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क्या होता है मंहगाई भत्ता, कर्मचारियों को क्यों रहता है DA का इंतजार, जानें सब कुछ - What Is Dearness Allowance

मंहगाई भत्ता शब्द बहुत सुना होगा. आइये जानते हैं आखिर यह भत्ता क्या है, कैसे मिलता है, किसको मिलता है, कब मिलता है और कितना मिलता. इसके साथ ही इसके इतिहास के पर भी एक नजर डाल लेते हैं.

WHAT IS DEARNESS ALLOWANCE
मंहगाई भत्ता क्या होता है (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 30, 2024, 3:21 PM IST

Updated : Jul 30, 2024, 3:26 PM IST

भोपाल: मध्य प्रदेश में मोहन यादव की सरकार, सरकारी कर्मचारियों को बड़ा तोहफा देने जा रही है. मोहन सरकार ने घोषणा की है कि, रक्षाबंधन के बाद सभी सरकारी कर्मचारियों को मंहगाई भत्ता मिलेगा. इसके ऐलान से सरकारी कर्मचारियों की खुशी का ठिकाना नहीं है. खुशी हो भी क्यों नहीं, मंहगाई भत्ता नौकरीपेशा लोगों के लिए किसी भी पुरस्कार से कम नहीं होता है. यही वह भत्ता होता है जो उन्हें बढ़ती मंहगाई के बोझ तले दबने से बचाता है. कभी आपके मन में आया है कि आखिर डीए होता क्या है. क्यों सरकारी कर्मचारियों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है. आईए सब कुछ जानते हैं.

मंहगाई के बोझ तले दबने से बचने का हथियार है डीए

मंहगाई भत्ता, इसको अंग्रेजी में (Dearness Allowance) और शॉर्टकट में DA कहते हैं. डीए सरकारी और पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारियों का वो हथियार है जिससे वो हर साल बढ़ने वाली महंगाई से बचे रहते हैं. दरअसल, सरकारी कर्मचारियों और पेंशन पाने वाले रिटायर्ड कर्मचारियों को सरकार (केंद्र या राज्य) उनके जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए उन्हें बेसिक सैलरी के अलावा बढ़ती मंहगाई के हिसाब से उनकी सैलरी के साथ ही अतिरिक्त भत्ता देती है ताकि उन्हें महंगाई की मार ना झेलनी पड़े.

सरकारी नौकरियों में मंहगाई भत्ता अनिवार्य है. जबकि निजी कंपनिया अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने कर्मचारियों को भत्ता देती हैं या नहीं भी देती हैं. यह कंपनी का अपना फैसला होता है. हालांकि कई बड़ी प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्हें मंहगाई भत्ता देती हैं. मंहगाई भत्ता साल में दो बार बढ़ता है. इसे अगर आसान भाषा और संक्षिप्त में समझे तो, डीए सरकार और प्राइवेट कंपनियों की एक स्कीम है जो सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों को बढ़ती मंहगाई के हिसाब से साल में दो बार दी जाती है जो उनकी सैलरी के साथ आती है.

मंहगाई भत्ते का इतिहास

मंहगाई भत्ते की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई थी. उस समय सैनिकों को खाने या दूसरी जरूरतों के लिए सैलरी से अलग पैसे दिए जाते थे. उस समय इस भत्ते को 'खाद्य मंहगाई भत्ता' (Dearness Food Allowance) कहा जाता था. भारत में पहली बार मंहगाई भत्ता 1972 में लागू किया गया. उस समय केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले सभी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए डीए अनिवार्य कर दिया गया. वर्तमान समय में केन्द्र सरकार का मंहगाई भत्ता दर 50 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश में यह दर 46 प्रतिशत है. यह भत्ता टैक्सेबल होता है. यानि की अगर कर्मचारी की सलाना इनकम टैक्स के दायरे में आती है तो डीए का लाभ लेने वाले कर्मचारियों को इस पर टैक्स देना होता है.

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कैसे तय होता है डीए

अभी तक तो आप जान ही गए होंगे की डीए क्या होता है और कर्मचारियों को क्यों मिलता है. अब आपको बताते हैं यह मिलता कैसे है, यानि किसको कितना डीए मिलेगा यह तय कैसे होता है. डीए बढ़ती मंहगाई के हिसाब से दिया जाता है. डीए को रिटेल यानी खुदरा महंगाई के आधार पर तय किया जाता है. खुदरा महंगाई उसे कहते हैं कि जो हम और आप किसी समान को खरीदने के बाद पेमेंट करते हैं. अगर इसे दूसरे एंगल से समझें तो यह नौकरी करने वाले या पेंशनरों के रहने वाले लोकेशन से तय होता है. अगर कर्मचारी शहरी इलाके में नौकरी कर रहे हैं तो उसको ज्यादा भत्ता मिलेगा क्योंकि शहरों में गांव के मुकाबले मंहगाई ज्यादा होती है. वहीं, अगर कर्मचारी ग्रामीण या कम मंहगाई वाले छोटे शहरों में नौकरी कर रहा है तो उसको शहरी कर्मचारी के मुकाबले थोड़ा कम बढ़ा डीए मिलेगा. क्योंकि उसकी लोकेशन पर मंहगाई उतनी नहीं बढ़ी है.

