लखनऊ: यूपी में साइबर अपराधी हर जिले में अपनी यूनिट खोल रहे है. इसके बाद यूनिट के लोगों को अपने ही जिले के लोगों को ठगने का टारगेट दिया जा रहा है. यूनिट के ठग कर्मी बैंकों से ऐसे बुजुर्ग कस्टमर की डिटेल निकाल रहे, जिनके अकाउंट में काफी पैसा और उनकी एफडी हो. इसके बाद शुरू करते है जालसाजी का खेल और डिजिटल अरेस्ट कर पूरा बैंक खाता खाली कर दे रहे है.
केस 1: बीते दिनों लखनऊ के रहने वाले डॉक्टर दंपति को एक कॉल आई. उन्हे बताया गया, कि उनके कार्ड में कुछ अवैध पैसे ट्रांसफर हुए है. उनके कार्ड एक युवक के पास मिले है. यह एक मनी लॉड्रिंग का मामला है. उन्हे डिजिटल अरेस्ट किया जा रहा है. दंपति ने बचने का उपाय पूछा, तो खुद को सीबीआई अफसर बताने वालों ने उन्हे उनकी कुछ एफडी तुड़वा कर उन्हे पैसे ट्रांसफर करने की बात कही. जालसाजों के पास पहले से ही सभी फिक्स डिपॉजिट की जानकारी थी. लिहाजा, दंपति को भरोसा हो गया, कि वह सभी सीबीआई के अफसर है. उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए, लेकिन बाद में पता चला की उनके साथ ठगी हुई है.
केस 2: यही लखनऊ निवासी अखिलेश्वर कुमार सिंह के साथ हुआ. उनके पास 12 जून को वाट्सएप पर कॉल आई. कॉलर ने खुद को सीबीआई अधिकारी आकाश कुलहरी (वर्तमान में लखनऊ में जॉइंट सीपी) बताया और कहा, कि राज कुंदरा मनी लान्ड्रिंग में दोषी है, उसमें उनका भी नाम है उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा. कॉलर ने केस से संबंधित दस्तावेज उन्हें भेजे और कहा, कि बचना है तो पीएनबी बैंक में आपकी जो 28.5 लाख की एफडी है उसे तुड़वा कर रकम भेज दो. अखिलेश्वर सिंह ने एफडी तुड़वाई और पूरा पैसा कॉलर के बताए खाते में ट्रांसफर कर दिया. फिर दूसरे दिन कॉल आई और कहा गया, कि आपकी 16 लाख की एफडी है, उसे भी तोड़ कर पैसे ट्रांसफर करो, उन्होंने यह रकम भी बताए गए खाते में ट्रांसफर कर दी.
यूपी के हर जिले में है ठग: साइबर एक्सपर्ट शिशिर यादव ने बताया, कि डिजिटल अरेस्ट के जरिए फ्रॉड करने वाले गैंग ने अपनी तकनीकी में बदलाव किया है. पहले इस तरह का फ्रॉड नाइजीरिया गैंग करता था. अब यहीं के गैंग देश में रहकर या फिर देश के बाहर से इन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. लेकिन, हालही के दिनों में जो ठगी हुई है, उसमें उनके पास लोकल स्तर की भी जानकारियां थी. यही वजह है, कि साइबर पुलिस ने बीते तीन मामलों में गिरफ्तारियां भी की है. ये ठग लखनऊ और उसके आस पास के इलाकों में ही रहते थे.
ज्यादा पैसे कमाने के लिए खोली जा रही लोकल यूनिट: साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते है, कि अब तक साइबर पुलिस ठगी के शिकार लोगों के पैसे ही रिकवर कर पाती थी. लेकिन, अब बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां भी हो रही है. इसकी वजह साइबर अपराध करने वाले सरगनाओं की ज्यादा पैसे कमाने का लालच है. पहले जालसाज सुदूर इलाकों में बैठ कर ठगी करते थे, ऐसे में जांच एजेंसियों के रडार पर नहीं आते थे. लेकिन, अब इन्होंने अपनी लोकल यूनिट खोल दी है और वहीं आस पास के जिलों के लोगों की भर्ती कर रहे है. जिससे उन्हें शिकार के विषय में अधिक से अधिक जानकारी निकालने में मदद मिलती है.
डेटा खरीद कर करते हैं रेकी: एसीपी साइबर अभिनव कहते है, कि इन शातिरों का नेटवर्क काफी लंबा है. ये दलालों के जरिए लोगों का डाटा खरीदते हैं. बैंक की डिटेल लेकर लोगों को फोन करते हैं और इसकी जानकारी देते हैं. लोगों को बाकायदा उनकी एफडी और खाते में जमा रकम की जानकारी दी जाती है. यही नहीं, टारगेट से बातचीत के दौरान उनके ही जिले से आईपीएस अफसर का नाम भी यूज किया जाता है, जिससे लोग इनके विश्वास में पूरी तरह आ जाते हैं.
सोशल मीडिया पर जो नंबर, उसी पर कॉल: साइबर क्रिमिनल्स चुने गए व्यक्ति से उसी नंबर पर संपर्क करते हैं, जो उसने सोशल मीडिया पर दिया होता है. इस तरह की ठगी राजधानी में अब तक आधा दर्जन लोगों से हो चुकी है. वहीं, पुलिस इस गैंग के सदस्यों का सुराग तक नहीं लगा सकी है.
इन चीजों का रखना होगा ध्यान: साइबर सेल प्रभारी सतीश साहू कहते है कि ऐसी कॉल आने पर जिस अधिकारी का नाम लिया जा रहा है, उसके नंबर की जांच अपने स्तर से करें. इस काम में लोकल थाने और साइबर सेल की मदद भी ले सकते हैं. पुलिस कभी कॉल करके नहीं बताती है कि आपको गिरफ्तार किया जा रहा है. ऐसी कॉल आने पर तत्काल 1930 पर कॉल करें और नजदीकी थाने या साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराएं.