नई दिल्ली/गाजियाबाद: महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर गाजियाबाद के प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़. यहां गुरुवार देर रात से ही श्रद्धालुओं की मंदिर के बाहर लाइन लगनी शुरू हो गई थी. मंदिर के बाहर करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी चार लाइन लगी. मंदिर के महंत नारायण गिरी के मुताबिक, सुबह 9:00 बजे तक करीब साढ़े तीन लाख श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन किया है. मंदिर के भीतर पहुंचने में श्रद्धालुओं का करीब तीन घंटे का वक्त लग रहा है.
सभी लोग अपने इष्टदेवता भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर में पहुंच रहे हैं और जय भोलेनाथ के उद्घोष सुनाई दिया. गाजियाबाद के प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर की मान्यता है कि यहां स्वयंभू शिवलिंग है. इसके चलते इस मंदिर की मान्यता बहुत अधिक है. यही कारण है कि गाजियाबाद ही नहीं बल्कि आसपास के कई इलाकों से भी लोग यहां अपने भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं.
महंत रामेशानंद गिरि ने बताया कि दूधेश्वर नाथ मंदिर का इतिहास रावण काल से जुड़ा है. पुलस्त्य के पुत्र और रावण के पिता ऋषि विश्रवा और रावण ने इस मंदिर में तपस्या की थी. मंदिर को दूधेश्वर हिरण्यगर्भ महादेव मंदिर मठ के रूप में जाना जाता है. रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में अपना शीश चढ़ाया था. इस मंदिर को देश के प्रमुख आठ मठों में भी गिना जाता है. औरंगजेब के काल में मराठा वीर शिरोमणि छत्रपति शिवाजी यहां आए थे और उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था. उनके द्वारा जमीन खुदवा कर गहराई में बनवाया गया हवन कुंड आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है.
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उन्होंने बताया कि दूधेश्वर नाथ मंदिर पर भगवान शिव खुद प्रकट हुए थे. यहां पर जमीन से तीन फीट नीचे शिवलिंग मौजूद है. फाल्गुन शिवरात्रि को ही भगवान शिव प्रकट हुए थे और इसी दिन शिव और शक्ति का मिलन, यानि शिव-पार्वती विवाह हुआ था. इसी कारण इस पर्व को महाशिवरात्रि पर्व के नाम से जाना जाता है.
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