भोपाल: मध्य प्रदेश में मोहन यादव की सरकार, सरकारी कर्मचारियों को बड़ा तोहफा देने जा रही है. मोहन सरकार ने घोषणा की है कि, रक्षाबंधन के बाद सभी सरकारी कर्मचारियों को मंहगाई भत्ता मिलेगा. इसके ऐलान से सरकारी कर्मचारियों की खुशी का ठिकाना नहीं है. खुशी हो भी क्यों नहीं, मंहगाई भत्ता नौकरीपेशा लोगों के लिए किसी भी पुरस्कार से कम नहीं होता है. यही वह भत्ता होता है जो उन्हें बढ़ती मंहगाई के बोझ तले दबने से बचाता है. कभी आपके मन में आया है कि आखिर डीए होता क्या है. क्यों सरकारी कर्मचारियों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है. आईए सब कुछ जानते हैं.

मंहगाई के बोझ तले दबने से बचने का हथियार है डीए

मंहगाई भत्ता, इसको अंग्रेजी में (Dearness Allowance) और शॉर्टकट में DA कहते हैं. डीए सरकारी और पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारियों का वो हथियार है जिससे वो हर साल बढ़ने वाली महंगाई से बचे रहते हैं. दरअसल, सरकारी कर्मचारियों और पेंशन पाने वाले रिटायर्ड कर्मचारियों को सरकार (केंद्र या राज्य) उनके जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए उन्हें बेसिक सैलरी के अलावा बढ़ती मंहगाई के हिसाब से उनकी सैलरी के साथ ही अतिरिक्त भत्ता देती है ताकि उन्हें महंगाई की मार ना झेलनी पड़े.

सरकारी नौकरियों में मंहगाई भत्ता अनिवार्य है. जबकि निजी कंपनिया अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने कर्मचारियों को भत्ता देती हैं या नहीं भी देती हैं. यह कंपनी का अपना फैसला होता है. हालांकि कई बड़ी प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्हें मंहगाई भत्ता देती हैं. मंहगाई भत्ता साल में दो बार बढ़ता है. इसे अगर आसान भाषा और संक्षिप्त में समझे तो, डीए सरकार और प्राइवेट कंपनियों की एक स्कीम है जो सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों को बढ़ती मंहगाई के हिसाब से साल में दो बार दी जाती है जो उनकी सैलरी के साथ आती है.

मंहगाई भत्ते का इतिहास

मंहगाई भत्ते की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई थी. उस समय सैनिकों को खाने या दूसरी जरूरतों के लिए सैलरी से अलग पैसे दिए जाते थे. उस समय इस भत्ते को 'खाद्य मंहगाई भत्ता' (Dearness Food Allowance) कहा जाता था. भारत में पहली बार मंहगाई भत्ता 1972 में लागू किया गया. उस समय केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले सभी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए डीए अनिवार्य कर दिया गया. वर्तमान समय में केन्द्र सरकार का मंहगाई भत्ता दर 50 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश में यह दर 46 प्रतिशत है. यह भत्ता टैक्सेबल होता है. यानि की अगर कर्मचारी की सलाना इनकम टैक्स के दायरे में आती है तो डीए का लाभ लेने वाले कर्मचारियों को इस पर टैक्स देना होता है.

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कैसे तय होता है डीए

अभी तक तो आप जान ही गए होंगे की डीए क्या होता है और कर्मचारियों को क्यों मिलता है. अब आपको बताते हैं यह मिलता कैसे है, यानि किसको कितना डीए मिलेगा यह तय कैसे होता है. डीए बढ़ती मंहगाई के हिसाब से दिया जाता है. डीए को रिटेल यानी खुदरा महंगाई के आधार पर तय किया जाता है. खुदरा महंगाई उसे कहते हैं कि जो हम और आप किसी समान को खरीदने के बाद पेमेंट करते हैं. अगर इसे दूसरे एंगल से समझें तो यह नौकरी करने वाले या पेंशनरों के रहने वाले लोकेशन से तय होता है. अगर कर्मचारी शहरी इलाके में नौकरी कर रहे हैं तो उसको ज्यादा भत्ता मिलेगा क्योंकि शहरों में गांव के मुकाबले मंहगाई ज्यादा होती है. वहीं, अगर कर्मचारी ग्रामीण या कम मंहगाई वाले छोटे शहरों में नौकरी कर रहा है तो उसको शहरी कर्मचारी के मुकाबले थोड़ा कम बढ़ा डीए मिलेगा. क्योंकि उसकी लोकेशन पर मंहगाई उतनी नहीं बढ़ी है.

Last Updated : Jul 30, 2024, 3:26 PM IST
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