कोरबा : छत्तीसगढ़ में क्रिकेट को लेकर लोगों में उत्साह जरुर है.लेकिन क्रिकेटर्स के लिए सुविधाओं की बात की जाए तो कोरबा जैसे छोटे जिले इस मामले में फिसड्डी हैं. हालत ये हैं कि बीसीसीआई से मान्यता मिलने के बाद छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ(CSCS) और कोरबा जिला क्रिकेट एसोसिएशन (KDCA) के गठन को लगभग एक दशक का समय बीत चुका है. लेकिन अब तक जिले के क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए एक अच्छी पिच नहीं बनाई जा सकी है.
रणजी में नहीं है कोरबा का कोई खिलाड़ी : क्रिकेट संघ के पदाधिकारी शासन, प्रशासन और औद्योगिक संस्थानों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. तो सरकार और औद्योगिक संस्थान इसके लिए संघ वालों की निष्क्रियता की बात कहते हैं. यही कारण है कि कोरबा जिले का कोई भी खिलाड़ी अब तक रणजी की टीम में स्थान पक्का नहीं कर सका है.
कठिन है रणजी टीम तक का सफर : छत्तीसगढ़ के रणजी टीम के गठन के लिए प्लेट और एलिट जिलों में ट्रायल्स की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. कोरबा, रायगढ़, कांकेर और इस तरह के जिले छोटे जिले प्लेट ग्रुप में आते हैं. जबकि भिलाई, रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े जिले एलीट ग्रुप के टूर्नामेंट में शिरकत करते हैं. प्लेट ग्रुप के जितने भी जिले हैं, वहां सिलेक्शन ट्रायल और टूर्नामेंट के आयोजन के बाद सभी को मिलाकर खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आधार पर एक टीम बनती है. जिसे रेस्ट ऑफ सीएससीएस का नाम दिया जाता. इसके बाद यही टीम एलिट जिलों के टूर्नामेंट में एक टीम के तौर पर भाग लेती है. इस टूर्नामेंट के बाद छत्तीसगढ़ राज्य की रणजी टीम का सेलेक्शन किया जाता है. प्लेट जिलों के खिलाड़ियों के लिए रणजी टीम में स्थान पक्का करने का सफर बेहद कठिन होता है.
मैट पर ट्रायल और प्रैक्टिस, टर्फ विकेट से सिलेक्शन : कोरबा जैसे छोटे जिले के खिलाड़ियों को क्वॉलिटी प्रैक्टिस और मैच खेलने के लिए अच्छे टर्फ विकेट नहीं मिलते. जिसके कारण मजबूरी में वो पिच पर मैट बिछाकर प्रैक्टिस मैच खेलते हैं. इसका नुकसान उन्हें ऊपरी लेवल पर होता है. हाल ही में कोरबा जिले में सिलेक्शन ट्रायल्स का आयोजन किया गया. ये भी बिना टर्फ के मैट पर ही किया गया. जिसमें सीएससीएस की ओर से राजेश शुक्ला बतौर ऑब्जर्वर पहुंचे हुए थे.
'' मैट और टर्फ के क्रिकेट में जमीन आसमान का अंतर होता है. जब कोई बच्चा मैट पर खेलने के बाद अच्छे टर्फ विकेट पर खेलता है. तब वह परफॉर्म नहीं कर पाता. मैट और टर्फ दोनों में बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों को काफी एडजस्ट करना पड़ता है. उन्हें काफी दिक्कत आती है.मैट में जब बाल पिच पर पड़कर निकलती है, तब अलग तरह का उछाल होता है.'' राजेश शुक्ला, ऑब्जर्वर, सीएससीएस
राजेश शुक्ला की माने तो इन सबका नुकसान ऊपर के लेवल पर खिलाड़ियों को होता है. मैं तो चाहूंगा कि कोरबा जैसे औद्योगिक जिले में एक नहीं एक से अधिक टर्फ विकेट तैयार किए जाएं. औद्योगिक जिला है और यहां के शासन प्रशासन और स्थानीय औद्योगिक संस्थाएं यदि इसके लिए पहल करते हैं. तो राज्य का क्रिकेट संघ भी जरुर मदद करेगा.
मैदान तलाश रहे, बॉल और ड्रेस पर खर्च करते हैं फंड : इस विषय में कोरबा जिला क्रिकेट एसोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी जीत सिंह का कहना है कि हम लंबे समय से जिले में अपने मैदान के लिए प्रयासरत हैं. लेकिन सफलता नहीं मिली है. औद्योगिक जिला होने के कारण ज्यादातर स्टेडियम औद्योगिक संस्थानों के हैं. जहां हमने टर्फ विकेट तैयार करने के लिए पहल की तो, हमें एनओसी नहीं मिली. हमारे पास अपना मैदान भी नहीं है. इसलिए हम टर्फ विकेट तैयार नहीं कर पा रहे हैं.
''हम जिले में अपना मैदान तैयार करने के लिए जमीन की तलाश कर रहे हैं. हमारे अध्यक्ष प्रयासरत हैं. उम्मीद है कि जल्द ही हमें मैदान मिलेगा. हमें राज्य शासन से कोई फंड नहीं मिलता. जो फंड राज्य क्रिकेट संघ की तरफ से हमें मिलता है. वह खिलाड़ियों के बॉल, ड्रेस और डाइट पर खर्च किया जाता है. इसके अलावा हमारे पास ज्यादा फंड नहीं होता.''- जीत सिंह, ज्वाइंट सेक्रेटरी KDCA
खेल अलंकरण में भी कोई क्रिकेटर नहीं, जिले की प्रतिभाएं भी दम तोड़ रही : क्रिकेट एक ग्लैमरस खेल जरूर है, जो सबसे ज्यादा खेला जाता है. लेकिन धरातल की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. हाल ही में हुए खेल अलंकरण समारोह में किसी क्रिकेटर को कोई इनाम नहीं मिला. छोटे जिलों में प्रतिभाओं को तैयार करने के लिए कोई भी संसाधन विकसित नहीं किया जा रहे हैं. जिसका नुकसान क्रिकेट के क्षेत्र में अपने भविष्य बनाने का सपना देखने वाले युवाओं को हो रहा है. बिना संसाधन के प्रतिभाओं को निखार पाना आसान नहीं है. कोरबा जिले के कई खिलाड़ी ऐसे हैं. जिन्होंने संसाधन के अभाव के कारण ही जिला क्रिकेट संघ से एनओसी लेकर दूसरे जिलों से खेलना शुरू कर दिया है. जिम्मेदार एक दूसरे के सिर पर जिम्मेदारी मढ़ रहे हैं, लेकिन प्रतिभाओं को संवारने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है.