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दो बार मुआवजा भुगतान का आदेश नहीं दे सकती अदालत, इलाहाबाद हाईकोर्ट - ALLAHABAD HIGH COURT

हाईकोर्ट ने अधिग्रहण से पूर्व दूसरों को जमीनें हस्तांतरित करने वाले किसानों की याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit; ETV Ba)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 13, 2025, 10:37 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिसूचना के बाद कथित रूप से भूमि खरीदने वाले अनधिकृत व्यक्तियों से मुआवजा वसूलने की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त प्रक्रियाओं के तहत पहले ही मुआवजे का भुगतान किया जा चुका है, तो अदालत मुआवजे के फिर से भुगतान का निर्देश नहीं दे सकती. खेम चंद और अन्य की याचिका पर यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने दिया.

याचिका में कहा गया था कि सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1956 की धारा 3-ए के तहत अधिसूचना जारी करने के बाद कई अनधिकृत व्यक्तियों ने किसानों से उनकी जमीनें ले ली. कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, इन लोगो को कथित तौर पर मध्यस्थता कार्यवाही के बाद बढ़ी हुई राशि सहित मुआवजा भी मिल गया. याचिका में मांग की गई कि अनधिकृत रूप से मुआवजा प्राप्तकर्ताओं से यह धनराशि वसूल कर मूल किसानों को वापस की जाए.

कोर्ट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि खातेदार (भूमिधारक) के रूप में दर्ज व्यक्तियों को मुआवज़ा पहले ही दिया जा चुका है, भले ही वे कानूनी रूप से हस्तांतरित व्यक्ति हों या नहीं. विकास प्राधिकरण ने अवॉर्ड और मध्यस्थ निर्णयों के आधार पर मुआवजे का भुगतान किया है और उन किसानों को दूसरा मुआवजा भुगतान करने का कोई औचित्य नहीं था, जिन्होंने पहले ही अपनी जमीन हस्तांतरित कर दी थी.

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने किसके निर्देश पर याचिका दायर की है. नए साक्ष्य की अनुपस्थिति और याचिका में देरी को देखते हुए अदालत ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

इसे भी पढ़ें-हाईकोर्ट ने झूठा शपथपत्र दाखिल करने वाले प्रधानाचार्य पर लगा 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिसूचना के बाद कथित रूप से भूमि खरीदने वाले अनधिकृत व्यक्तियों से मुआवजा वसूलने की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त प्रक्रियाओं के तहत पहले ही मुआवजे का भुगतान किया जा चुका है, तो अदालत मुआवजे के फिर से भुगतान का निर्देश नहीं दे सकती. खेम चंद और अन्य की याचिका पर यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने दिया.

याचिका में कहा गया था कि सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1956 की धारा 3-ए के तहत अधिसूचना जारी करने के बाद कई अनधिकृत व्यक्तियों ने किसानों से उनकी जमीनें ले ली. कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, इन लोगो को कथित तौर पर मध्यस्थता कार्यवाही के बाद बढ़ी हुई राशि सहित मुआवजा भी मिल गया. याचिका में मांग की गई कि अनधिकृत रूप से मुआवजा प्राप्तकर्ताओं से यह धनराशि वसूल कर मूल किसानों को वापस की जाए.

कोर्ट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि खातेदार (भूमिधारक) के रूप में दर्ज व्यक्तियों को मुआवज़ा पहले ही दिया जा चुका है, भले ही वे कानूनी रूप से हस्तांतरित व्यक्ति हों या नहीं. विकास प्राधिकरण ने अवॉर्ड और मध्यस्थ निर्णयों के आधार पर मुआवजे का भुगतान किया है और उन किसानों को दूसरा मुआवजा भुगतान करने का कोई औचित्य नहीं था, जिन्होंने पहले ही अपनी जमीन हस्तांतरित कर दी थी.

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने किसके निर्देश पर याचिका दायर की है. नए साक्ष्य की अनुपस्थिति और याचिका में देरी को देखते हुए अदालत ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

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