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पारसनाथ में प्रभार किसी का हो चलती थी बच्चन की ही, भाकपा माओवादी का रीढ़ रहा है रामदयाल - Maoist Bachchan surrendered

Maoist Surrendered: झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर पारसनाथ इलाके में भाकपा माओवादी का रीढ़ कहे जानेवाले रामदयाल महतो ने आत्मसमर्पण कर दिया है. अब संगठन के अंदरूनी राज पता करने में पुलिस के साथ विभिन्न एजेंसी जुटी हुई है. चूंकि अर्जित लेवी के पैसे के निवेश के मामले में भी रामदयाल का नाम शामिल है. ऐसे में केंद्रीय एजेंसी भी रामदयाल से पूछताछ कर सकती है.

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मधुबन थाना (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 20, 2024, 8:47 PM IST

गिरिडीह: भाकपा माओवादी जोनल कमिटी मेंबर रामदयाल महतो ऊर्फ बच्चन ने आत्मसमर्पण कर दिया हैं. गिरिडीह की पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने के बाद पुलिस समेत विभिन्न एजेंसी इनसे पूछताछ कर रही हैं. फिलहाल पुलिस इस मामले पर अभी कुछ नहीं बोल रही है.

वैसे तो पद के मामले में बच्चन गिरिडीह के पीरटांड और उसके आसपास क्षेत्र के निवासी रहे बड़े नक्सली एक करोड़ के इनामी क्रमशः पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा, सेन्ट्रल कमिटी मेंबर अनल, सेन्ट्रल कमिटी मेंबर विवेक, 25 लाख के इनामी सैक सदस्य अजय महतो, बलबीर, नन्दलाल से ओहदे में काफी छोटा था. इतना ही नहीं पारसनाथ जोन का प्रभार भी कई वर्षों से कभी नुनुचंद, कभी साहेबराम मांझी, कभी रणविजय तो कभी कृष्णा हांसदा जैसे कुख्यात को मिलता रहा. इसके बावजूद इस जोन में सबसे अधिक किसी की चलती थी तो वह बच्चन ही था. उम्रदराज हो चुका बच्चन भले ही कई महीने से बीमार था लेकिन संगठन इस क्षेत्र के हर बड़े फैसले में इसकी सलाह लेता ही था. कहा जाए तो बच्चन से पूछे बगैर पारसनाथ जोन से संबंधित शायद ही कोई फैसला संगठन के प्रभार वाले नेता लेते हों.

संगठन को मजबूती देने में अहम योगदान

पारसनाथ का इलाका पिछले चार दशक से नक्सलवाद की जद में रहा है. चार दशक के दरमियान इस धरती के कई नक्सली देश के सबसे खूंखार नक्सली संगठन भाकपा माओवादी में टॉप के लीडर बने. हालांकि इस दौरान पारसनाथ इलाके से कैडर को तैयार करने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बच्चन ने ही किया. कैडर को तैयार करने से लेकर संगठन के लिए लेवी के तौर पर राशि इकट्ठा करने में भी बच्चन उर्फ रामदयाल की भूमिका अहम रही.

बीमार हुआ तो संगठन की देखरेख में चला इलाज

बताया जाता है कि अपनी रणनीति से पारसनाथ जोन में संगठन को मजबूत करता रहा बच्चन कई महीने से बीमार हैं. बीमारी में भी संगठन के कैडर बच्चन के आगे पीछे साये की तरह रहे. नक्सली के थिंक टैंक प्रशांत बोस की सेवा में रही दुला दी जब दो वर्ष पूर्व पुलिस के हत्थे चढ़ी तो उस वक्त उसने पुलिस को बताया था कि बच्चन बीमार है और उसकी देखभाल पवन, रंजू और महेश कर रहे हैं. दुला के इस बयान के बाद रामदयाल की खोज तेज की गई. पुलिस और अर्द्धसैनिक बल मधुबन से लेकर टुंडी, तोपचांची, गिरिडीह मुफ्फसिल क्षेत्र में रामदयाल को ढूंढती रही लेकिन सफलता नहीं मिली.

आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करती रही पुलिस

गिरिडीह के एसपी का पदभार संभालते ही दीपक कुमार शर्मा नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का प्रयास में जुटे रहे. यही कारण है कि नक्सलियों के घर तक एसपी पहुंचे. कभी मिसिर बेसरा के भाई से बात कर उन्हें समझाया तो कभी साहेबराम मांझी के परिजनों से बात की. झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति की विस्तृत जानकारी भी देते रहे. इस दौरान यह भी कहा गया कि सरेंडर नहीं करेगा तो जंगल में ही मारा जाएगा. बताया जाता है कि गिरिडीह पुलिस का यह प्रयास रंग लाया और अंततः रामदयाल जैसे पुराने नक्सली ने सरेंडर कर दिया.

ये भी पढ़ें: 30 वर्षों में कई नक्सलियों को बनाया टॉप कमांडर! दो टूटे कमरों में गुजर कर रहा परिवार

ये भी पढ़ें: भाकपा माओवादी के बच्चन ने किया सरेंडर, 10 लाख का है इनाम, छह दर्जन से अधिक मामला है दर्ज

गिरिडीह: भाकपा माओवादी जोनल कमिटी मेंबर रामदयाल महतो ऊर्फ बच्चन ने आत्मसमर्पण कर दिया हैं. गिरिडीह की पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने के बाद पुलिस समेत विभिन्न एजेंसी इनसे पूछताछ कर रही हैं. फिलहाल पुलिस इस मामले पर अभी कुछ नहीं बोल रही है.

वैसे तो पद के मामले में बच्चन गिरिडीह के पीरटांड और उसके आसपास क्षेत्र के निवासी रहे बड़े नक्सली एक करोड़ के इनामी क्रमशः पोलित ब्यूरो सदस्य मिसिर बेसरा, सेन्ट्रल कमिटी मेंबर अनल, सेन्ट्रल कमिटी मेंबर विवेक, 25 लाख के इनामी सैक सदस्य अजय महतो, बलबीर, नन्दलाल से ओहदे में काफी छोटा था. इतना ही नहीं पारसनाथ जोन का प्रभार भी कई वर्षों से कभी नुनुचंद, कभी साहेबराम मांझी, कभी रणविजय तो कभी कृष्णा हांसदा जैसे कुख्यात को मिलता रहा. इसके बावजूद इस जोन में सबसे अधिक किसी की चलती थी तो वह बच्चन ही था. उम्रदराज हो चुका बच्चन भले ही कई महीने से बीमार था लेकिन संगठन इस क्षेत्र के हर बड़े फैसले में इसकी सलाह लेता ही था. कहा जाए तो बच्चन से पूछे बगैर पारसनाथ जोन से संबंधित शायद ही कोई फैसला संगठन के प्रभार वाले नेता लेते हों.

संगठन को मजबूती देने में अहम योगदान

पारसनाथ का इलाका पिछले चार दशक से नक्सलवाद की जद में रहा है. चार दशक के दरमियान इस धरती के कई नक्सली देश के सबसे खूंखार नक्सली संगठन भाकपा माओवादी में टॉप के लीडर बने. हालांकि इस दौरान पारसनाथ इलाके से कैडर को तैयार करने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बच्चन ने ही किया. कैडर को तैयार करने से लेकर संगठन के लिए लेवी के तौर पर राशि इकट्ठा करने में भी बच्चन उर्फ रामदयाल की भूमिका अहम रही.

बीमार हुआ तो संगठन की देखरेख में चला इलाज

बताया जाता है कि अपनी रणनीति से पारसनाथ जोन में संगठन को मजबूत करता रहा बच्चन कई महीने से बीमार हैं. बीमारी में भी संगठन के कैडर बच्चन के आगे पीछे साये की तरह रहे. नक्सली के थिंक टैंक प्रशांत बोस की सेवा में रही दुला दी जब दो वर्ष पूर्व पुलिस के हत्थे चढ़ी तो उस वक्त उसने पुलिस को बताया था कि बच्चन बीमार है और उसकी देखभाल पवन, रंजू और महेश कर रहे हैं. दुला के इस बयान के बाद रामदयाल की खोज तेज की गई. पुलिस और अर्द्धसैनिक बल मधुबन से लेकर टुंडी, तोपचांची, गिरिडीह मुफ्फसिल क्षेत्र में रामदयाल को ढूंढती रही लेकिन सफलता नहीं मिली.

आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करती रही पुलिस

गिरिडीह के एसपी का पदभार संभालते ही दीपक कुमार शर्मा नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का प्रयास में जुटे रहे. यही कारण है कि नक्सलियों के घर तक एसपी पहुंचे. कभी मिसिर बेसरा के भाई से बात कर उन्हें समझाया तो कभी साहेबराम मांझी के परिजनों से बात की. झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति की विस्तृत जानकारी भी देते रहे. इस दौरान यह भी कहा गया कि सरेंडर नहीं करेगा तो जंगल में ही मारा जाएगा. बताया जाता है कि गिरिडीह पुलिस का यह प्रयास रंग लाया और अंततः रामदयाल जैसे पुराने नक्सली ने सरेंडर कर दिया.

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