर उन्होंने कहा था कि यह मुकदमा समय रहते दायर किया गया है. वर्ष 1968 के समझौते की जानकारी वादी को 2020 में हुई और जानकारी के तीन साल के भीतर मुकदमा दायर किया गया है. यह भी कहा गया कि यदि सिबायात या ट्रस्ट लापरवाह है और अपना कर्तव्य नहीं निभा रहा है, तो देवता अपने मित्र के माध्यम से आगे आ सकते हैं और मुकदमा कर सकते हैं. ऐसे मामले में परिसीमन का सवाल ही नहीं उठता.
इससे पहले मुस्लिम पक्ष की ओर से तसलीमा अजीज अहमदी ने वेदियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कहा था कि मुकदमा परिसीमा के कारण वर्जित है. उनके अनुसार पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता किया था और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक दीवानी मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है. समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है. इस प्रकार यह मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है.
आगे कहा था कि शाही ईदगाह मस्जिद की संरचना को हटाने के बाद कब्जे के साथ मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया गया है. मुकदमे में प्रार्थना से पता चलता है कि मस्जिद की संरचना वहां है और प्रबंधन समिति का उस पर कब्जा है. इस तरह वक्फ संपत्ति पर विवाद उठाया गया है इसलिए वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे और ऐसे में वक्फ न्यायाधिकरण को मामले की सुनवाई का अधिकार है न कि सिविल कोर्ट को. उन्होंने तर्क दिया था कि मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है. क्योंकि यह वक्फ अधिनियम के साथ पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों से बाधित है.विवादित संपत्ति पर शाही ईदगाह मस्जिद है और वही वक्फ संपत्ति है. यह विवाद वक्फ संपत्ति से संबंधित है और इस प्रकार मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार केवल वक्फ ट्रिब्यूनल के पास है. सिविल कोर्ट को मामले की सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.