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पुण्यतिथि विशेष: भगत सिंह के साथ फांसी नहीं चढ़ने से क्यों दुखी थे बटुकेश्वर दत्त? - Batukeshwar Dutt

Batukeshwar Dutt Death Anniversary: स्वतंत्रता आंदोलन के नायक और क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की आज पुण्यतिथि है. वह शहीद भगत सिंह के निकट सहयोगी थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. जिस वजह से उनको काला पानी की सजा मिली थी, जहां उनको अंग्रेजी ने काफी यातनाएं दीं. आजादी के बाद वह बिहार विधान परिषद के सदस्य भी बने लेकिन वक्त के साथ वह गुमनामी में चले गए.

Batukeshwar Dutt
बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 20, 2024, 8:05 AM IST

Updated : Jul 20, 2024, 8:45 AM IST

पटना: आज स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 59वीं पुण्यतिथि है. 18 नवंबर 1910 को पश्चिम बंगाल के नानी वेदवांन में जन्मे स्वतंत्रता आंदोलन के सच्चे सिपाही बटुकेश्वर ने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया था. वह बिहार विधान परिषद के सदस्य भी बने और उनका अंतिम समय मुफलिसी में बीता था. भगत सिंह की माता विद्या देवी ने बटुकेश्वर दत्त को अंतिम दिनों में साथ दिया था.

Batukeshwar Dutt
बटुकेश्वर दत्त (ETV Bharat)

भगत सिंह की मां ने रखा ख्याल: भगत सिंह की फांसी तय हो गई, तब उन्होंने (भगत सिंह) अपनी मां से कहा था की मेरी आत्मा बटुकेश्वर में रहेगी. जब उनकी मां विद्या देवी को खबर मिली कि पटना में बटुकेश्वर की तबीयत बहुत खराब है तो वो पटना आईं और उन्हें एम्स लेकर गईं. इलाज के लिए चंदा जमा किया और बिस्तर के पास चटाई बिछाई. 6 महीने उनके पास ही सोती रहीं. उनके (बटुकेश्वर) निधन के बाद उनकी बिटिया भारती का धूमधाम से विवाह भी कराया.

Batukeshwar Dutt
भगत सिंह की मां विद्या देवी के साथ बटुकेश्वर दत्त (ETV Bharat)

भगत सिंह के साथ थे बटुकेश्वर दत्त: 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में भगत सिंह के साथ ब्रिटिश तानाशाही का विरोध करने वालों में बटुकेश्वर दत्त का नाम भी शामिल था. ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जिसका भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने विरोध किया था और संसद भवन में बम फेंका था. घटना के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया था. दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

बटुकेश्वर दत्त को मिली काला पानी की सजा: वहीं, सजा सुनाने के बाद दोनों क्रांतिकारी को लाहौर के फोर्ट जेल में रखा गया था. भगत सिंह और लाहौर षड्यंत्र मामले में केस चलाया गया. इस मामले में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और काला पानी जेल भेज दिया गया. बटुकेश्वर दत्त की इच्छा थी कि उन्हें भी फांसी की सजा सुनाई जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

Batukeshwar Dutt
बटुकेश्वर दत्त की मूर्ति (ETV Bharat)

1938 में जेल से मिली रिहाई: बटुकेश्वर दत्त ने जेल में रहते हुए 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की. इसके बाद उन्हें 1937 में सेल्यूलर जेल से बाकी दो केंद्रीय कारा में भेज दिया गया. वहीं, 1938 में रिहा कर दिए गए. रिहाई के बाद फिर से उनकी गिरफ्तारी हो गई लेकिन 1945 में उन्हें रिहा किया गया.

आजाद भारत में नहीं मिला उचित सम्मान: बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे. उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई.

Batukeshwar Dutt
बटुकेश्वर दत्त स्मारक (ETV Bharat)

भगत सिंह के जीवन पर आधारित नाटक गगन दमामा बाजियों में भूमिका निभाने वाले अनीश अंकुर कहते हैं, 'बटुकेश्वर दत्त का अंतिम समय कष्ट में बीता था गरीबी और मुफलिसी के चलते वह साइकिल पर आटा बेचने का काम करते थे. बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे. उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई.'

Batukeshwar Dutt
बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि (ETV Bharat)

54 वर्ष की उम्र में निधन: बटुकेश्वर दत्त ने नवंबर 1947 में अंजलि दत्त से विवाह किया और उसके बाद वह पटना में रहने लगे. बटुकेश्वर दत्त 1963 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. बीमारी के चलते 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान में उनका निधन हो गया. उनकी इच्छा के अनुसार उनकी समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में बना, जहां भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु का समाधि स्थल था. आजादी के इस मतवाले ने अपनी आखिरी इच्छा के तौर पर कहा था, 'उन्हें भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही दफन किया जाए.' बाद में उनकी इच्छानुसार उन्हें भी उसी जगह पर दफनाया गया.

