देहरादून: यमुनोत्री और गंगोत्री यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों की भीड़ इन दिन उत्तरकाशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ के दर्शन को उमड़ रही है. धार्मिक मान्यता है कि कलयुग में वाराणसी बनारस से ज्यादा उत्तर की काशी में स्थित बाबा विश्वनाथ के दर्शन की महत्ता है. यही कारण हैं कि यमुनोत्री आने के बाद और गंगोत्री जाने से पहले तीर्थयात्रियों की भीड़ बाबा विश्वनाथ के दर्शनों को जुट रही है.
उत्तरकाशी में धार्मिक स्थलों की भरमार: इधर, तीर्थयात्रियों के बड़ी संख्या में आगमन के फलस्वरूप यात्रा व्यवस्था को कायम रखने में लिए उत्तरकाशी में रामलीला मैदान में होल्डिंग पॉइंट बनाए जाने के बाद यहां रोके जाने वाले यात्री बाबा विश्वनाथ के दर्शनों का लाभ अर्जित कर रहे हैं. उत्तरकाशी में यूं तो कई धार्मिक स्थलों की भरमार है, लेकिन बाबा विश्वनाथ मंदिर की मान्यता यहां वाराणसी से ज्यादा है. इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि किसी समय वाराणसी (काशी) को यवनों के संताप से पवित्रता भंग होने का श्राप मिला था.
वरुणावत पर्वत के नीचे बाबा विश्वनाथ मंदिर: इस श्राप से व्याकुल देवताओं और तपस्यारत ऋषि मुनियों द्वारा भगवान शिव की आराधना की थी. तब भगवान शिव ने कहा था कि कलयुग में काशी समेत सभी तीर्थों को छोड़ वह हिमालय में निवास करेंगे, जहां शिव उपासना हो सकेगी. यही स्थान उत्तरकाशी के अस्सी और गंगा के बीच वरुणावत पर्वत के नीचे बाबा विश्वनाथ मंदिर है. तब से उत्तर की काशी यानी उत्तरकाशी में विश्वास मंदिर में भगवान शिव का हिमालय निवास माना जाता है. यही कारण है कि प्राचीन काल में इसे सौम्यकाशी और सौम्यवाराणसी के नाम से भी जाना जाता है.
बाबा विश्वनाथ मंदिर का ये है इतिहास: जानकारी के अनुसार प्राचीन काल में यहां छोटा शिव मंदिर था, जिसे साल 1857 में गढ़वाल नरेश सुर्शन शाह ने जीर्णोद्धार कराया. बताते हैं कि टिहरी नरेश को स्वप्न में भगवान शंकर ने विश्वनाथ मंदिर जीर्णोद्धार करने का आदेश दिया था. इस पर टिहरी नरेश ने वेदी निर्माण से लेकर भव्य मंदिर निर्मित किया जो आज भी विराजमान है. यह मंदिर कत्यूरी शैली में बना है. इस भव्य और दिव्य मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन होते हैं. इस शिवलिंग पर ताम्रपात्र से निरंतर जल की बूंदें टपकती रहती हैं.
जन्म जन्मान्तर के कष्टों से मिलती है मुक्ति: शिवलिंग के एक ओर गणेश जी और दूसरी ओर माता पार्वती की प्राचीन मूर्ति विराजमान हैं. बाबा विश्वनाथ के महंत अजय पुरी बताते हैं कि बाबा विश्वनाथ मंदिर में सोमवार, महाशिवरात्रि के पर्व पर जलाभिषेक मात्र से मन्नतें पूरी होती हैं. जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री यात्रा के साथ बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से पुण्य में और बढ़ोत्तरी होती है. खासकर चारधाम यात्री जलाभिषेक और विशेष पूजा कर पुण्य अर्जित कर सकते हैं. इससे जन्म जन्मान्तर के कष्टों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है.
कैसे पहुंचे मंदिर: बाबा विश्वनाथ का मंदिर उत्तरकाशी शहर के बीचों-बीच विराजमान है. देहरादून से करीब 140 और ऋषिकेश से 180 किमी सड़क मार्ग से उत्तरकाशी शहर में पहुंचकर दर्शन किए जा सकते हैं. यहां से गंगोत्री धाम 100 किमी आगे और यमुनोत्री धाम 120 किमी पीछे स्थित है. यदि आप उत्तरकाशी पहुंचे या चारधाम यात्रा पर आएं तो जरूर बाबा विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर पुण्य प्राप्त करें.
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