ये भी पढ़ें: बटुकेश्वर दत्त: आजादी का वो मतवाला, जिसने फांसी की सजा नहीं मिलने पर महसूस की शर्मिंदगी

पटना: आज स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 59वीं पुण्यतिथि है. 18 नवंबर 1910 को पश्चिम बंगाल के नानी वेदवांन में जन्मे स्वतंत्रता आंदोलन के सच्चे सिपाही बटुकेश्वर ने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया था. वह बिहार विधान परिषद के सदस्य भी बने और उनका अंतिम समय मुफलिसी में बीता था. भगत सिंह की माता विद्या देवी ने बटुकेश्वर दत्त को अंतिम दिनों में साथ दिया था.

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बटुकेश्वर दत्त (ETV Bharat)

भगत सिंह की मां ने रखा ख्याल: भगत सिंह की फांसी तय हो गई, तब उन्होंने (भगत सिंह) अपनी मां से कहा था की मेरी आत्मा बटुकेश्वर में रहेगी. जब उनकी मां विद्या देवी को खबर मिली कि पटना में बटुकेश्वर की तबीयत बहुत खराब है तो वो पटना आईं और उन्हें एम्स लेकर गईं. इलाज के लिए चंदा जमा किया और बिस्तर के पास चटाई बिछाई. 6 महीने उनके पास ही सोती रहीं. उनके (बटुकेश्वर) निधन के बाद उनकी बिटिया भारती का धूमधाम से विवाह भी कराया.

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भगत सिंह की मां विद्या देवी के साथ बटुकेश्वर दत्त (ETV Bharat)

भगत सिंह के साथ थे बटुकेश्वर दत्त: 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में भगत सिंह के साथ ब्रिटिश तानाशाही का विरोध करने वालों में बटुकेश्वर दत्त का नाम भी शामिल था. ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जिसका भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने विरोध किया था और संसद भवन में बम फेंका था. घटना के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया था. दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

बटुकेश्वर दत्त को मिली काला पानी की सजा: वहीं, सजा सुनाने के बाद दोनों क्रांतिकारी को लाहौर के फोर्ट जेल में रखा गया था. भगत सिंह और लाहौर षड्यंत्र मामले में केस चलाया गया. इस मामले में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और काला पानी जेल भेज दिया गया. बटुकेश्वर दत्त की इच्छा थी कि उन्हें भी फांसी की सजा सुनाई जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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बटुकेश्वर दत्त की मूर्ति (ETV Bharat)

1938 में जेल से मिली रिहाई: बटुकेश्वर दत्त ने जेल में रहते हुए 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की. इसके बाद उन्हें 1937 में सेल्यूलर जेल से बाकी दो केंद्रीय कारा में भेज दिया गया. वहीं, 1938 में रिहा कर दिए गए. रिहाई के बाद फिर से उनकी गिरफ्तारी हो गई लेकिन 1945 में उन्हें रिहा किया गया.

आजाद भारत में नहीं मिला उचित सम्मान: बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे. उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई.

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बटुकेश्वर दत्त स्मारक (ETV Bharat)

भगत सिंह के जीवन पर आधारित नाटक गगन दमामा बाजियों में भूमिका निभाने वाले अनीश अंकुर कहते हैं, 'बटुकेश्वर दत्त का अंतिम समय कष्ट में बीता था गरीबी और मुफलिसी के चलते वह साइकिल पर आटा बेचने का काम करते थे. बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे. उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई.'

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बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि (ETV Bharat)

54 वर्ष की उम्र में निधन: बटुकेश्वर दत्त ने नवंबर 1947 में अंजलि दत्त से विवाह किया और उसके बाद वह पटना में रहने लगे. बटुकेश्वर दत्त 1963 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. बीमारी के चलते 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान में उनका निधन हो गया. उनकी इच्छा के अनुसार उनकी समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में बना, जहां भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु का समाधि स्थल था. आजादी के इस मतवाले ने अपनी आखिरी इच्छा के तौर पर कहा था, 'उन्हें भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही दफन किया जाए.' बाद में उनकी इच्छानुसार उन्हें भी उसी जगह पर दफनाया गया.

ये भी पढ़ें: बटुकेश्वर दत्त: आजादी का वो मतवाला, जिसने फांसी की सजा नहीं मिलने पर महसूस की शर्मिंदगी

Last Updated : Jul 20, 2024, 8:45 AM IST
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